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Tuesday, July 1, 2025
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ओमप्रकाश राजभर को मिल गई Y सिक्‍योरिटी, BJP की नरमी की आखिर वजह क्‍या है?

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लखनऊ

यूपी सरकार ने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) प्रमुख ओम प्रकाश राजभर को वाई श्रेणी की सुरक्षा दे दी है। यह सुरक्षा भी राष्ट्रपति चुनाव के ठीक पहले दी गई है। अब राजनीतिक गलियारों में यह सवाल उठने लगे हैं कि आखिर बीजेपी राजभर के प्रति इतनी नरमी क्यों बरत रही है, जो उन्हें वाई श्रेणी सुरक्षा से नवाजा जा रहा है। यह वही राजभर हैं, जिन्होंने पिछली योगी सरकार पर तमाम गंभीर आरोप लगाते हुए भाजपा से नाता तोड़ लिया था। अब कोशिश की जा रही है कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले राजभर और भाजपा का रिश्ता फिर जुड़ जाए।

कांशीराम के साथ शुरू की थी सियासत
सुभासपा प्रमुख ने सियासी करियर की शुरुआत बीएसपी संस्थापक कांशीराम के साथ की थी। बह बीएसपी के टिकट पर चुनाव भी लड़े थे, लेकिन हार गए थे। साल 2001 में भदोही का नाम बदलकर संत कबीरनगर किए जाने को लेकर उनका मायावती से विवाद हो गया और उन्होंने बीएसपी छोड़ दी। 2002 में राजभर ने सुभासपा का गठन किया।

बड़े दल के साथ पड़ते हैं भारी
– राजभर अगर अकेले चुनाव लड़ें तो उसका ज्यादा असर नहीं होता, पर बड़े दल के साथ किसी का भी समीकरण बिगाड़ने में सक्षम हैं।
– 2012 के विधानसभा चुनाव में राजभर की पार्टी ने 52 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ा था और सभी सीटों पर हार मिली थी। सुभासपा के 48 उम्मीदवारों की तो जमानत भी जब्त हो गई थी और पार्टी को महज 5 फीसदी वोट मिले थे।
– राजभर का पूर्वांचल के 15-20 जिलों में काफी असर है। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले वह बीजेपी के संपर्क में आए और एनडीए का घटक दल बनकर चुनाव लड़े। गठबंधन के तहत आठ सीटों पर चुनाव लड़ा और चार पर जीत मिली।
– राजभर को योगी सरकार 1.0 में पिछड़ा वर्ग कल्याण, दिव्यांगजन सशक्तीकरण विभाग का मंत्री बनाया गया। लेकिन वह अपने पोर्टफोलियो को लेकर खुश नहीं थे और वह लगातार अपनी ही सरकार के खिलाफ विवादित बयान देते रहे।
– ओबीसी आरक्षण में बंटवारे के लिए सामाजिक न्याय समिति की सिफारिशों को लागू करने, जातीय जनगणना, मुफ्त शिक्षा, शराबबंदी जैसे मुद्दों को लेकर राजभर केंद्र व राज्य सरकार के खिलाफ लगातार मोर्चा खोले रहे।
– रूठने-मनाने की तमाम कोशिशों के बाद राजभर 2019 में एनडीए से अलग हो गए और सरकार से इस्तीफा दे दिया। उनकी ताकत को जानते हुए सपा मुखिया अखिलेश यादव ने वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में उनसे गठबंधन कर लिया।

2022 में हुआ भाजपा को नुकसान
– 2022 के चुनाव में भाजपा को काफी नुकसान हुआ। आजमगढ़ और गाजीपुर जिले में तो भाजपा का खाता तक नहीं खुला।
– राजभर की पार्टी ने छह सीटें जीतीं। पूर्वांचल के कई जिलों समेत जौनपुर, बलिया, अम्बेडकरनगर में भी बीजेपी को नुकसान हुआ।
– भाजपा ने अपने राजभर नेता खड़े करने की कोशिश की, पर वे पार्टी को फायदा नहीं दिलवा सके।

मनाने का होता रहा प्रयास
राजभर के तमाम विरोध के बावजूद बीजेपी उन्हें साथ लाने का प्रयास करती रही। 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले कई बड़े नेताओं ने उनसे मुलाकात और फोन पर बात की, लेकिन बात नहीं बनी। चुनाव में हार के बाद भी बीजेपी के नेता लगातार राजभर के संपर्क में बने रहे। इस बीच राजभर द्वारा लगातार अखिलेश यादव के फील्ड पर न निकलने को लेकर विरोध जताने, आजमगढ़ में लोकसभा उपचुनाव में सपा के हार जाने के बाद उनकी सपा से दूरी बढ़ती जा रही है।

भाजपा ‘अपना’ बनाने की कर रही कोशिश
– विधानसभा चुनाव से पहले राजभर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के घर गए।
– सरकार के मंत्री दयाशंकर सिंह लगातार राजभर से संपर्क में बने रहे।
– राष्ट्रपति चुनाव से पहले सीएम योगी आदित्यनाथ के घर डिनर पर राजभर एनडीए प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू और बड़े नेताओं से मिले।
– दिल्ली जाकर राजभर ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से भी मुलाकात की।

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