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अयोध्या में राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा के बाद देश में ‘सच्ची आजादी’ प्रतिष्ठित हुई : RSS चीफ मोहन भागवत

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नई दिल्ली

अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की तिथि ‘प्रतिष्ठा द्वादशी’ के रूप में मनाई जानी चाहिए क्योंकि अनेक सदियों से दुश्मन का आक्रमण झेलने वाले देश की सच्ची स्वतंत्रता इस दिन प्रतिष्ठित हुई थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत का राम मंदिर को लेकर एक दिन पहले इंदौर में दिए इस बयान को लेकर चर्चा हो रही है। मोहन भागवत पिछले दिनों देश के अलग-अलग हिस्सों में मंदिर-मस्जिद विवाद उठने को लेकर चिंता व्यक्त की थी। उन्होंने संभल में हुई हिंसा की भी आलोचना की थी। कई जानकारों का मानना है कि संघ प्रमुख के मस्जिद-शिवलिंग खोजने से जुड़े विवाद को लेकर जिस तरह से आलोचना हुई थी उस वजह से यह बयान काफी अहम है।

संघ प्रमुख ने राम मंदिर पर क्या कहा?
संघ प्रमुख मोहन भागवत 13 तारीख को इंदौर में थे। यहां उन्होंने श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के महासचिव चम्पत राय को ‘राष्ट्रीय देवी अहिल्या पुरस्कार’ प्रदान किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि अयोध्या में रामलला प्राण प्रतिष्ठा की तिथि पौष शुक्ल द्वादशी का नया नामकरण ‘प्रतिष्ठा द्वादशी’ के रूप में हुआ है। उन्होंने कहा कि यह तिथि ‘प्रतिष्ठा द्वादशी’ के रूप में मनाई जानी चाहिए क्योंकि अनेक सदियों से ‘परचक्र’ (दुश्मन का आक्रमण) झेलने वाले भारत की सच्ची स्वतंत्रता इस दिन प्रतिष्ठित हुई थी। इससे पहले संघ प्रमुख ने कहा था कि हमे हर मस्जिद के नीचे मंदिर नहीं ढूंढ़ना चाहिए। हर जगह मंदिर ढूंढ़ने की इजाजत नहीं दी जा सकती।

मंदिर-मस्जिद से जुड़ा मुद्दा कुछ लोग इसलिए उठाते हैं ताकि वे स्वयं को हिंदुओं के नेता के रूप में स्थापित कर सकें। विशेष रूप से, राम मंदिर के संदर्भ में ऐसी बातें ज्यादा देखने को मिल रही हैं। हम लंबे समय से सद्भावना के साथ रह रहे हैं। अगर हम दुनिया को यह सद्भावना संदेश देना चाहते हैं तो हमें इसका एक मॉडल बनाने की जरूरत है।
मोहन भागवत, दिसंबर 2024, पुणे में सहजीवन व्याख्यान माला के दौरान

संघ प्रमुख को झेलनी पड़ी थी आलोचना
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने पिछले साल दिसंबर में को पुणे में कहा था कि मंदिर-मस्जिद के रोज नए विवाद निकालकर कोई नेता बनना चाहता है तो ऐसा नहीं होना चाहिए। हमें दुनिया को दिखाना है कि हम एक साथ रह सकते हैं। इसके बाद अमरावती में भी संघ प्रमुख ने कहा था कि धर्म के नाम पर होने वाले सभी उत्पीड़न और अत्याचार गलतफहमी और धर्म की समझ की कमी के कारण होते हैं। धर्म महत्वपूर्ण है और इसकी शिक्षा ठीक से दी जानी चाहिए। संघ प्रमुख के मस्जिद-मस्जिद बयान को लेकर आलोचना झेलनी पड़ी थी।

