नई दिल्ली
जम्मू और कश्मीर में 2014 के बाद विधानसभा चुनाव नहीं हुए थे। 2019 में आर्टिकल 370 हटने के साथ इसका राज्य वाला दर्जा भी खत्म हो गया। लेकिन, यह असेंबली वाला केंद्र शासित प्रदेश बना रहा। इसके बाद कभी कोविड महामारी और कभी सुरक्षा हालातों की वजह से वहां चुनाव का सीन नहीं बन पा रहा था। आखिरकार 2023 के दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग और भारत सरकार के लिए वहां चुनाव करवाने की एक समय-सीमा तय कर दी। सर्वोच्च अदालत के इस आदेश की तामील हुई और 2024 के अक्टूबर में वहां निर्वाचित सरकार ने कार्यभार संभाल लिया। लेकिन, इसके 6 महीने बाद ही यहां आम नागरिकों पर ढाई दशक के बाद पहलगाम में सबसे बड़ा आतंकवादी हमला हो गया। अब इसी को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि कश्मीर में चुनाव करवाने में जल्दबाजी तो नहीं हुई?
कश्मीर में ‘जल्द’ चुनाव करवाने पर सवाल
22 अप्रैल को पहलगाम आतंकी हमले के बाद से ही सोशल मीडिया पर सुप्रीम कोर्ट और इसके उस बेंच के फैसले पर सवाल उठाए जाने शुरू हो गए थे कि शायद जम्मू और कश्मीर में चुनाव करवाने का आदेश जल्दबाजी में दिया गया। कई लोगों की राय में अभी वहां ऐसे हालात नहीं बन पाए थे कि विधानसभा चुनाव करवाए जाएं। आम लोगों की टीका-टिप्पणी तो अपनी जगह थी। लेकिन, अब सेना के एक सीनियर रिटायर्ड अफसर ने भी सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर सवाल उठाया है।
‘शायद उन्हें लगे कि गलत फैसला लिया’
एक पॉडकास्ट में लेफ्टिनेंट जनरल डीपी पांडेय (रिटायर्ड) ने कहा है, ‘सुप्रीम कोर्ट के जिन जजों ने जल्द चुनाव का दबाव डाला, मेरी इच्छा है, वे सभी लोग जो अमन की आशा जैसी नॉनसेंस बातें करते हैं, उन्हें फ्लाइट में ले जाना चाहिए, उन्हें फाइव स्टार बस मुहैया करवानी चाहिए, उन्हें पहलगाम जाना चाहिए उस रिसॉर्ट में…. उन्हें 15 मिनट तक वहां वॉक करना चाहिए, और उन्हें इस तरह के कुछ आंसू देखने को मिल जाए…. जो हमने इस घटना के बारे में जानकर महसूस किया है…शायद उनको ये लगे कि उन्होंने गलत फैसला लिया था।’
‘तो उनकी रातों की नींदें उड़ जाएंगी’
उन्होंने आगे कहा, ‘जब सिक्योरिटी इंफ्रास्ट्रक्चर आपसे कुछ कहता है तो उसे ना छूएं…यह आपका आखिरी बुर्ज है…थोड़ा सा उनका सुनना चाहिए…एक फाइव स्टार माहौल में बैठकर, जहां आपने बंदूक से फायरिंग की आवाजें नहीं सुनी हैं, और तब आप निकलते हैं और उन लोगों को ज्ञान देने लगते हैं, जो अपने देश के लिए मर रहे हैं…ऐसे तीन-चार लोगों को वहां ले जाना चाहिए…मुझे लगता है कि उनकी रातों की नींदें उड़ जाएंगी…उम्मीद है कि यह तस्वीर देखकर वे अब कभी नहीं बोलेंगे…।’
30 सितंबर, 2024 थी चुनाव की डेडलाइन
दरअसल,जम्मू और कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने के विरोध में याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए भारत के तत्कालीन चीफ जस्टिस (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 2023 के दिसंबर में चुनाव आयोग को केंद्र शासित प्रदेश में 30 सितंबर, 2024 तक चुनाव करवाने की डेडलाइन तय कर दी थी। इसके साथ ही सर्वोच्च अदालत ने केंद्र को यूटी को जल्द से जल्द राज्य का दर्जा बहाल करने के भी निर्देश दिए थे।
अक्टूबर 2024 में हुए थे चुनाव
इसी फैसले के अनुरूप पिछले साल सितंबर-अक्टूबर में जम्मू और कश्मीर में तीन चरणों में विधानसभा चुनाव करवाए गए और नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला की अगुवाई में नई सरकार का गठन हुआ। इससे पहले कश्मीर में 2014 में ही विधानसभा चुनाव हुए थे और जून 2018 के बाद से यहां चुनी हुई सरकार नहीं थी। प्रदेश में करीब एक साल तक राष्ट्रपति शासन रहा और फिर 5 अगस्त, 2019 को आर्टिकल 370 खत्म होने के साथ ही इसे दो केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर के साथ-साथ लद्दाख के रूप में बदल दिया गया। जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा तत्कालीन रूप से हटाया गया, लेकिन विधानसभा की व्यवस्था जरूर दी गई।