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Friday, July 4, 2025
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वाजपेयी ने राम से की थी पंडित नेहरू की तुलना! पूर्व PM की आलोचना पर बेहद नाराज हो गए थे गोलवलकर

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नई दिल्ली

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की धर्म और आध्यात्म में गहरी आस्था थी। वह मां आनंदमयी के भक्त थे। पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन से अक्सर उपनिषद पर चर्चा किया करते थे। कभी अटल-आडवाणी के करीबी रहे भाजपा के पूर्व विचारक सुधींद्र कुलकर्णी ने अपने ताजा लेख में यह जानकारी दी है। सुधींद्र कुलकर्णी ने नेहरू के Hinduness पर द इंडियन एक्सप्रेस में लंबा लेख लिखा है। कुलकर्णी भाजपा के पूर्व विचारक और लेखक हैं।

माँ आनंदमयी के भक्त थे नेहरू- कुलकर्णी
कुलकर्णी अपने लेख में हाल की घटनाओं का जिक्र करते हैं, जिनमें पंडित नेहरू को एंटी हिंदू बताने का प्रयास किया जाता है। वह सवाल उठाते हैं कि क्या नेहरू वास्तव में हिंदू विरोधी थे? कुलकर्णी, नेहरू की तीन क्लासिक किताबों- Glimpses of World History (1934), An Autobiography (1936), The Discovery of India (1946) का जिक्र करते हुए कहते हैं कि उनके जीवन का कोई भी सच्चा अध्ययन उनके बारे में फैलाए गए झूठ का पर्दाफाश कर सकता है।

कुलकर्णी लिखते हैं, “नेहरू मंदिर जाने वाले हिंदू नहीं थे। लेकिन उनकी हिंदू आध्यात्मिकता और रहस्यवाद में गहरी रुचि थी, जो उनके बड़े होने के साथ तेज हो गई। हिमालय और गंगा का उनका वर्णन, जिसे वे भारतीय सभ्यता का पालना मानते थे। वह माता आनंदमयी के भक्त थे, जिन्हें उनकी पत्नी कमला और बेटी इंदिरा भी मानती थीं। हिंदू दर्शन पर कई प्रशंसित पुस्तकों के लेखक और भारत के पूर्व राष्ट्रपति (1962-67) ने खुलासा किया है कि नेहरू अपने जीवन के अंतिम वर्षों में उपनिषदों पर चर्चा के लिए अक्सर उनसे मिलते थे।”

‘पर्दा प्रथा के खिलाफ थे नेहरू’
द टाइम्स ऑफ इंडिया के पूर्व मुख्य संपादक गिरिलाल जैन ने अपनी प्रशंसित पुस्तक ‘द हिंदू फेनोमेनन’ में लिखा है, “नेहरू का एक और चेहरा है जो उन्हें अप्रत्यक्ष रूप से हिंदू सभ्यता के समर्थकों के बीच रखता है।” दिलचस्प बात यह है कि 1994 में प्रकाशित इस किताब में भाजपा के उदय और कांग्रेस पर ग्रहण लगने की भविष्यवाणी की गई है।

कुलकर्णी ने लिखा है, “नेहरू बार-बार जीवन के वेदांतिक दृष्टिकोण की प्रशंसा करते हुए जोर देकर कहते थे कि नैतिक और आध्यात्मिक विकास के बिना भौतिक विकास मानवता के लिए विनाशकारी होगा। वह आधुनिकीकरण में अंधविश्वासी नहीं थे और उन्होंने कभी भी इसकी तुलना पश्चिमीकरण से नहीं की। वह चाहते थे कि आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी में महारत हासिल करके भारत तेजी से प्रगति करे, जिसे उनके समय में पश्चिम से सीखना जरूरी था। लेकिन वह विकास के हिंसा-प्रेरित पश्चिमी मॉडलों – पूंजीवादी और साम्यवादी दोनों – की गंभीर सीमाओं और भारत के लिए उनकी अनुपयुक्तता के बारे में गहराई से जानते थे।

कुलकर्णी लिखते हैं कि पंडित नेहरू ने अथक रूप से इस बात पर जोर दिया कि भारत को अस्पृश्यता, जातिगत भेदभाव और महिलाओं के साथ अन्याय जैसे पुराने रीति-रिवाजों और परंपराओं को छोड़ना चाहिए। वह मुस्लिम महिलाओं में पर्दा प्रथा के भी खिलाफ थे। फिर भी उन्होंने भारतीय संस्कृति में हर चीज को कोसने के प्रति आगाह किया।”

‘वाजपेयी ने की थी राम से तुलना’
सुधींद्र कुलकर्णी, नेहरू के निधन के बाद वाजपेयी द्वारा दिये वक्तव्य का जिक्र करते हुए लिखते हैं कि बेशक, आरएसएस, जनसंघ और मोदी-पूर्व भाजपा में नेहरू और उनके आलोचकों के बीच कुछ गंभीर मतभेद थे। इन्हें नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है। लेकिन नेहरू के बारे में कोई ऐसी भद्दी भाषा का इस्तेमाल नहीं करता था। उन्हें लेकर कोई जहरीला तिरस्कार नहीं था, जैसा अब देखने को मिलता है। जब मई 1964 में नेहरू का निधन हुआ, तो अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में यह कहते हुए एक समृद्ध श्रद्धांजलि अर्पित की कि “भारत माता शोक में है क्योंकि उनके प्यारे राजकुमार सो गए हैं”।

नेहरू की तुलना राम से करते हुए वाजपेयी ने कहा था, पंडित जी के जीवन में हमें वाल्मीकि की गाथा में पाए जाने वाले महान भावनाओं की झलक मिलती है। ‘राम की तरह, नेहरू असंभव और अकल्पनीय के सूत्रधार थे … व्यक्तित्व की वह ताकत, वह जीवंतता और मन की स्वतंत्रता, प्रतिद्वंद्वी और दुश्मन को मित्र बनाने में सक्षम होने का गुण, वह सज्जनता, वह महानता – यह शायद नहीं मिलेगी भविष्य में।’

वाजपेयी के अलावा, लालकृष्ण आडवाणी भी अक्सर भारत में संसदीय लोकतंत्र की मजबूत नींव रखने के लिए नेहरू की प्रशंसा करते रहे हैं। साल 2013 में आडवाणी ने अपने एक ब्लॉग में लिखा था कि “नेहरू की धर्मनिरपेक्षता हिंदू नींव पर आधारित थी”।

नेहरू की आलोचना पर बिफर गए थे गोलवलकर
कुलकर्णी अपने लेख में आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक एमएस गोलवलकर का भी जिक्र करते हैं। लिखते हैं कि गोलवलकर ने नेहरू की देशभक्ति और उदात्त आदर्शवाद की प्रशंसा करते हुए और उन्हें “भारत माता के महान सपूत” के रूप में सम्मानित करते हुए भावभीनी श्रद्धांजलि दी थी। एक बार, जब गोलवलकर आरएसएस के स्वयंसेवकों के लिए एक प्रशिक्षण शिविर को संबोधित कर रहे थे, एक प्रतिभागी ने नेहरू की कठोर आलोचना की। इससे वे इतने अप्रसन्न हुए कि उन्होंने उस स्वयंसेवक को न केवल डांटा बल्कि तुरन्त शिविर से चले जाने को भी कहा।

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