17.7 C
London
Saturday, August 2, 2025
Homeराष्ट्रीयकभी-कभी स्वतंत्रता के बारे में बहुत बड़ी गलतफहमियां होती हैं... CAG नियुक्ति...

कभी-कभी स्वतंत्रता के बारे में बहुत बड़ी गलतफहमियां होती हैं… CAG नियुक्ति केस में सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कही ये बात

Published on

नई दिल्ली

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस जनहित याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा जिसमें भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की नियुक्ति केवल कार्यपालिका और प्रधानमंत्री की तरफ से करने के मौजूदा चलन को संविधान का उल्लंघन घोषित किए जाने का अनुरोध किया गया है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन’ की तरफ से दायर जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया।

शीर्ष अदालत ने इसी मुद्दे पर लंबित मामले के साथ संलग्न कर दिया। एनजीओ की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि सवाल संस्था की स्वतंत्रता का है। उन्होंने आरोप लगाया कि महाराष्ट्र जैसे राज्यों, जहां बीजेपी सत्ता में है, में कैग के ऑडिट को बाधित किया जा रहा है।

जनहित याचिका में शीर्ष अदालत से यह निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है कि राष्ट्रपति कैग की नियुक्ति प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और भारत के चीफ जस्टिस वाली एक स्वतंत्र और तटस्थ चयन समिति के परामर्श से तथा पारदर्शी तरीके से करें। इसमें कहा गया है कि कैग की नियुक्ति का निर्देश सूचना आयोगों और केंद्रीय सतर्कता आयोग सहित अन्य निकायों की नियुक्ति के समान होना चाहिए।

अपनी संस्थाओं पर भरोसा करना होगा
जब जस्टिस सूर्यकांत ने ‘डेविएशन’ के बारे में सवाल किया, तो भूषण ने कम रिपोर्ट और रुके हुए ऑडिट की ओर इशारा किया। फिर कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 148 की ओर इशारा किया, जिसमें कहा गया है कि राष्ट्रपति सीएजी को ‘अपने हस्ताक्षर और मुहर के तहत वारंट द्वारा’ नियुक्त करेंगे। एडवोकेट भूषण ने बताया कि कोर्ट ने सीबीआई प्रमुख की नियुक्ति और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के मामले में भी हस्तक्षेप किया था। जस्टिस कांत ने तब कहा कि हमें अपनी संस्थाओं पर भरोसा करना होगा।

‘बहुत बड़ी गलतफहमियां होती हैं’
बेंच में शामिल जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह ने कहा, ‘कभी-कभी हमें स्वतंत्रता के बारे में बहुत बड़ी गलतफहमियां होती हैं। भूषण ने चुनाव आयोग मामले में शीर्ष अदालत के फैसले की ओर इशारा किया, जिसमें कहा गया था कि चुनाव निकाय के सदस्यों की नियुक्ति करने वाले पैनल में प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और भारत के चीफ जस्टिस शामिल होने चाहिए।

अदालत ने तर्क दिया था कि पैनल की संरचना को कार्यपालिका पर छोड़ना लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होगा। बाद में केंद्र ने नियमों में फेरबदल करते हुए भारत के चीफ जस्टिस को पैनल से हटा दिया और एक मंत्री को जोड़ दिया। अदालत अब इस कदम को लेकर चुनौतियों की सुनवाई कर रही है।

Latest articles

KCET और NEET UG 2025: राउंड-1 प्रोविजनल सीट अलॉटमेंट रिजल्ट जारी, ऐसे चेक करें

NEET UG 2025: कर्नाटक परीक्षा प्राधिकरण (KEA) ने KCET और कर्नाटक NEET UG राउंड-1...

Vitamin B-12 Deficiency: विटामिन B12 की कमी लक्षण खुराक और क्यों है यह इतना ज़रूरी

Vitamin B-12 Deficiency: क्या आप जानते हैं कि विटामिन B12 की थोड़ी सी भी...

पुणे में पथराव और तनाव शिवाजी महाराज की प्रतिमा खंडित सोशल मीडिया पोस्ट बना विवाद का कारण

पुणे में पथराव और तनाव शिवाजी महाराज की प्रतिमा खंडित सोशल मीडिया पोस्ट बना...

More like this

प्रेमानंद महाराज के बयान पर विवाद महिलाओं को लेकर दिए गए किस बयान पर हो रहा है विरोध?

प्रेमानंद महाराज के बयान पर विवाद महिलाओं को लेकर दिए गए किस बयान पर...

PM Modi Maldives Visit:भारत-मालदीव ने किए 8 बड़े समझौते ₹4850 करोड़ का क्रेडिट और UPI लॉन्च

PM Modi Maldives Visit: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मालदीव यात्रा के दौरान भारत और...