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Tuesday, July 1, 2025
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हमास के हमले पर चुप, इजरायल के जवाब से भारी दुख! विपक्ष के फिलिस्तीन दूत से मिलने का मतलब क्या?

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नई दिल्ली

संसद और विधायिकाओं में महिला आरक्षण लागू करने वाले प्रस्ताव पर पूरे विपक्ष का मोदी सरकार को समर्थन देने का मौका अभूतपूर्व था। एआईएमआईएम और आरजेडी के सिवा विपक्ष के किसी भी दल ने सरकारी विधेयक का विरोध नहीं किया था। लेकिन मोदी सरकार के करीब 10 वर्षों में ऐसे बहुत कम ही मौके आए जब विपक्ष ने सरकार का साथ दिया हो- संसद के अंदर या संसद के बाहर। इजरायल-फिलिस्तीन का ताजा मुद्दा ही देख लीजिए। सरकार ने हमास के इजरायल पर हमले को स्पष्ट शब्दों में आतंकी कार्रवाई बताया तो विपक्ष फिलिस्तीन के साथ खड़ा हो गया। ताजा घटनाक्रम में कई दलों के नेता और सांसद भारत में फिलिस्तीन के राजदूत से जाकर मिले और अपना समर्थन जताया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमास के बर्बर हमले पर भारत के इजरायल के साथ खड़े होने का भरोसा दिलाया था। बाद में इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने पीएम मोदी को फोन पर भी हमास की बर्बरता बताई थी। लेकिन विपक्षी नेताओं ने फिलिस्तीन के राजदूत से मिलकर गाजा पर इजरायल की कार्रवाई की निंदा की।

फिलिस्तीनी राजदूत से मिलने वाले नेताओं के नाम
इजरायल और फिलिस्तीन के बीच बढ़ते तनाव के बीच, पूर्व केंद्रीय मंत्रियों और मौजूदा और पूर्व सांसदों सहित विपक्षी नेताओं के एक समूह ने भारत में फिलिस्तीनी राजदूत अदनान मोहम्मद जाबेर अबुलहैजा से मुलाकात की। इस समूह में कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर, श्रीकांत जेना, बसपा सांसद दानिश अली, राजद सांसद मनोज झा, सपा सांसद जावेद अली, जदयू महासचिव केसी त्यागी, सीपीआई प्रमुख डी राजा, सीपीएम नेता नीलोत्पल बसु, सपा नेता शाहिद सिद्दीकी और सीपीआईएमएल शामिल हैं। अन्य लोगों के अलावा, दीपांकर भट्टाचार्य ने भी युद्धग्रस्त क्षेत्र में स्थायी शांति बहाल करने के लिए ‘तीव्र राजनयिक प्रयासों’ और ‘बहुपक्षीय पहल’ पर जोर दिया।

इजरायल के खिलाफ विपक्षी नेताओं का साझा बयान
फिलिस्तीनी दूत के साथ बैठक के तुरंत बाद विपक्षी नेताओं ने एक संयुक्त बयान जारी कर अंतरराष्ट्रीय समुदाय से संघर्ष का शांतिपूर्ण समाधान लाने, फिलिस्तीनी लोगों के अधिकारों का सम्मान करने और गाजा के लोगों को मानवीय सहायता तत्काल पहुंचाने का आग्रह किया। संयुक्त प्रस्ताव पर कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर, राजद के मनोज के झा, सीपीआई के डी राजा, सीपीआई (एम) की सुभाषिनी अली और नीलोत्पल बसु, एसपी के जावेद अली खान, जेडी (यू) के केसी त्यागी समेत कुल 16 नेताओं के नाम हैं।

इस बयान में कहा गया है, ‘अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इजरायल राज्य पर अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन करने और फिलिस्तीनी लोगों के अधिकारों और पहचान का सम्मान करने के लिए दबाव डालना चाहिए। हम क्षेत्र में स्थायी शांति सुनिश्चित करने के लिए गहन राजनयिक प्रयासों और बहुपक्षीय पहल का आह्वान करते हैं।’ इसमें आगे कहा गया है, ‘हम गाजा में चल रहे संकट और फिलिस्तीनियों की पीड़ा को लेकर अपनी गहरी चिंता व्यक्त करते हैं।’ बयान में कहा गया, ‘हम गाजा में इजरायल द्वारा फिलिस्तीनियों पर अंधाधुंध बमबारी की कड़ी निंदा करते हैं, जिसे हम नरसंहार के प्रयास के समान मानते हैं।’

अली ने मुलाकात के बाद सोशल मीडिया पोर्टल एक्स पर जाकर विपक्षी नेताओं की तस्वीरें और प्रस्ताव साझा करते हुए कहा, ‘आज, विभिन्न दलों के सांसदों और राजनेताओं ने फिलिस्तीनी राजदूत से मुलाकात की और इजरायली बलों द्वारा गाजा में मासूम बच्चों सहित फिलिस्तीनी लोगों की बेरहमी से हत्या किए जाने पर गहरी चिंता व्यक्त की। हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय से हस्तक्षेप करने और इस पागलपन को रोकने की मांग करते हैं।’