धर्म को पूरा समझना पड़ता है, जो पूरा नहीं समझा तो उससे धर्म के आधे ज्ञान के चलते उससे अधर्म होता है। दुनिया में धर्म के नाम पर जितना अत्याचार हुआ है, यह अधूरे ज्ञान के चलते हुआ है। धर्म को समझाने के लिए संप्रदाय की जरूरत होती है, बिना उसके पंथ भी नही चलता है और बाबा ने बताया है कि उसके लिए बुद्धि चाहिए.. जिस पंथ के पास बुद्धि है, उसे हम संप्रदाय बोलते हैं।
मोहन भागवत, 22 दिसंबर, 2025 अमरावती में सभा के दौरान

सांधु-संतों की तनी थी भौंहें
संघ प्रमुख के बयान को लेकर साधु-संतों की भौंहें तन गई थीं। स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा, यह उनका व्यक्तिगत बयान हो सकता है, वह संघ के संचालक हो सकते हैं, हिंदू धर्म के नहीं। उन्होंने कहा था कि हमारा ध्यान सदैव धर्म के अनुशासन और सत्य पर रहता है। जहां-जहां हिंदू धर्म के प्रमाणित स्थल हैं, वहां हमारी उपस्थिति होगी।

मंदिर-मस्जिद विवाद को लेकर सरसंघचालक मोहन भागवत के बयानों से हिंदू समाज दो वैचारिक प्रवाह में बंटता नजर आ रहा है। एक प्रवाह है कट्टर हिंदुत्व और दूसरा है उदार हिंदुत्व। संघ परिवार और संत समाज में भी इस अंदरूनी प्रवाह से हलचल है।
गंगाधर ढोबले, लेखक

उन्होंने कहा था कि जहां भी प्राचीन मंदिरों के प्रमाण उपलब्ध होंगे, हम उन्हें दोबारा स्थापित करने का प्रयास करेंगे। यह हमारे लिए कोई नई कल्पना नहीं है, बल्कि सत्य के आधार पर हमारी संस्कृति और धर्म का संरक्षण है। स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा था कि भागवत पहले भी इस तरह के बयान दे चुके हैं। इसके बावजूद 56 नई जगहों पर मंदिर संरचना की पहचान की गई है। उनका कहना था धार्मिक संगठन राजनीतिक एजेंडे के आधार पर काम नहीं करते हैं।

जब उन्हें सत्ता प्राप्त करनी थी, तब वह मंदिर-मंदिर करते थे अब सत्ता मिल गई तो मंदिर नहीं ढूंढ़ने की नसीहत दे रहे हैं। आरएसएस प्रमुख हिंदुओं के प्रवक्ता नहीं हैं और हम (हिंदू) हमारी हर इंच भूमि लेकर रहेंगे। … भागवत हिंदुओं के दर्द को समझ नहीं पा रहे हैं।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद, ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य

ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने भागवत की आलोचना करते उन पर ‘राजनीतिक सुविधा’ के अनुसार बयान देने का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा था कि जब उन्हें सत्ता प्राप्त करनी थी, तब वह मंदिर-मंदिर करते थे अब सत्ता मिल गई तो मंदिर नहीं ढूंढ़ने की नसीहत दे रहे हैं। शंकराचार्य ने भागवत के उस बयान पर उनकी आलोचना की थी जिसमें उन्होंने कहा था कि हर जगह मंदिर ढूंढ़ने की इजाजत नहीं दी सकती।

संघ के भीतर भी नाराजगी की खबरें
संभल हिंसा को लेकर भागवत के बयान को लेकर सोशल मीडिया पर उनकी खूब आलोचना हुई थी। लोगों का कहना था कि संघ प्रमुख आखिर मु्स्लिमों को समर्थन वाली भाषा क्यों बोल रहे हैं। संघ प्रमुख के बयान को लेकर बीजेपी के साथ ही संघ के भीतर भी नाराजगी की खबरें भी सामने आई थीं। हालांकि, आधिकारिक रूप से किसी ने भी सामने आकर संघ प्रमुख के बयान की आलोचना नहीं की थी। ऐसे में अब राम मंदिर को लेकर जिस तरह से संघ प्रमुख का बयान आया है, उससे माना जा रहा है कि वह पिछले विवाद से किनारा करना चाहते हैं।

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