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कूनो पार्क में 8 चीते अकेले नहीं, वहां पहले से हैं 18 हजार से ज्यादा चीतल-चिंकारा-नीलगाय

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नई दिल्ली,

कूनो नेशनल पार्क में चीते आए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीतों को पार्क में छोड़ा. बताया गया कि ये चीतों का रीइंट्रोडक्शन है. लेकिन ऐसा है नहीं. ये इंट्रोडक्शन है. अगर एशियाई चीते (आते तो यह रीइंट्रोडक्शन होता. लेकिन कूनो में आए हैं अफ्रीकी महाद्वीप के नामीबिया के चीते. यानी यह दूसरे महाद्वीप के चीतों का इंट्रोडक्शन है.

वाइल्डलाइप एक्सपर्ट डॉ. सुदेश वाघमारे ने बताया कि कूनो नेशनल पार्क में लाए गए चीतों को लेकर जिस ‘रीइंट्रोडक्शन’ शब्द का उपयोग हो रहा है. वो गलत है. अगर ईरान या एशिया के किसी भी देश से चीते आते तो उसके लिए यह शब्द उपयुक्त था. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. चीते आए हैं अफ्रीका से. यानी नए जानवर का नई जगह पर इंट्रोडक्शन कराया गया है. चीते अफ्रीकन हैं न कि एशियाई. दोनों हैं चीता ही लेकिन अलग-अलग. ईरान से चीते लाते तो उसे एशियाटिक चीतों का रीइंट्रोडक्शन कहते. पहले डील उनसे हो भी रही थी. लेकिन बाद अलग-अलग वजहों से वो नहीं हो पाई.

कूनो नेशनल पार्क में प्रे बेस (Prey Base) अच्छा है. यहां पर खाने की कोई कमी नहीं है. 9000 चीतल है. करीब 800 चिंकारा हैं. 200 से 250 फोरहॉर्न एंटीलोप हैं. 1000 बार्किंग डियर हैं. तीन से चार हजार काले हिरण हैं. दो से ढाई हजार नीलगाय और एक हजार सांभर हैं. इसलिए चीतों को शिकार करने और खाने में कोई दिक्कत नहीं होगी. कुल मिलाकर 18 हजार से ज्यादा जानवर चीतों का प्रे बेस बनने के लिए मौजूद हैं.

9 बिंदुओं में समझिए एशियाई और अफ्रीकन चीतों में अंतर

1. चीता बिल्लियों की प्रजाति का महत्वपूर्ण जानवर है. सबफैमिली फैलिने है. यह पूरे अफ्रीका और अब ईरान के कुछ हिस्सों में पाया जाता है. घास के मैदानों में रहता है. जमीन पर सबसे तेज दौड़ने वाला जानवर.

2. इसे चार उप-प्रजातियों (Sub-Species) में बांटा गया है. साउथईस्ट अफ्रीकन चीता, नॉर्थईस्ट अफ्रीकन चीता, नॉर्थवेस्ट अफ्रीकन चीता और दुर्लभ एशियाई चीता. इनके बारे में पहली बार 1775 जोहान वॉन श्रीबर ने परिभाषा दी थी.

3. एशियाई और अफ्रीकन चीता धरती पर 67 हजार सालों से हैं. एक अफ्रीका में. दूसरा एशिया में. एशियाई चीतों के लिए परिस्थितयां ज्यादा बुरी रहीं, इसलिए वो विलुप्त होते चले गए. अफ्रीका में आज भी अफ्रीकन चीतें सभी जगहों पर देखने को मिल जाते हैं. एशियाई चीते अब ईरान में ही हैं.

4. एशियाई चीता अफ्रीकन चीतों से आकार में छोटा और पतला होता है. एशियाई चीतों की गर्दन और पैर छोटे होते हैं. इसलिए कई बार लोग ये भी मानते थे कि शायद एशियाई चीते अफ्रीकन चीतों की तुलना में ज्यादा तेज दौड़ते रहे होंगे.

5. एशियाई वयस्क चीते की लंबाई 53 इंच लंबा होता था. वजन करीब 54 किलोग्राम होता था. जबकि अफ्रीकन चीता इससे थोड़ा ज्यादा बड़ा और वजनी होता है. इसकी लंबाई 84 इंच और वजन करीब 72 किलोग्राम होता है.

6. एशियाई चीते के शरीर पर ज्यादा फर (Fur) होता है. खासतौर से पेट और गर्दन के पीछे. जबकि अफ्रीकन चीतों का फर ज्यादा मोटे होते हैं. शरीर पर काले स्पॉट्स अफ्रीकन चीतों के ज्यादा घने होते हैं. एशियाई चीतों फैले-फैले होते थे.

7. एक सदी पहले एक लाख चीते थे. अब अफ्रीका में करीब 10 हजार चीते बचे हैं जबकि एशियाई चीते लुप्त होने की कगार पर हैं. ईरान में इनकी संख्या 100 से कम ही होगी.

8. अफ्रीकन चीतों को उनकी फुल स्पीड में दौड़ते हुए रिकॉर्ड किया गया है. इसलिए उनकी स्पीड पता है. ऐसा कभी एशियाई चीतों के साथ नहीं हुआ. लेकिन यह माना जाता है कि एशियाई चीते अफ्रीकन के बराबर ही दौड़ते रहे होंगे.

9. एशियाई चीते हिरण, भेड़, बकरी, चिंकारा आदि का शिकार करते थे. खाने के लिए सीमित प्रजातियों के जीव थे. इनका हैबिटैट यानी रहने का स्थान उतनी विभिन्नता वाला नहीं था जितना अफ्रीकन चीतों का था. अफ्रीकन चीतों के पास शिकार के लिए 25 प्रजातियों के शाकाहारी जीव हैं.

नामीबिया के चीते क्या कूनो नेशनल पार्क में रह पाएंगे?
डॉ. सुदेश वाघमारे ने बताया कि कूनो नेशनल पार्क और नामीबिया के जंगल एक जैसे ही हैं. घास और पौधे बराबर हैं. दिन और रात की लंबाई भी एक लगभग बराबर है. कूनो में अधिकतम तापमान 45-46 जाता है. कम से कम 6-7 डिग्री सेल्सियस तक. नामीबिया के घास के मैदानों में तापमान 48-50 डिग्री सेल्सियस तक जाता है. इसलिए वहां से लाए गए चीते यहां पर रह लेंगे. उन्हें किसी प्रकार की दिक्कत नहीं होगी. जब तक वो बाड़ों में हैं, तब तक उनका असली व्यवहार नहीं पता चलेगा. जब उन्हें खुले जंगल में छोड़ा जाएगा, तब वो अपना असली रूप दिखाएंगे.

कूनो में पर्याप्त जानवर हैं अफ्रीकन चीतों के शिकार के लिए
डॉ. सुदेश वाघमारे ने बताया कि आमतौर पर चीता चार से सात दिन में एक बार खाता है. क्योंकि एक बार शिकार करने के बाद उसे खाता रहता है. यह शिकार के वजन पर निर्भर करता है. यानी शिकार 10 किलो का है. 15 किलो का है या फिर 25 किलो वजन का. इस हिसाब से चीता सालभर में 50 जानवरों को खाएगा. लेकिन उसे इसके लिए मेहनत बहुत करनी पड़ती है. 10 बार आक्रमण करने पर वह एक बार सफल हो पाता है.

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