स्वतंत्रता के 75 वर्षों की उपलब्धियों के गौरवगान के बाद आज मुझे भारतीय होने पर शर्म आती है। हम सबको पता है कि भारत में न्याय की गुणवत्ता का अंदाज नहीं लगाया जा सकता, और कभी-कभी कैसे बुराई जीत जाती है और निर्दोष जेल में सड़ते रहते हैं। लेकिन क्या अन्याय ने हमें इतना सुन्न कर दिया है कि हम आतंक महसूस करने की क्षमता भी खो रहे हैं? 2002 गुजरात दंगों में बिलकिस बानो के परिवार का संहार करने वाले हत्याओं और गैंग-रेपिस्टों को फूल-माला पहनाए जाने के लिए मैं तैयार नहीं था… न ही जेल से उनकी रिहाई के लिए जिसकी सिफारिश एक आधिकारिक पैनल ने की। वह भी बिना कोई संतोषजनक वजह बताए, ऐसे अपराध के लिए जिसके आगे 2012 में निर्भया का बलात्कार और हत्या बौना है।
पैनल का फैसला केंद्रीय गृह मंत्रालय की ताजा गाइडलाइंस के खिलाफ था जिसमें बलात्कार और हत्या के दोषियों को रिहा न करने को कहा गया था। पैनल को शायद बिलकिस मामले के बेहद भयावह तथ्यों से कोई फर्क ही नहीं पड़ा। वह साफतौर पर गर्भवती थी, इसके बावजूद बलात्कारियों ने नहीं बख्शा। अमानवीयता की हदें पार करते हुए उन्होंने एक छोटे बच्चे को पटक-पटककर मार डाला। बिलकिस समेत तीन को छोड़ पूरे परिवार को मौत के घाट उतार दिया गया।
निर्भया केस में एक व्यक्ति की हत्या हुई थी। बिलकिस के मामले में 14 लोग मारे गए, मतलब इसमें 14 गुना ज्यादा रक्तपात हुआ। निर्भया केस पर पूरा देश आक्रोशित था और हत्यारों को फांसी की सजा देने की मांग कर रहा था। हमें बिलकिस के मामले में उससे 14 गुना ज्यादा आक्रोश दिखना चाहिए था, इसके उलट हत्यारों को रिहा कर दिया गया है।
मैं यह बात बड़ी क्रूर लगती है कि आधिकारिक पैनल का निर्णय सर्वसम्मति से था। एक भी सदस्य ने यह तर्क देने की हिम्मत नहीं दिखाई कि निर्भया की तुलना में कहीं ज्यादा भयानक मामले में रिहाई न्यायोचित नहीं थी। जाहिर तौर पर आज जो कुछ भी मायने रखता है वह है पीड़ितों की पहचान।
पैनल में रहे भाजपा विधायक सीके राउलजी ने यह कहते हुए उनकी रिहाई को जायज ठहराया कि वे ‘ब्राह्मण थे’ और इसलिए उनमें ‘अच्छे संस्कार’ हैं। सरासर ऐसा जातिवाद मूर्खतापूर्ण है। क्या बिलकिस और उनके परिवार के ‘संस्कार’ कुछ कम थे क्योंकि वे ब्राह्मण नहीं थे?
मैं भी ब्राह्मण हूं। राउलजी के बात मानूं तो मुझमें भी ‘अच्छे संस्कार’ हैं। इसलिए मैं घोषणा करता हूं कि बिलकिस के साथ बलात्कार और उसके परिवार की हत्या करने वालों से मैं पूरी तरह स्तब्ध और शर्मिंदा हूं। मुझे इस तरह के व्यवहार का बचाव करने वाले ब्राह्मणों पर और भी शर्म आती है।
मेरी मां ने ऋषिकेश के शिवानंद आश्रम में एक संन्यासी के रूप में अपनी देह त्यागी। शायद उनके पास भी ‘अच्छे संस्कार’ थे। वह भी बिलकिस के सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार की हत्या की निंदा करतीं। वह भी हत्यारों को ब्राह्मणवाद और शास्त्रों पर कलंक बतातीं।
1947 के दंगों के दौरान जब मेरा परिवार शिमला में था, मुसलमानों के एक परिवार ने गुस्साई सिख और हिंदू भीड़ से शरण मांगी। मेरी मां ने मुसलमानों को हमारे घर में छिपा दिया और भीड़ से कहा कि मुस्लिम परिवार चला गया है और घर में कोई नहीं है। मेरी मां ने अच्छे ब्राह्मण संस्कार दिखाए। उन्होंने हत्यारों से कहा होता कि हिंदू शास्त्रों में बलात्कार और हत्या को जघन्य अपराध बताया गया है, ‘अधर्म’ और ‘हिंसा’ के रूप में।
कभी जेल से रिहा होने वाले अपराधियों का स्वागत-सत्कार घिनौना और नागवार समझा जाता था। अब यही फ्रिंज मेनस्ट्रीम हो गया है। 2018 में पूर्व नागरिक उड्डयन मंत्री जयंत सिन्हा के संसदीय क्षेत्र हजारीबाग में एक मुस्लिम पशु व्यापारी की हत्या के आठ दोषियों को जमानत पर रिहा किया गया था। सिन्हा एक समारोह में शामिल हुए जहां हत्यारों को माला पहनाई गई। हालांकि बाद में उन्होंने ऐसा करने पर खेद जताया था।
कई देशों में हत्या के लिए लंबी सजा काट चुके हत्यारों को रिहा किया जा सकता है, बशर्ते अधिकारियों को यह समझा लिया जाए कि उन्होंने अपने पापों का पश्चाताप किया है। बिलकिस के मामले में, हत्यारों ने बिल्कुल भी पश्चाताप नहीं किया है। इसके उलट, उनमें से एक ने रिहाई पर ऐलान किया कि उसे ‘राजनीति’ के तहत सजा हुई। कितना विद्रोही है! उनकी रिहाई को रद्द करने का इससे अच्छा आधार नहीं हो सकता।अगर सरकार और सर्वोच्च न्यायालय दोनों ही इस रिहाई को रद्द करने के लिए कदम नहीं उठाते हैं, तो हम एक घोर अन्याय के प्रति अपनी आंखें मूंदे नजर आएंगे। भारत को ऐसा देश नहीं बनना चाहिए, जहां फांसी के फंदे लायक लोगों को उसके बदले फूलों का हार मिले।
स्वामीनाथन अय्यर: