नई दिल्ली,
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक व्यभिचार के मामले को खारिज करते हुए महाभारत के किस्से का जिक्र किया. असल में मामला ऐसा था जिसमें एक पति ने अपनी पत्नी के कथित प्रेमी के खिलाफ आपरत्तिजनक संबंध का आरोप लगाया था. कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को पति की संपत्ति मानने की मानसिकता और इसके विनाशकारी परिणामों का उदाहरण महाभारत में स्पष्ट है, जहां द्रौपदी को उसके पति युधिष्ठिर ने जुए में दांव पर लगा दिया था.
जुए में द्रौपदी को हारे पांडवः हाइकोर्ट
हाईकोर्ट ने कहा, “महाभारत में द्रौपदी को जुए में दांव पर लगाया गया, जहां उनके अन्य चार भाई चुपचाप दर्शक बने रहे और द्रौपदी को अपनी गरिमा के लिए आवाज उठाने का कोई अधिकार नहीं था. इसके परिणामस्वरूप जुए में हार के बाद महाभारत का भीषण युद्ध हुआ, जिसमें असंख्य लोगों की जान गई और कई परिवार नष्ट हो गए.”
कोर्ट ने आगे कहा कि इस तरह के उदाहरण के बावजूद, समाज की पुरुषवादी मानसिकता तब तक नहीं बदली, जब तक सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 497 (व्यभिचार) को असंवैधानिक घोषित नहीं किया.
साल 2010 का था मामला
यह मामला 2010 में दायर किया गया था, जिसमें एक पति ने आरोप लगाया था कि उसकी पत्नी का एक अन्य व्यक्ति के साथ व्यभिचारी संबंध है. पति ने दावा किया कि उसकी पत्नी और आरोपी व्यक्ति एक होटल में एक ही कमरे में रात भर रुके थे, जिसके आधार पर उसने व्यभिचार का आरोप लगाया. हाईकोर्ट ने कहा कि भले ही धारा 497 को 2018 में असंवैधानिक घोषित किया गया, लेकिन यह पुराने मामलों पर भी लागू होगा. कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले का समर्थन किया, जिसमें कहा गया था कि केवल एक ही कमरे में रात भर रहने के आधार पर यह नहीं माना जा सकता कि दोनों ने यौन संबंध बनाए.
हाईकोर्ट ने कहा, “धारा 497 का मूल आधार यह है कि व्यभिचार का कार्य यानी यौन संबंध होना चाहिए, जिसके लिए कोई मौखिक या दस्तावेजी सबूत नहीं है. यह केवल एक अनुमान पर आधारित है, जिसे प्रथम दृष्टया स्वीकार नहीं किया जा सकता.” कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 497 के जरूरी तत्व इस मामले में सिद्ध नहीं हुए. इसलिए, आरोपी के खिलाफ दायर व्यभिचार का मामला खारिज कर दिया गया.
समाज में बदलाव की जरूरतः HC
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में न केवल कानूनी पहलुओं पर ध्यान दिया, बल्कि सामाजिक मानसिकता पर भी टिप्पणी की. कोर्ट ने महाभारत के उदाहरण के जरिए यह बताया कि महिलाओं को संपत्ति मानने की सोच कितनी हानिकारक हो सकती है और समाज को इस दिशा में बदलाव की जरूरत है.