नई दिल्ली,
भारत के राजनीतिक मामलों पर आए दिन कुछ न कुछ टिप्पणी करने वाले शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने राहुल गांधी को हिंदू धर्म से निष्कासित करने की घोषणा की है. देश में राजनीति और धर्म में थोड़ा बहुत भी इंट्रेस्ट रखने वाला शख्स जानता है कि इस तरह का बयान सस्ती लोकप्रियता पाने की लिए ही शंकराचार्य द्वारा दिया गया होगा. वैसे भी अवमुक्तेश्वरानंद न्यूज में बने रहने के लिए कुछ न कुछ बोलते रहते हैं. इस तरह की छवि उनकी यूं ही नहीं बनी है. देश के पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ भी वो अनाप शनाप बोलते रहे हैं.
अवमुक्तेश्वरानंद ने यह घोषणा मुख्य रूप से राहुल गांधी के मनु स्मृति पर संसद में दिए गए बयान को लेकर की है. राहुल गांधी ने मनुस्मृति को बलात्कारियों को संरक्षण देने वाला ग्रंथ 14 दिसंबर 2024 को लोकसभा में अपने भाषण के दौरान बताया था. यह बयान उन्होंने हाथरस बलात्कार मामले के संदर्भ में दिया था. उन्होंने कहा था कि पीड़िता के परिवार को घर में बंद रखा गया, जबकि बलात्कारी खुले घूम रहे हैं. उन्होंने दावा किया कि ऐसा संविधान में नहीं, बल्कि मनुस्मृति में लिखा है, और बीजेपी के शासन में मनुस्मृति को संविधान से ऊपर रखा जा रहा है.
हिंदू धर्म में शंकराचार्य की पदवी बहुत सम्मानित है. शायद यही कारण है कि उनके इस बयान को बेतुका माना जा रहा है और कोई भी इसे गंभीरता से नहीं ले रहा है. वैसे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती की ज्योतिष्पीठ (बद्रीनाथ) के शंकराचार्य के रूप में नियुक्ति खुद विवादित है. कुछ लोग उन्हें फर्जी शंकराचार्य तक करार देते हैं. उनकी गद्दी को लेकर 2022 से ही विवाद चल रहा है. यह विवाद मुख्य रूप से उनकी नियुक्ति की प्रक्रिया, परंपराओं के पालन और विभिन्न धार्मिक संगठनों की सहमति के अभाव को लेकर है.
1-हिंदू धर्म से किसी को निकालने की शक्ति किसके पास?
हिंदू धर्म में किसी व्यक्ति को औपचारिक रूप से निष्कासित करने की कोई स्पष्ट प्रक्रिया या परंपरा नहीं है. हिंदू धर्म एक विविध और समावेशी परंपरा है, जिसमें विभिन्न मतों और विचारों को स्थान मिलता है. आज तक हमने कभी यह नहीं सुना कि किसी व्यक्ति को हिंदू धर्म के रीति रिवाज न मानने के चलते धर्म से निष्कासित किया गया हो. सिख धर्म में तनखैय्या घोषित करने की बात तो हमने सुना है पर हिंदू धर्म में कभी ऐसी बात सामने नहीं आई. शंकराचार्य, हालांकि हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण आध्यात्मिक नेता हैं, लेकिन उनके पास किसी व्यक्ति को धर्म से बाहर करने का एकतरफा अधिकार नहीं है. यह कदम हिंदू धर्म की मूल भावना के खिलाफ है.
प्राचीन और मध्यकालीन भारत में, मनुस्मृति जैसे ग्रंथों में सामाजिक नियमों का उल्लंघन करने वालों, जैसे अंतरजातीय विवाह या धार्मिक अनुष्ठानों की अवहेलना करने वालों, को उनकी जाति से बहिष्कृत करने का उल्लेख है. लेकिन इसे निष्कासन की जगह बहिष्कार माना जा सकता है.उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति अपनी जाति के नियमों का पालन नहीं करता था, तो उसे सामाजिक समारोहों, मंदिरों, या सामुदायिक गतिविधियों से बाहर रखा जा सकता था. 19वीं और 20वीं सदी में, कुछ रूढ़िवादी समुदायों में अंतरजातीय विवाह करने वालों को उनके गांव या समुदाय से बहिष्कृत किया गया. पर ये धार्मिक निष्कासन से ज्यादा सामाजिक था.
सनातन धर्म में शंकराचार्य सबसे बड़े धर्म गुरु माने जाते हैं, बौद्ध धर्म में दलाई लामा और ईसाई धर्म के पोप का जो दर्जा हासिल है वही उन्हें हिंदू धर्म में हासिल है. संत समाज में शंकराचार्य अग्रणी हैं पर वास्तव में किसी को धर्म से निकाल का अधिकार उन्हें नहीं मिला है. क्योंकि ऐसा होता तो सैकड़ों साल के इतिहास में एक भी मामला इस तरह का जरूर मिलता जब किसी शंकराचार्य ने इस तरह का एक्शन लिया होता.
