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Thursday, June 26, 2025
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वो 6 श्रीलंकाई प्रदर्शनकारी, जिनकी एक चिंगारी ने महाशक्तिशाली राजपक्षे परिवार को घुटनों पर ला दिया

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कोलंबो

श्रीलंका में आर्थिक संकट के खिलाफ लोग सड़कों पर हैं। उन्होंने पिछले चार महीनों के अंदर महाशक्तिशाली राजपक्षे परिवार को सत्ता से बेदखल कर दिया है। हालात ये हैं कि पूरा का पूरा राजपक्षे परिवार श्रीलंका छोड़कर भाग चुका है। इसके बावजूद लोगों का गुस्सा शांत नहीं हुआ है और वे राजपक्षे परिवार का समर्थन करने वाले नेताओं, बिजनेसमैन, सरकारी अधिकारियों को निशाना बना रहे हैं। हालांकि बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि श्रीलंका में पिछले चार महीनों से राजपक्षे परिवार के खिलाफ जारी विरोध प्रदर्शनों की शुरुआत सिर्फ 6 श्रीलंकाई नागरिकों ने की थी। अब उनके इस प्रदर्शन में लाखों लोग शामिल हो चुके हैं, जिन्होंने श्रीलंका का राजा कहे जाने वाले महिंदा राजपक्षे और उनके भाई गोटबाया राजपक्षे को सत्ता से उतारकर देश से बाहर भागने पर मजबूर कर दिया है।

1 मार्च को छह युवाओं ने निकाला था पहला मोर्चा
श्रीलंका में 1 मार्च को सरकार के लगातार बिजली कटौती और बढ़ती कीमतों के विरोध में छह युवा पेशेवरों के एक समूह ने अपने घरों के बाहर एक मार्च निकाला था। यह मार्च राजधानी कोलंबो के एक उपनगर कोहुवाला में आयोजित किया गया था। इसमें शामिल प्रदर्शनकारियों ने हाथों में मोमबत्तियां और राजपक्षे सरकार के खिलाफ नारे वाली तख्तियां ले रखी थीं। ये युवा देश में रसोई गैस, दवाओं और भोजन की कमी से निराश थे। उन्होंने मांग की कि राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को इस्तीफा देना चाहिए। यह एक ऐसा गैर राजनीतिक विरोध था, जिसके अंजाम की किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। इसे राजपक्षे परिवार और उनकी सरकार के खिलाफ पहला विरोध प्रदर्शन माना गया।

… और काफिला बनता गया
हालांकि, इन छह प्रदर्शनकारियों ने जो शुरू किया वह एक बड़े आग की मात्र एक चिंगारी थी। शुरुआत में तो उनके मोहल्ले वाले भी उन छह युवाओं पर हंसते थे। उनमें से एक प्रदर्शनकारी विमुक्ति दुषंथा ने बताया कि शुरुआत में, जब हम तख्तियों के साथ सड़क पर खड़े होते थे, तो यह बाकी लोगों को मजाक जैसा लगता था। पहले दिन हम में से केवल छह थे। लेकिन दूसरे दिन के दौरान लगभग 50 लोग थे। देखते ही देखते छह का समूह कुछ ही हफ्तों में सैकड़ों और फिर हजारों की भीड़ में बदल गया। विरोध प्रदर्शन कोलंबो के उपनगर से निकलकर श्रीलंका के पावर कॉरिडोर के बीच मिरिहाना और गाले फेस तक फैल गया। इस दौरान इन प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व करने वाले नेता भी बदलते रहे, लेकिन राजपक्षे सरकार ने इन प्रदर्शनकारियों की मांगों पर ध्यान नहीं दिया।

श्रीलंकाई सरकार ने प्रदर्शनकारियों को बताया चरमपंथी
श्रीलंकाई सरकार ने शुरुआत में इन प्रदर्शनकारियों को चरमपंथी करार दिया। सरकार का दावा था कि ये लोग श्रीलंका में अरब स्प्रिंग को अंजाम देने का प्रयास कर रहे थे। हालांकि, इस बीच प्रदर्शनकारियों की ताकत लगातार बढ़ती गई और उन लोगों ने नारे और गाले फेस पर कब्जा कर लिया। यह पूरा इलाका दिन और रात गोटा गो गामा का नारे से गूजता रहता। इस दौरान गाले प्रदर्शनकारियों की शक्ति का बड़ा केंद्र बनकर उभरा। इस दौरान प्रदर्शन की शुरुआत करने वाले विमुक्ति दुषान्त के अलावा 28 साल के बुद्धि प्रबोध करुणारत्ने प्रदर्शनकारियों के बड़े नेता के रूप में उभरे।

गोटबाया के खिलाफ किया प्रदर्शन तो मिली लाठियां
इन दोनों ने मार्च के अंत में एक फेसबुक पोस्ट डाला और कहा कि कोहुवाला स्टेशन पर शुरू हुए मूक विरोध आंदोलन अब कोलंबो के विहार महादेवी पार्क में मोर्चा संभालेगा। उनकी इस एक अपील पर 31 मार्च को सैकड़ों लोग विरोध स्थल पर पहुंचे। इस दौरान बुद्धि प्रबोध करुणारत्ने ने एक शानदार भाषण दिया और वह विरोध प्रदर्शन के बड़े नेता बन गए। उनका कद इतना बढ़ गया कि श्रीलंकाई मीडिया उनसे किसी राजनीतिक दल से जुड़ाव के बारे में सवाल पूछने लगी थी। हालांकि, यह आंदोनल पूरी तर हसे गैर राजनीतिक था और लोगों की सिर्फ एक मांग थी कि गोटबाया राजपक्षे को अपना पद छोड़ देना चाहिए। लेकिन सरकार ने उनकी मांग को पूरा करने के बदले लाठीचार्ज करवाया और आंसू गैस के गोले दागे। इन झड़पों के कई लोग घायल हुए, जबकि कई दूसरों को गिरफ्तार कर लिया गया।

सभी धर्मों और समुदायों ने दिया साथ, गोटबाया को माननी पड़ी हार
अगले दिन 1 अप्रैल को इन गिरफ्तार लोगों का केस लड़ने के लिए वकीलों के एक समूह ने स्वेच्छा से काम करने का अनुरोध किया। जिसके बाद इस विरोध प्रदर्शन को श्रीलंका के हर धर्म, जाति, समुदाय का समर्थन मिला। ईसाई, बौद्ध और मुसलमानों के धार्मिक नेता इस प्रदर्शन में शामिल होने लगे। 1 अप्रैल को श्रीलंका के कैथोलिक बिशप्स सम्मेलन ने सभी दलों के राजनीतिक नेताओं से हाथ मिलाने और देश को वर्तमान सरकार की नीतियों से बचाने की अपील की। जबकि, श्रीलंका के भिक्षु विश्वविद्यालय के बौद्ध संतो ने कोलंबो के अनुराधापुरा में विरोध प्रदर्शन किया। प्रभावशाली बौद्ध संघों ने अपने संस्थानों में राजनेताओं को अनुमति नहीं देने का फैसला किया। जिसके बाद यह विरोध प्रदर्शन लगातार बढ़ता चला गया और इसकी ताकत के आगे पूरा का पूरा राजपक्षे परिवार घुटनों पर आ गया।

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