नई दिल्ली,
वक्फ बोर्ड में गैर मुसलमानों को शामिल किए जाने का मामला सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान प्रमुखता से छाया रहा. सुप्रीम कोर्ट के जजों ने गैर-मुस्लिमों को वक्फ प्रशासन में अनुमति देने के पीछे के तर्क पर सवाल उठाया, जबकि हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती पर ऐसा ही प्रावधान लागू नहीं होता है.
इस मामले में वक्फ पर बनी जेपीसी के चेयरमैन जगदम्बिका पाल ने कहा है कि वक्फ बोर्ड एक विधि निकाय (कानूनी संस्था) है और इसमें गैर मुस्लिमों का रहना जायज है. वही वरिष्ठ वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा है कि वे इस बात का समर्थन करते हैं कि गैर मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड और वक्फ काउंसिल से हटा दिया जाए. लेकिन इसके लिए उन्होंने एक शर्त रखी.
वहीं बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान जजों ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा है कि, “क्या आप सुझाव दे रहे हैं कि मुसलमान अब हिंदू बंदोबस्ती बोर्ड का हिस्सा भी हो सकते हैं?
अदालत में मुस्लिम पक्षकारों की ओर से अदालत में बहस कर रहे वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करना, विशेष रूप से बड़ी संख्या में, मुस्लिम धर्मार्थ बंदोबस्तों की देखरेख करने वाली संस्था के धार्मिक चरित्र को कमजोर करता है.
कपिल सिब्बल ने कहा, “हिंदू और सिख धार्मिक बोर्डों के विपरीत, जहां केवल संबंधित धर्म के सदस्यों का प्रतिनिधित्व होता है, इस परिषद में सांसद और पेशेवर शामिल हैं, जिनका मुस्लिम होना जरूरी नहीं है.” सिब्बल ने कहा कि नए कानून का यह प्रावधान धार्मिक संप्रदायों द्वारा अपने मामलों का प्रबंधन करने की अनुच्छेद 26 में दी गई गारंटी का उल्लंघन करता है.
सुप्रीम कोर्ट में उठे इस मामले पर वक्फ बिल पर बनी संयुक्त संसदीय कमेटी के चेयरमैन जगदम्बिका पाल ने अपनी राय दी है. उन्होंने कहा कि ये सही सवाल है लेकिन सुप्रीम कोर्ट इस सवाल का आज उठा रहा है इसके पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में रामराज फाउंडेशन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2010) के केस में ये सवाल उठा था.
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि वक्फ बोर्ड एक धार्मिक संस्था नहीं है, ये कानूनी संस्था है जो वक्फ की प्रॉपर्टी का रख-रखाव करती है.
एक दूसरे केस का हवाला देते हुए वक्फ बिल पर बनी संयुक्त संसदीय कमेटी के चेयरमैन जगदम्बिका पाल ने कर्नाटक स्टेट वक्फ बोर्ड बनाम नजीर अहमद केस का जिक्र किया था. इस केस में भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वक्फ बोर्ड एक विधि निकाय है, न कि धार्मिक संस्था.
एक और केस का हवाला देते हुए कहा कि वक्फ के फैसले का रिव्यू हो सकता है ऐसा तमिलनाडु हाई कोर्ट का आदेश है और इसके पास कोई स्वायत्त धार्मिक अधिकार नहीं है.
उन्होंने कहा कि वे ऐसे कई केस देख चुके हैं जिसमें हाई कोर्ट ने कहा है कि वक्फ बोर्ड धार्मिक संस्था नहीं है. इसलिए गैर मुस्लिम सदस्यों के शामिल किए जाने से धार्मिक स्वतंत्रता में कोई दखल नहीं होता है.
बता दें कि वर्तमान में भारत में 30 वक्फ बोर्ड हैं, जो 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कार्यरत हैं. भारत में केवल एक केंद्रीय वक्फ परिषद (Central Waqf Council) है, जो 1964 में वक्फ अधिनियम 1954 के तहत स्थापित की गई थी. यह अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में एक वैधानिक निकाय है.
