नई दिल्ली
ऑनलाइन धोखाधड़ी के जरिए आए दिन लोगों को करोड़ों रुपये की चपत लगाई जा रही है, जिसके चलते साइबर क्राइम एक्सपर्ट्स लगातार लोगों को सावधान रहने की सलाह देते हैं। इन डिजिटल फ्रॉड करने वाले अपराधियों ने नया तरीका डिजिटल अरेस्ट का निकाला है, जिसमें ये अधिकारी बनकर भोले-भाले लोगों को डिजिटल अरेस्ट कर लेते हैं और फिर उन्हें अलग-अलग तरह के डर दिखाकर उनसे लाखों करोड़ रुपये वसूल लेते हैं। इसको लेकर अब पीएम मोदी ने भी अब चिंता जताई है, और लोगों को सावधान रहने की सलाह दी है।
दरअसल, हाल ही में देश के साइबर क्राइम रिकॉर्ड के आंकड़ों से पता चला है कि इस साल की शुरुआती कुछ महीनों में ही भारतीयों को डिजिटल अरेस्ट की धोखाधड़ी के जरिए 120.30 करोड़ रुपये की लूट का शिकार बनाया गया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) के अनुसार, डिजिटल अरेस्ट के जरिए धोखाधड़ी काफी ज्यादा बढ़ गई है। इस अपराध को अंजाम देने वाले ज्यादातर क्रिमिनल्स दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों, म्यांमार, लाओस और कंबोडिया जैसे देशों में रहते हैं।
Digital Arrest के 46 प्रतिशत तक बढ़े मामले
जनवरी से अप्रैल तक के आंकड़ों के विश्लेषण के अनुसार भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (आई4सी) ने पाया कि डिजिटल अरेस्ट के अपराध के तहत दर्ज साइबर धोखाधड़ी के 46% मामले सामने आए हैं। इसमें 1,776 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है, इनमें से ज्यादातर मामले म्यांमार, लाओस और कंबोडिया से ही फ्रॉड वाले थे।
राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (एनसीआरपी) के आंकड़ों से पता चलता है कि इस साल 1 जनवरी से 30 अप्रैल के बीच 7.4 लाख शिकायतें दर्ज की गईं, जबकि 2023 में कुल 15.56 लाख शिकायतें प्राप्त हुईं। 2022 में कुल 9.66 लाख शिकायतें दर्ज की गईं।
मुख्य कार्यकारी अधिकारी (I4C) राजेश कुमार ने मई में जनवरी-अप्रैल के आंकड़े जारी करते हुए कहा था कि हमने पाया कि भारतीयों ने डिजिटल गिरफ्तारी में 120.30 करोड़ रुपये, ट्रेडिंग घोटाले में 1,420.48 करोड़ रुपये, निवेश घोटाले में 222.58 करोड़ रुपये और रोमांस/डेटिंग घोटाले में 13.23 करोड़ रुपये गंवाए।
Digital Arrest क्या है?
डिजिटल गिरफ्तारी में संभावित पीड़ितों को एक कॉल आती है, जिसमें कॉलर उन्हें बताएगा कि उन्होंने अवैध सामान, ड्रग्स, नकली पासपोर्ट या अन्य प्रतिबंधित सामान वाला पार्सल भेजा है या वे इसके प्राप्तकर्ता हैं। कुछ मामलों में टारगेट के रिश्तेदारों या मित्रों को बताया जाता है कि टारगेट किसी अपराध में संलिप्त पाया गया है।
एक बार अपराधी, टारगेट को अपने जाल में फंसा लेते हैं तो फिर उनसे स्काइप या किसी अन्य वीडियो कॉलिंग प्लेटफ़ॉर्म पर उनसे संपर्क करते थे। वे अक्सर ईडी अधिकारी बनकर, पुलिस की वर्दी पहनकर या पुलिस स्टेशन जैसी लोकेशन वाले बैकग्राउंड के साथ कॉल करते हैं। इसके बाद पीड़ितों को बुरी तरह डराते हैं, जिसके बाद समझौता करने या मामले को बंद करने के लिए पैसे की मांग करते हैं।
कुछ मामलों में पीड़ितों को डिजिटल रूप से गिरफ्तार किया जाता है, और जब तक वे पैसे नहीं देते तब तक उन्हें डराकर वीडियो कॉल पर बने रहने के लिए भी कहा जाता है। आई4सी ने एनसीआरपी के आंकड़ों, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से प्राप्त इनपुट और कुछ खुले स्रोतों से प्राप्त जानकारी का विश्लेषण करने के बाद म्यांमार, लाओस और कंबोडिया पर ध्यान केंद्रित किया।
PM मोदी ने किया सावधान
बता दें कि डिजिटल अरेस्ट के बढ़ते मामलों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में भी इसका जिक्र किया। PM Modi ने देशभर में बढ़ते इस डिजिटल अरेस्ट के ट्रेंड को थामने के लिए डिजिटल अरेस्ट के मामलों पर 140 करोड़ देशवासियों को सतर्क करते हुए धोखाधड़ी करने वालों के तौर-तरीके समझाकर जनता को सावधान किया है।
डिजिटल अरेस्ट से कैसे बचें?
डिजिटल अरेस्ट के मामले उनके साथ ही होते हैं, लोगों का गलत तरीके से सिम कार्ड लिया जाता है, गलत तरीके से बैंक खाता खोला जाता है। जिन लोगों को ठगी का शिकार बनाया जाता है, उनके पैन कार्ड, आधार कार्ड समेत कई अन्य डेटा को गैरकानूनी तरीके से इकट्ठा किया जाता है। उनके खाते से पैसे ट्रांसफर कराये जाते हैं। कई बार क्रिप्टो या गेमिंग एप के माध्यम से हवाला के जरिए पैसे को बाहर भेजा जाता है। ऐसे में लोगों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कोई भी सरकारी एजेंसी ऑनलाइन तरीके से पूछताछ नहीं करती है।
बता दें कि सरकारी एजेंसी सिर्फ फिजिकल तरीके से पूछताछ करती है। अगर किसी के साथ इस तरीके की घटना होती है, तो वह दो तरीके से इसे रिपोर्ट कर सकता है। साइबर फ्रॉड के हेल्पलाइन नंबर या फिर ईमेल के जरिए शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। इसके अलावा, आप स्थानीय पुलिस को भी शिकायत दे सकते हैं।