नई दिल्ली,
वक्फ संशोधन कानून 2025 पर आज देश की सर्वोच्च अदालत में लगातार दूसरे दिन सुनवाई होने वाली है. आज इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का आदेश आ सकता है. बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन कानून पर लगभग 70 मिनट सुनवाई हुई. इस दौरान अदालत ने ये संकेत दिया कि वो इस कानून के कथित विवादित हिस्सों को अमल में लाने पर रोक लगा सकता है. आज सुप्रीम कोर्ट वक्फ घोषित संपत्तियों को गैर अधिसूचित (डिनोटिफाई) करने, वक्फ बोर्ड में गैर मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने और कलेक्टरों की जांच के दौरान संपत्ति को गैर वक्फ किए जाने के प्रावधानों पर रोक लगाने के अधिकार से जुड़ा कोई आदेश जारी कर सकता है.
भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना ने बुधवार को इस केस की सुनवाई के दौरान मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि “हम आम तौर पर इस चरण में किसी कानून पर रोक नहीं लगाते हैं, जब तक कि असाधारण परिस्थितियां न हों. यह एक अपवाद प्रतीत होता है. हमारी चिंता यह है कि अगर वक्फ-बाय-यूजर को गैर-अधिसूचित किया जाता है, तो इसके बहुत बड़े परिणाम हो सकते हैं.”
भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ वक्फ (संशोधन) कानून के उन प्रावधानों पर सवाल उठा रही थी जिनको लेकर मुस्लिम पक्षकारों ने आपत्तियां जताई हैं.
वक्फ बाय यूजर पर जोरदार बहस
2025 का वक्फ कानून वक्फ बाय यूजर प्रावधन को भविष्य के लिए खत्म कर देता है. “वक्फ बाय यूजर” से तात्पर्य ऐसी प्रथा से है, जिसमें किसी संपत्ति को धार्मिक या धर्मार्थ बंदोबस्ती (वक्फ) के रूप में मान्यता उसके ऐसे प्रयोजनों के लिए दीर्घकालिक, निर्बाध उपयोग के आधार पर दी जाती है, भले ही मालिक ने वक्फ की कोई औपचारिक और लिखित घोषणा न की हो.
चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि “जहां तक वक्फ-बाय-यूजर का सवाल है, इसे रजिस्टर्ड करना बहुत मुश्किल होगा. इसलिए, इसमें अस्पष्टता है. आप तर्क दे सकते हैं कि वक्फ-बाय-यूजर का भी दुरुपयोग किया जा रहा है. आपकी बात सही है. आपकी बात सही हो सकती है कि इसका भी दुरुपयोग किया जा रहा है, लेकिन साथ ही कुछ रियल वक्फ-बाय-यूजर भी हैं. आप यह नहीं कह सकते कि कोई वास्तविक वक्फ-बाय-यूजर नहीं है.”
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वे सरकार के इस रुख को सही ठहराने में सक्षम होंगे कि यदि कोई वक्फ-बाय-यूजर रजिस्टर्ड है, तो वह ऐसा ही बना रहेगा. क्योंकि 1923 में पहले वक्फ अधिनियम के बाद से ही वक्फ संपत्तियों का पंजीकरण अनिवार्य है. इस वजह से इसका रिकॉर्ड मिल सकता है.
चीफ जस्टिस ने कहा कि अदालतों द्वारा वक्फ घोषित की गई संपत्तियों को गैर-अधिसूचित नहीं किया जाना चाहिए, चाहे वे वक्फ बाय यूजर हों या विलेख द्वारा डीड जबतक अदालत वक्फ संशोधन कानून 2025 को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही है.”
सुप्रीम कोर्ट ने मेहता से पूछा कि “उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ” को कैसे खारिज किया जा सकता है, क्योंकि कई लोगों के पास ऐसे वक्फ पंजीकृत कराने के लिए जरूरी दस्तावेज नहीं होंगे.बता दें कि नए कानून में वक्फ बाय यूजर के कॉन्सेप्ट को खत्म कर दिया गया है.
सुनवाई के दौरान पीठ ने पूछा, “आप ऐसे वक्फ बाय यूजर को कैसे पंजीकृत करेंगे? उनके पास कौन से दस्तावेज होंगे? इससे पहले से लागू किसी चीज को खत्म करने जैसा हो जाएगा. हां, कुछ दुरुपयोग है. लेकिन वास्तविक भी हैं. मैंने प्रिवी काउंसिल के फैसलों को भी देखा है. वक्फ बाय यूजर को को मान्यता दी गई है. यदि आप इसे खत्म करते हैं तो यह एक समस्या होगी. विधायिका किसी निर्णय, आदेश या डिक्री को शून्य घोषित नहीं कर सकती. आप केवल आधार ले सकते हैं.”
