नई दिल्ली:
अरविंद केजरीवाल ने जेल जाकर भी दिल्ली के मुख्यमंत्री का पद नहीं छोड़ा है। विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (BJP) केजरीवाल को उनके ही पुराने बयानों की याद दिलाकर नैतिकता की दुहाई दे रही है, लेकिन आम आदमी पार्टी (AAP) का कहना है कि दिल्ली की जनता जो चाहती है, वही होगा। आप के मुताबिक, उसकी तरफ से कराए गए सर्वे में जनता के बहुमत ने राय दी थी कि केजरीवाल अगर जेल जाएं तो उन्हें वहीं से दिल्ली की सरकार चलानी चाहिए, इस्तीफा देने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन यह पार्टी को अच्छे से पता है कि इस्तीफे का मुद्दा अगर अदालत में उठा तो फिर यह सर्वे रिजल्ट किसी काम का नहीं होगा। वहां तो वही दलीलें चलेंगी जो कानूनी पैमाने पर खरा उतरे। इसलिए पार्टी के वकील ऐसे ठोस दलील गढ़ने में जुट गए जो अदालत को संतुष्ट कर सके कि केजरीवाल जेल से सरकार चला सकते हैं।
जानिए अदालत में कौन सी दलील देगी आप
आप के वकील अदालत में यह दलील देने की योजना बना रहे हैं कि तिहाड़ सेंट्रल जेल परिसर के एक हिस्से को ‘प्रिजन’ घोषित किया जाए ताकि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और दिल्ली सरकार चलाने के लिए दफ्तर जैसी अन्य आवश्यक सुविधाएं मिल सकें। आप के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, पार्टी की कानूनी टीम अदालत में याचिका दायर करने के लिए जमीनी कार्य कर रही है, जिसमें उन मिसालों का हवाला दिया जाएगा जब विचाराधीन कैदियों को तिहाड़ जेल के अंदर से अपने ऑफिस रन करने की अनुमति दी गई थी।
आप के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने द इकनॉमिक टाइम्स (ET) को नाम गुप्त रखने की शर्त पर यह जानकारी दी। उन्होंने कहा, ‘सबसे हाई-प्रोफाइल मिसाल सहारा समूह के सुब्रत रॉय की है, जिन्हें अदालत से तिहाड़ जेल के अंदर ऑफिस की सुविधाओं का उपयोग करने की अनुमति मिली थी ताकि अपनी जमानत राशि जुटाने के लिए न्यूयॉर्क और लंदन में अपने लग्जरी होटलों की बिक्री को लेकर बातचीत की जा सके। तिहाड़ जेल के महानिदेशक ने 2014 में विशेष अदालत परिसर को कैदखाना (प्रिजन) घोषित किया था।’
आप ने उदाहरण देकर उठाया सवाल
पदाधिकारी ने कहा कि यूनिटेक के प्रमोटर संजय चंद्रा और अजय चंद्रा भी तिहाड़ जेल से अवैध रूप से कार्यालय संचालित करते पाए गए थे। उन्होंने कहा, ‘अगर वे लोग जिन्होंने लोगों का पैसा हड़पा है, अपने कार्यालय चला सकते हैं, तो अदालत को एक निर्वाचित मुख्यमंत्री के समान सुविधाओं के अनुरोध को स्वीकार करने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए।’ जेल अधिनियम के तहत, महानिदेशक (जेल) या उपराज्यपाल के पास सुरक्षा कारणों या संचालन में आसानी के लिए किसी भी जगह को ‘कैदखाना’ (प्रिजन) घोषित करने की शक्ति होती है।
जेल में कैदियों को मिलते हैं सिर्फ ये 10 अधिकार
जेल जाकर भी पद छोड़ने से इनकार के कारण इतिहास में पहली बार एक अभूतपूर्व स्थिति पैदा हो गई है, जहां एक सीएम सलाखों के पीछे से सरकार चलाने पर जोर दे रहा है। जेल मैनुअल के नियम 1349 के अनुसार, एक विचाराधीन कैदी को केवल 10 सुविधाएं दी जाती हैं – कानूनी बचाव, वकीलों या परिवार के सदस्यों के साथ मुलाकात (कानूनी उद्देश्यों के लिए), वकालतनामा पर हस्ताक्षर करना, पावर ऑफ अटॉर्नी का देना, वसीयत का काम निपटाना, नियमों के अनुसार आवश्यक धार्मिक आवश्यकताएं, कानून के प्रावधानों के अनुसार सरकारी खर्च पर कानूनी सहायता के लिए अदालतों में आवेदन, अदालतों में अन्य आवेदन, मुफ्त कानूनी सहायता के लिए कानूनी सहायता देने वाली संस्थाओं में आवेदन और ऐसी अन्य सुविधाएं जो सरकार से स्वीकृत हैं। इनमें वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधाएं या फाइलों पर हस्ताक्षर करने की छूट जैसी सुविधाएं शामिल नहीं हैं।