नई दिल्ली:
उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश… ये देश के कुछ ऐसे राज्य हैं, जहां से पूरे देश की सिसायत चलती है। इन सभी राज्यों में बीजेपी की सरकार है। लेकिन बिहार में बीजेपी की सरकार जेडीयू के साथ गठबंधन में हैं। बिहार में बीजेपी के पास सीटें तो ज्यादा हैं, लेकिन बीजेपी गठबंधन की मजबूरियों में ऐसी दबी है कि नीतीश कुमार को सीएम बनाना मजबूरी बन गया। हालांकि बीजेपी की ओर से फिलहाल नीतीश कुमार को लेकर ऐसे कोई संकेत नहीं मिले हैं।
बिहार में इस साल नवंबर में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में सियासी गलियारों में चर्चा है कि बीजेपी इस बार ज्यादा सीटें जीतने पर नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री नहीं बनाएगी। दरअसल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 74 और जेडीयू को 43 सीटें मिली थीं। लेकिन बीजेपी ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया था।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बीजेपी इस साल होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव से पहले ऐसा विकल्प ढूंढ सकती है, जिससे केंद्र सरकार और मजबूत हो जाए। क्या ये विकल्प शरद पवार होंगे? ऐसी अटकलें हैं कि पीएम मोदी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) के अध्यक्ष शरद पवार को साधने की कोशिश कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार की नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू पर निर्भरता कम हो जाएगी, क्यों शरद पवार की अगुवाई वाली एनसीपी के पास 8 सांसद हैं। लोकसभा चुनावों में अजित पवार की पार्टी सिर्फ एक सीट जीत पाई थी। जबकि शरद पवार को 10 सीटों पर लड़ने के बाद 8 पर जीत मिली थी।
बीजेपी के लिए नई उम्मीद
अजित पवार की मां आशाताई पवार ने पिछले दिनों साफ कहा था कि वह चाहती हैं कि पवार परिवार एक हो जाए। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि एनसीपी के दोनों धड़ों के साथ आने की कवायद पर्दे के पीछे जारी है। अगर यह कोशिश परवान चढ़ती है तो शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री बन सकती हैं। इतना ही नहीं उन्हें कोई बड़ा मंत्रालय भी मिल सकता है। ऐसे में बीजेपी की ताकत और बढ़ जाएगी। इसका सीधा असर बिहार की सियासत में देखने को मिल सकता है।
नीतीश कुमार किधर जाएंगे?
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) छोड़ने की संभावना से सोमवार को इनकार करते हुए कहा कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ उनके संबंध बहुत पुराने हैं। जनता दल (यूनाइटेड) (जद-यू) प्रमुख ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से हमेशा मिले समर्थन को याद किया और राष्ट्रीय जनता दल (राजद)-कांग्रेस गठबंधन के साथ अपने दो अल्पकालिक गठबंधनों को एक ‘गलती’ करार दिया। राजनीतिक जानकारों का यह भी कहना है कि बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद ही तय होगा कि नीतीश क्या रुख अपनाते हैं।
जेडीयू कीं मंशा साफ है
नए साल के पहले ही दिन सत्ताधारी जेडीयू ने जो नया पोस्टर जारी किया है, उसमें नीतीश कुमार को बिहार विधानसभा की ओर कदम बढ़ाते दिखाया गया है। एक तरफ ‘तीर’ निशान और दूसरी तरफ अंग्रेजी में ‘NITISH’ लिखा हुआ है। बीच में 2025 से 2030 के वर्ष अंकित हैं। जिसका मतलब ये है कि विधानसभा चुनाव 2030 तक नीतीश कुमार ही सदन में बहुमत के साथ नेता रहेंगे।