अमेरिका-चीन के बीच सब खत्‍म… भारत बनेगा बड़ा खिलाड़ी या कोई और ही साफ कर देगा मलाई

नई दिल्‍ली:

चीन और अमेरिका के बीच टैरिफ जंग तीखी हो गई है। जिस तरह यह बढ़ गई है, उससे दोनों देशों के बीच कारोबारी रिश्‍ते करीब-करीब खत्‍म होते दिख रहे हैं। एक-दूसरे पर अमेरिका और चीन ने बेहद ऊंचे टैक्‍स लगा दिए हैं। इसके बाद दोनों देशों के ल‍िए अपने उत्‍पादों को एक-दूसरे के यहां बेच पाना नामुमकिन है। विश्व व्यापार संगठन (WTO) ने हाल में इसे लेकर एक अनुमान भी जारी किया था। उसने चेतावनी दी थी कि अमेरिका और चीन के बीच व्यापार तनाव के कारण दोनों देशों के बीच वस्तुओं का व्यापार 80% तक कम होने की आशंका है। दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच यह टकराव वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है। इससे ग्‍लोबल जीडीपी में लगभग 7% की कमी आ सकती है।

डब्‍ल्‍यूटीओ का यह शुरुआती अनुमान ऐसे समय में आया था, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन से आयात पर शुल्क बढ़ा दिया था। इसके जवाब में चीन ने भी अमेरिका से आयातित वस्‍तुओं पर टैरिफ बढ़ा दिया था। ट्रंप ने चीन से दूरी बनाने की अपनी मंशा साफ कर दी है। जहां उन्‍होंने तमाम दूसरे देशों पर लागू टैरिफ को 90 दिनों के लिए रोक दिया है। वहीं, चीन को इस मुरव्‍वत से बाहर रखा गया है। इस स्थिति में भारत के लिए एक बड़ा खिलाड़ी बनने की संभावना निश्चित रूप से मौजूद है। लेकिन, यह कई फैक्‍टर्स पर निर्भर करेगी।

भारत के लिए क्‍या हैं मौके?
अमेरिका और अन्य देश चीन पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए सप्‍लाई चेन को डायवर्सिफाई कर रहे हैं। भारत एक संभावित विकल्प के रूप में उभर सकता है। खासकर कुछ खास क्षेत्रों जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स और इंजीनियरिंग वस्तुओं में। अमेरिकी बाजार में चीनी वस्तुओं पर ऊंचे टैरिफ लगने से भारतीय निर्यातकों के लिए जगह बन सकती है। यह उनके उत्‍पादों को ज्‍यादा प्रतिस्पर्धी बनाएगा।

इसके अलावा जो कंपनियां चीन से बाहर निकलना चाहती हैं, वे भारत को आकर्षक निवेश गंतव्य के रूप में देख सकती हैं। खासकर अगर भारत अपने कारोबारी माहौल और बुनियादी ढांचे में सुधार करता है। भारत का एक बड़ा और बढ़ता हुआ घरेलू बाजार भी उसे बाहरी झटकों से कुछ हद तक बचा सकता है।

सब थाली में सजा नहीं म‍िलेगा
हालांकि, भारत के सामने कई चुनौतियां भी हैं। भारत को चीन के पैमाने और दक्षता के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए अपनी मैन्‍यूफैक्‍चरिंग क्षमता को काफी हद तक बढ़ाना होगा। इसके लिए महत्वपूर्ण निवेश, बेहतर बुनियादी ढांचा और कुशल श्रमशक्ति की जरूरत होगी। भारत को अमेरिका और अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के साथ अनुकूल व्यापार समझौतों पर बातचीत करने की जरूरत होगी ताकि वह नए अवसरों का पूरी तरह से लाभ उठा सके।

वियतनाम, मलेशिया, थाईलैंड और मेक्सिको जैसे अन्य देश भी सप्‍लाई चेन डायवर्सिफिकेशन से लाभ उठाने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। भारत को इन देशों की तुलना में अधिक आकर्षक बनना होगा। भारत को अपने रेगुलेटर इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर को सुव्यवस्थित करने, नौकरशाही बाधाओं को कम करने और भूमि अधिग्रहण जैसे मुद्दों को हल करने की जरूरत होगी ताकि विदेशी निवेश को आकर्षित किया जा सके। साथ ही निर्यात को बढ़ावा दिया जा सके।

क्‍या कोई और मार सकता है मलाई?
यह कहना मुश्किल है कि भारत के अलावा और कौन सबसे ज्यादा लाभ उठाएगा। वियतनाम और मेक्सिको पहले से ही कुछ कंपनियों के लिए आकर्षक विकल्प के रूप में उभरे हैं। यूरोपीय संघ और जापान जैसी अन्य विकसित अर्थव्यवस्थाएं भी कुछ क्षेत्रों में लाभ उठा सकती हैं। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि तमाम देश कितनी तेजी से बदलते वैश्विक व्यापार परिदृश्य के अनुकूल होते हैं और अपनी नीतियों में सुधार करते हैं।

 

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