अरावली में अवैध खनन का खामियाजा दिल्ली-एनसीआर भी भुगत रहा, ‘फेफड़ा’ नहीं बचा पाए तो घुट जाएगा दम

नई दिल्ली

दुनिया की सबसे पुरानी पहाड़ियों में से एक अरावली में खनन पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व रोक के बावजूद अवैध खनन का खेल जारी है। खनन माफिया के दुस्साहस का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि मंगलवार को हरियाणा के नूंह में अवैध खनन की सूचना पर कार्रवाई करने पहुंचे डेप्युटी एसपी सुरेंदर सिंह को ट्रक से कुलचकर मार डाला गया। देश की राजधानी दिल्ली से दक्षिण-पश्चिम में महज 40 किलोमीटर दूर स्थित अरावली की पुरानी पहाड़ियां अवैध खनन की वजह से धीरे-धीरे गायब हो रही हैं। यह न सिर्फ अरावली रीजन के लिए बल्कि दिल्ली-एनसीआर के लिए भी बहुत खतरनाक है।

दरअसल, दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम, फरीदाबाद पहले से ही देश के सबसे प्रदूषित शहरों में शुमार हैं। अरावली में अगर अवैध खनन के जरिए प्रकृति से छेड़छाड़ नहीं की गई होती तो वह दिल्ली समेत अपने आस-पास के प्रदूषण को सोखता। अरावली रीजन दिल्ली-एनसीआर समेत अपने आस-पास के हिस्सों के लिए फेफड़े का काम करता। अरावली को संरक्षित नहीं किया गया, वहां की हरियाली को अगर नहीं बचाया गया तो दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की समस्या और भी ज्यादा विकराल हो सकती है।

अरावली पर्वतमाला भारत के पश्चिमी राज्य गुजरात से शुरू हो कर राजस्थान और हरियाणा में रायसीना पहाड़ियों से पहले तक करीब 700 किलोमीर में फैला हुआ है। अरावली पहाड़ियों का ज्यादाकर हिस्सा (करीब 550 किलोमीटर) राजस्थान में है। इस मामले में दूसरे नंबर पर हरियाणा है। अरावली पर्वत माला हरियाणा के गुरुग्राम, मेवात, फरीदाबाद, पलवट, रेवाड़ी, भिवंडी और महेंद्रगढ़ जैसे जिलों में है।

अरावती पर्वतमाला को अंधाधुंध खनन से जो नुकसान पहुंचा है, उससे पर्यावरण पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ उन राज्यों में पर्यावरण को नुकसान पहुंचा है जहां से पर्वतमाला गुजरी है। अरावली को हो रहे नुकसान का नुकसान दिल्ली-एनसीआर के पर्यावरण को भी हो रहा है। अरावली पर्वतमाला राजस्थान, हरियाणा के साथ-साथ दिल्ली को भी थार रेगिस्तान से आने वाले डस्ट, पलूशन और सैंडस्टॉर्म्स से बचाता है। अगर अरावली की पहाड़ियां नहीं होतीं तो थार रेगिस्तान इन राज्यों में जब-तब डस्टस्टॉर्म की वजह बनता। इसके अलावा अरावली पश्चिम की तरफ से आने वालीं गर्म पछुआ हवाओं को रोकती है और हवाओं के साथ आने वाले सैंड को जमा करती है। इस लिहाज से देखें तो अरावली पर्यावरण की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है और समय रहते अगर उसे नहीं बचाया गया तो नतीजे बहुत खतरनाक होंगे।

अरावली में अवैध खनन का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि 2018 में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से नियुक्त सेन्ट्रल एम्पावर्ड कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि राजस्थान में 1968 से अबतक अवैध खनन से अरावली का 25 प्रतिशत हिस्सा खत्म हो चुका है। रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 50 सालों में राजस्थान में अवैध खनन की वजह से अरावली की 128 पहाड़ियों में से 31 का वजूद खत्म हो चुका है।

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