कलेक्टर के अधिकार पर कोर्ट की भौहें तनी
सुप्रीम कोर्ट की इस बेंच ने संशोधित कानून के एक प्रावधान पर रोक लगाने का भी संकेत दिया, जिसमें कहा गया है कि कलेक्टर द्वारा यह जांच किए जाने के दौरान कि संपत्ति सरकारी भूमि है या नहीं, वक्फ संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा.सीजेआई ने कहा, “वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद के सभी सदस्य मुस्लिम होने चाहिए, सिवाय पदेन सदस्यों के.”
अदालत ने इस कानून की उन धाराओं पर चर्चा की जिन पर आपत्तियां उठाई गईं हैं.कोर्ट ने केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने सहित कानून के कई पहलुओं पर आपत्ति व्यक्त की.सुप्रीम कोर्ट ने जिला कलेक्टरों को वक्फ संपत्तियों से संबंधित विवादों का निपटारा करने का अधिकार देने और सक्षम न्यायालयों द्वारा वक्फ घोषित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित (डिनोटिफाई) करने की अनुमति देने वाले प्रावधानों पर भी आपत्ति जताई.
बता दें कि यहां डिनोटिफाई करने का अर्थ यह होगा कि इसके बाद वो संपत्ति वक्फ बोर्ड की नहीं रह जाएगी.सीजेआई ने कहा, “आमतौर पर, जब कोई कानून पारित होता है तो अदालतें प्रथम चरण में हस्तक्षेप नहीं करती हैं. लेकिन इस मामले में अपवाद की आवश्यकता हो सकती है. यदि एक संपत्ति जिसे वक्फ बाय यूजर घोषित किया गया है और इसे डिनोटिफाई किया जाता है तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं.”
वक्फ बोर्ड में गैर मुस्लिम
सुनवाई के दौरान पीठ और सॉलिसिटर जनरल के बीच तीखी बहस देखने को मिली, जब जजों ने गैर-मुस्लिमों को वक्फ प्रशासन में अनुमति देने के पीछे के तर्क पर सवाल उठाया, जबकि हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती पर ऐसा ही प्रावधान लागू नहीं होता है.
जजों ने मेहता से कहा, “क्या आप सुझाव दे रहे हैं कि मुसलमान अब हिंदू बंदोबस्ती बोर्ड का हिस्सा भी हो सकते हैं? कृपया इसे खुलकर बताएं.”इस पर सरकार के विधि अधिकारी ने कहा कि पदेन सदस्यों के अलावा दो से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्यों को वक्फ परिषद में शामिल नहीं किया जाएगा. उन्होंने यह बात हलफनामे में भी लिखकर देने की कोशिश की.
हालांकि, पीठ ने कहा कि नए कानून के तहत, केंद्रीय वक्फ परिषद के 22 सदस्यों में से केवल आठ ही मुस्लिम होंगे. पीठ ने पूछा, “यदि आठ मुस्लिम हैं, तो दो न्यायाधीश हो सकते हैं जो मुस्लिम नहीं हो सकते हैं. इससे तो वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिमों का बहुमत हो जाता है. यह संस्था के धार्मिक चरित्र के साथ कैसे संगत है?”
सुनवाई के दौरान तनाव तब बढ़ गया जब विधि अधिकारी तुषार मेहता ने बेंच में मौजूद सभी जजों के हिन्दू होने का सवाल उठा दिया.इस पर पीठ ने कहा, “जब हम यहां बैठते हैं, तो हम अपनी व्यक्तिगत पहचान को त्याग देते हैं. हमारे लिए, कानून के समक्ष सभी पक्ष समान हैं. यह तुलना पूरी तरह से गलत है.”
अदालत ने पूछा कि तो फिर हिन्दू मंदिरों के सलाहकार बोर्डों में गैर हिन्दुओं को शामिल क्यों नहीं किया जाता है.सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस केस में अभी तक कोई औपचारिक नोटिस जारी नहीं किया है और कहा कि वह वर्तमान चरण में कानून पर रोक लगाने पर विचार नहीं करेगी.
बुधवार को तीन जजों की बेंच अंतरिम आदेश सुनाने ही वाली थी कि सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कुछ और समय के लिए सुनवाई की मांग की. इसके बाद कोर्ट ने कहा कि वह आदेश पारित करने से पहले 17 अप्रैल को दोपहर फिर से मामले की सुनवाई करेगा.