जेपीसी के चेयरमैन जगदम्बिका पाल ने कहा कि वक्फ संपत्ति का रख-रखाव करने वाली संस्था है. इसलिए इसमें प्रशासन के लोग भी रहेंगे और भी लोग रहेंगे. इसलिए एक प्रशासनिक संस्था में मुस्लिम या गैर मुस्लिम को शामिल करना वाजिब है.
जगदम्बिका पाल ने कहा कि इससे जुड़े सवाल याचिकाकर्ता या उनके वकीलों ने उठाए हैं सुप्रीम कोर्ट ने नहीं उठाए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इन प्रश्नों पर सरकार का विचार जानने की कोशिश की है. उन्होंने कहा कि जेपीसी की बैठकों में इस सवाल को उठाया गया था. इन तीन चीजों पर स्पष्टता से बात हो चुकी है.
वक्फ बोर्ड में गैर मुस्लिमों की मौजूदगी पर उन्होंने कहा कि जब वक्फ बोर्ड वक्फ एक्ट के तहत बनाई गई विधिक संस्था है तो इसमें किसी खास समुदाय के लोग ही कैसे रहेंगे.
विपक्ष ने सरकार को घेरा
वहीं कांग्रेस एमपी प्रमोद तिवारी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने वही चिंता व्यक्त की है जो चिंता हमने, कांग्रेस पार्टी ने वक्फ पर गठित जेपीसी के सामने जताई थी. हमने राज्यसभा और लोकसभा में जो कुछ मुद्दे उठाए थे उन्हीं में से कुछ चिंताएं सुप्रीम कोर्ट ने व्यक्त की है. ये कानून संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का पूरी तरह से उल्लंघन है.
इस मसले पर वरिष्ठ अधिवक्ता मजीद मेमन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम सवाल उठाया है, अगर हिंदू मुस्लिम बोर्ड का हिस्सा हो सकते हैं, तो क्या मुसलमानों को भी हिंदू बोर्ड में शामिल होने की अनुमति दी जानी चाहिए? इसने भाजपा सरकार को दुविधा में डाल दिया है, क्योंकि कोई भी जवाब विवाद पैदा कर सकता है.”
क्या है संविधान का अनुच्छेद 25 और 26
संविधान का अनुच्छेद 25 प्रत्येक व्यक्ति को अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म को स्वतंत्र रूप से मानने आचरण करने और प्रचार करने का अधिकार देता है. वहीं अनुच्छेद 26 धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए संस्थाओं की स्थापना और रखरखाव करने और अपने धार्मिक मामलों के प्रबंधन करने का अधिकार देता है.
सीधी सुनवाई नहीं कर सकता है सुप्रीम कोर्ट
वहीं इस मामले में वरिष्ठ वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद-32 के तहत इस मामले की सीधी सुनवाई नहीं कर सकता है. क्योंकि जब ऐसे ही मामले सुप्रीम कोर्ट में आए थे तो कहा गया था कि आप हाई कोर्ट जाइए. अगर सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अंतरिम आदेश जारी करता है तो ये गलत उदाहरण पेश करेगा.
आगे उन्होंने कहा कि दिल्ली में यमुना नदी के किनारे एक शिव मंदिर था, उसको तोड़ा गया और कहा गया कि भगवान शिव को हमारी रक्षा की जरूरत नहीं है. ये मामला सुप्रीम कोर्ट में आया तो सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे सही माना. जब मंदिर बया यूजर नहीं हो सकता है, चर्च बाय यूजर नहीं हो सकता है, गुरुद्वारा बाय यूजर नहीं हो सकता है तो वक्फ बाय यूजर कैसे हो सकता है. इसलिए वक्फ बाय यूजर के कॉन्सेप्ट पर रोक लगानी चाहिए और इस कॉन्सेप्ट के आधार जितनी भी संपत्ति गलत ढंग से ली गई है उसे वापस लाने की कार्रवाई होनी चाहिए.
विष्णु शंकर जैन ने कहा कि वे इस बात का समर्थन करते हैं कि गैर मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड और वक्फ काउंसिल से हटा दिया जाए. पर साथ में यह भी जोड़ा जाना चाहिए कि वक्फ एक्ट 1995 और उसमें की गई कोई भी कार्रवाई गैर मुस्लिमों पर लागू नहीं होती है.