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अनशन पर बैठे जगजीत डल्लेवाल के शरीर पर नहीं बचा मांस, तबीयत भी बिगड़ी, क्या सरकार किसान नेता को यूं ही मरने देगी?

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चंडीगढ़

खनौरी बॉर्डर पर 42 दिनों से अनशन कर रहे भारतीय किसान यूनियन (सिद्धूपुर) के नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल की हालत नाजुक है। किसान नेता डल्लेवाल शनिवार से लगातार उल्टियां कर रहे हैं। डॉक्टरों की ओर से जारी बुलेटिन के अनुसार, उनके शरीर पर अब मांस नहीं बचा है। लीवर, किडनी और फेफड़ों में खराबी आ गई है। अब हालत यह है कि अगर जगजीत सिंह डल्लेवाल का अनशन खत्म कर देते हैं तो भी रिकवरी मुश्किल है। हालांकि केंद्र सरकार की ओर से अभी तक अनशन खत्म कराने की कोई सुगबुगाहट नजर नहीं आ रही है। अब सवाल यह है कि क्या सरकार डल्लेवाल को यूं ही मरने देगी?

एमएसपी पर कानून बनाने की मांग
लोकतंत्र में आमरण अनशन विरोध का सबसे अहिंसक तरीका है। किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल भी एमएसपी को लेकर कानून बनाने की मांग पर अड़े हैं। वह पिछले 26 नवंबर से खनौरी बॉर्डर पर आमरण अनशन कर रहे हैं। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित कमेटी ने आंदोलनकारी किसान से बातचीत करने की पेशकश की, जिसे किसान नेताओं ने खारिज कर दिया।

कैंसर के मरीज भी हैं किसान नेता
डल्लेवाल का स्वास्थ्य हर दिन खराब हो रहा है। 70 साल के किसान नेता कैंसर के मरीज हैं और दवाइयां भी नहीं ले रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद पंजाब सरकार ने धरनास्थल पर मेडिकल टीम, एडवांस्ड लाइफ सपोर्ट सिस्टम और एंबुलेंस को तैनात किया, मगर डल्लेवाल ने मेडिकल सपोर्ट लेने से इनकार कर दिया है। उनकी हालत गंभीर होती जा रही है।

कृषि मंत्री ने दिए वार्ता नहीं करने के संकेत
खनौरी बॉर्डर पर आंदोलनकारियों की भीड़ बढ़ती जा रही है, मगर केंद्र सरकार इस हालात को नजरअंदाज कर रही है। हर मंगलवार को किसानों से मिलने वाले कृषि मंत्री ने बयान दिया था कि इस मामले को सुप्रीम कोर्ट देख रहा है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन किया जाएगा। यह रवैया सरकार की मुश्किलें बढ़ा सकता है, क्योंकि आंदोलनकारियों के बीच मीडिया में छपी कई कहानियां तैरने लगी हैं।

क्या यह 2020 के अपमान का बदला है?
मीडिया रिपोर्ट में बताया गया कि 2020 के आंदोलन के दौरान किसान संगठनों ने 11 दौर की बातचीत के बाद अड़ियल रवैया अपनाया था और वार्ता फेल हो गई। 8 दिसंबर 2020 को गृह मंत्री अमित शाह बातचीत करने पूषा पहुंचे थे, मगर किसानों ने बातचीत से इनकार कर दिया था। इससे सरकार की काफी किरकिरी हुई थी। चार साल पुराने अनुभव के कारण केंद्र सरकार सीधे तौर से बातचीत की पहल नहीं कर रही है।

कोर्ट ने पूछा था, क्यों नहीं करते बातचीत?
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा गया कि सरकार बयान क्यों नहीं दे रही है कि वह वास्तविक मांगों पर विचार करेगी और हम किसानों से चर्चा के लिए तैयार हैं। इसके जवाब में तुषार मेहता ने बताया था कि शायद कोर्ट को इससे जुड़े फैक्टर्स की जानकारी नहीं है। केंद्र सरकार हर किसान को लेकर चिंतित है।

किसान आंदोलन का वादा पूरा करेगी सरकार
किसान संगठनों का कहना है कि 2020 के किसान आंदोलन के दौरान केंद्र सरकार ने एमएसपी की कानूनी गारंटी, लोन माफी, स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने जैसी मांगों पर विचार करने का लिखित आश्वासन दिया था। दल्लेवाल भी वादे को लागू करने की मांग कर रहे हैं, मगर केंद्र सरकार इस मुद्दे पर बातचीत नहीं करना चाहती है।

गंगा के लिए प्रो. अग्रवाल ने दी थी जान
डल्लेवाल का आमरण अनशन विख्यात पर्यावरणविद स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद उर्फ प्रोफेसर जीडी अग्रवाल की याद दिला रहा है। जी डी अग्रवाल ने भी गंगा की सफाई को लेकर 112 दिनों तक आमरण अनशन करते हुए प्राण त्यागे थे। उन्होंने गंगा में गिरते प्रदूषित नालों और पवित्र नदी की सफाई के नाम पर खर्च हुए अरबों रुपये पर सवाल खड़े किए थे। उन्होंने भी अनशन से पहले प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी थी, मगर जवाब नहीं मिला। 2018 में जी डी अग्रवाल ने एम्स ऋषिकेश में अंतिम सांस ली और उनके साथ ही एक बड़ा आंदोलन खत्म हो गया।

अगर चूक हुई तो फिर खड़ा होगा आंदोलन
खनौरी बॉर्डर पर बैठे किसानों का कहना है कि अगर केंद्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लेकर सीधी बात करेगी, तो शायद जगजीत सिंह डल्लेवाल मेडिकल सहायता ले सकते हैं। केंद्र सरकार को यह नहीं भूलना चाहिए कि किसान आंदोलन भले ही अभी पंजाब-हरियाणा बॉर्डर तक सिमटा नजर आ रहा है, मगर एक चूक फिर से बड़ा आंदोलन खड़ा कर सकती है। खनौरी बॉर्डर पर देश के अन्य हिस्सों से किसान जुटने लगे हैं।

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