साझे बयान में फिलिस्तीन पर महात्मा गांंधी के रुख का जिक्र
विपक्षी नेताओं ने आगे कहा कि हम महात्मा गांधी के इस कथन पर दृढ़ता से विश्वास करते हैं: ‘फिलिस्तीन उसी अर्थ में अरबों का है जैसे इंग्लैंड अंग्रेजी का है या फ्रांस फ्रांसीसियों का है,’ जो संप्रभुता को मान्यता देने के महत्व में उनके विश्वास को दर्शाता है। और फिलिस्तीनी लोगों के क्षेत्रीय अधिकार, किसी भी अन्य राष्ट्र के अपनी मातृभूमि के अधिकार की तरह। प्रस्ताव में कहा गया है, ‘यह स्वीकार करते हुए कि फिलिस्तीनी लोगों ने 75 वर्षों से अधिक समय तक अपार पीड़ा सहन की है, हम दृढ़ता से कहते हैं कि अब उनकी दुर्दशा को समाप्त करने का समय आ गया है।’

नेताओं ने अपने साझे बयान में कहा, ‘हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय से संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के अनुसार 1967 की सीमाओं पर एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना को मान्यता देने का आग्रह करते हैं। इस तरह की मान्यता इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष का उचित और स्थायी समाधान सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे फिलिस्तीनी लोगों को अपनी नियति निर्धारित करने और शांति और सुरक्षा में रहने का अवसर मिलता है।’

विपक्ष के बयान में हमास की बर्बरियत का जिक्र तक नहीं
हमास आतंकवादियों के बर्बर हमलों में कम-से-कम 1,300 इजरायली नागरिक मारे गए, जिनमें से अधिकांश आम नागरिक थे। हमास ने पिछले शनिवार को इजरायल में अचानक हमला कर दिया था। जवाबी कार्रवाई में इजराइल ने भी जवाबी कार्रवाई शुरू की जिसमें 1,500 से ज्यादा लोग मारे गए हैं। लेकिन विपक्षी दलों ने निर्दोष इजयारली नागरिकों के साथ हमास की बर्बरता का जिक्र तक नहीं किया। इससे पहले कांग्रेस पार्टी ने अपनी कार्यसमिति की बैठक के बाद फिलिस्तीन के समर्थन में प्रस्ताव जारी किया। इसकी बीजेपी नेताओं ने घोर निंदा की।

सरकार के उलट चलने की जोर पकड़ता रिवाज
दरअसल, 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से सत्ता पक्ष और विपक्ष का किसी भी मुद्दे पर एकमत होना लगभग असंभव सा हो गया है। यहां तक कि राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर भी सरकार और विपक्ष में तनातनी ही रहती है। दोनों की इस खींचतान से राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दे भी नहीं बच पाए हैं। 2019 में पुलवामा में सीआरपीएफ जवानों पर आतंकी हमला हो या उसके बाद पाकिस्तान के अंदर सेना की सर्जिकल स्ट्राइक हो, सत्ता और विपक्ष ने हमेशा एक-दूसरे से अलग रुख अपनाए रखा। आम आदमी पार्टी (आप) के प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री ने सेना की स्ट्राइक का प्रमाण तक मांग लिया था। फिर चीन से संघर्ष के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी चीनी राजदूत से मिले। बड़ी बात है कि राहुल ने इस मुलाकात को गुप्त रखने की कोशिश की।

आखिर कब तक यूं ही होता रहेगा अंधाधुंध विरोध?
इसी तरह, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने की प्रक्रिया तेज करने वाले प्रावधान सीएए पर भी विपक्ष का जबर्दस्त विरोध किया। सीएए को भारत के मुसलमानों के खिलाफ बताया गया जिसका कोई सिर-पैर नहीं है, लेकिन विपक्ष के बहकावों में आकर देश में कई जगहों पर मुसलमानों ने जमकर उधम मचाया। यही नहीं, विपक्ष ने सेना में भर्ती की नई अग्निवीर योजना से लेकर संसद के नए भवन तक का विरोध किया। ऐसे में सरकार ने इजरायल के अधिकारों की बात की तो विपक्ष के फिलिस्तीन के हक में बात करना स्वाभाविक सा हो गया था। पता नहीं, बिना तर्क, बिना आधार के यूं अंधाधुंध विरोध का सिलसिला कहां जाकर रुकेगा? सवाल यह भी है कि आखिर सरकार भी कम-से-कम राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर विपक्ष के साथ राय-मशविरा करके उन्हें साथ लाने की कोशिश क्यों नहीं करती?

 

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