जगद्गुरु शंकराचार्य ने जब चारों दिशाओं में चार पीठ बनाये थे तो उन पीठों के लिए एक संविधान भी बनाया था जिसे ‘महानुशासनम’ कहा जाता है. यह महानुशासनम शंकराचार्यों के अधिकार और दायित्व तय करता है. हालांकि इसमें धर्म की रक्षा और धर्म के प्रचार को लेकर ही ज्यादातर बातों का जिक्र मिलता है.इसमें कहीं भी किसी को धर्म से निकालने के बारे में चर्चा नहीं की गई है.
- बयान का संदर्भ और गलत व्याख्या
ज्योतिर्मठ पीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि राहुल गांधी ने संसद में मनुस्मृति को लेकर जो बयान दिया, उससे संपूर्ण सनातन धर्मावलंबी आहत हैं. शंकराचार्य ने कहा कि राहुल गांधी संसद में कहते हैं कि बलात्कारी को बचाने का फॉर्मूला संविधान में नहीं बल्कि मनुस्मृति में लिखा है. शंकराचार्य की नाराजगी इस बात को लेकर है कि राहुल गांधी को तीन महीने पहले एक नोटिस भेजा गया था, जिसमें उनसे सफाई मांगी गई थी कि उन्होंने मनुस्मृति को लेकर जो बात कही है, वह कहां लिखी है? लेकिन इतने समय के बाद भी न तो राहुल गांधी ने कोई जवाब दिया और न ही माफी मांगी.
शंकराचार्य ने कहा कि जब कोई व्यक्ति लगातार हिंदू धर्मग्रंथों का अपमान करता है और सफाई देने से बचता है, तो उसे हिंदू धर्म में स्थान नहीं दिया जा सकता. उन्होंने साफ किया कि अब राहुल गांधी का मंदिरों में विरोध होना चाहिए और पुजारियों से अपील की कि वे उनसे पूजा-पाठ न कराएं क्योंकि वे अब खुद को हिंदू कहने के अधिकारी नहीं हैं.
पर अवमुक्तेश्वरानंद यह भूल जाते हैं कि यह बयान मनुस्मृति की आलोचना के रूप में था, न कि पूरे हिंदू धर्म का अपमान. मनुस्मृति को लेकर हिंदू धर्म के भीतर भी कई विद्वान और सुधारक, जैसे डॉ. बी.आर. आंबेडकर सहित तमाम लोग इसकी कुछ शिक्षाओं की आलोचना कर चुके हैं. इसलिए इसे धर्मग्रंथ का अपमान मानना अतिशयोक्ति है.
- क्या खुद को राजनीति में बैलेंस करने का कदम
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद पहले सत्ताधारी दलों के खिलाफ बयान दे चुके हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ तो वो आए दिन कुछ न कुछ बोलते रहे हैं. उन्होंने राम जन्मभूमि के उद्घाटन के बारे में भी बहुत कुछ कहा था. अभी हाल ही में पहलगाम अटैक पर भी उन्होंने पीएम मोदी की आलोचना की थी.उन्होंने ‘चौकीदार’ शब्द का हवाला देते हुए सीधे पीएम मोदी पर सवाल उठाए थे. यही नहीं शंकराचार्य की ओर से सिंधु नदी समझौता सस्पेंड करने के फैसले पर भी सवाल उठाए गए थे. उन्होंने कहा कि सरकार ऐसे फैसले लेकर जनता को बेवकूफ बना रही है.शायद यही कारण है कि बहुत से लोगों का कहना है कि राहुल गांधी पर यह कार्रवाई उनकी निष्पक्षता को बनाए रखने का एक बैलेंस एक्ट हो सकता है. क्योंकि मोदी विरोध के चलते हिंदुओं के बीच उनकी लोकप्रियता कम हो रही थी. शायद यही कारण है कि अब वे खुद को संतुलित दिखाना चाहते हैं. - स्पष्टीकरण मांगने की प्रक्रिया का अभाव
शंकराचार्य के दावे पर एक और सवाल किया जा रहा है. उन्होंने राहुल गांधी को पत्र लिखकर स्पष्टीकरण मांगने की बात की है. पर ये नही बताया कि पत्र किस तरह राहुल गांधी के पास भेजा गया. अगर तीन महीने तक जवाब नहीं मिला तो उन्हें दूसरा और तीसरा पत्र भी भेजना चाहिए था. कोर्ट और सरकारी कार्रवाई में भी इस तरह के नियम है. इतने गंभीर कदम से पहले एकतरफा घोषणा करना, बिना संवाद या निष्पक्ष सुनवाई के, तर्कसंगत नहीं है. हिंदू धर्म की परंपरा में संवाद और विचार-विमर्श को महत्व दिया जाता है.