नई दिल्ली,
मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की मांग करने वाली याचिकाओं पर बुधवार को सुनवाई हुई. इससे पहले मामले को चीफ जस्टिस के सामने उठाया गया. सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने मैरिटल रेप के मामले पर जल्द सुनवाई की मांग करते हुए कहा कि केस सुनवाई के लिए अक्सर सूचीबद्ध होता है लेकिन उस पर सुनवाई नहीं हो पाती. इसकी कोई तारीख तय कर दी जाए.
वहीं, एक अन्य वकील ने अदालत को बताया कि केंद्र सरकार की तरफ अभी तक जवाब दाखिल नहीं किया गया है. CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर केंद्र सरकार जवाब दाखिल नहीं कर रही है, तो सरकार कानून के मुद्दे पर बहस करे. आज मामला सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है, देखते हैं क्या होता है. आखिर में तारीख पर फैसला लेने पर विचार करेंगे.
दरअसल, याचिकाकर्ता की वकील इंदिरा जयसिंह और करुणा नंदी ने सुप्रीम कोर्ट से जल्द सुनवाई की मांग की थी. इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस सी हरिशंकर की बेंच ने खंडित यानी अलग-अलग निर्णय सुनाया था.
दिल्ली HC के आदेश को चुनौती
दिल्ली हाई कोर्ट में जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस सी हरिशंकर की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई कर 11 मई 2022 को फैसला सुनाया था. जस्टिस राजीव शकधर ने वैवाहिक बलात्कार के अपवाद को रद्द करने का समर्थन किया था. वहीं, जस्टिस सी हरि शंकर ने कहा कि आईपीसी के तहत अपवाद असंवैधानिक नहीं है. ये तो एक बौद्धिक अंतर पर आधारित है.
इसके बाद मामले की सुनवाई बड़ी बेंच के समक्ष कराए जाने की सिफारिश की गई थी. इस पर साल भर से ज्यादा गुजर जाने के बावजूद हाई कोर्ट ने जब कोई फैसला नहीं लिया तो, याचिकाकर्ता खुशबू सैफी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और दिल्ली हाईकोर्ट के खंडित निर्णय को चुनौती दी है.
सुप्रीम कोर्ट को लेना है फैसला
अब सुप्रीम कोर्ट को ये तय करना है कि मैरिटल रेप अपराध है या नहीं. भारतीय कानून में मैरिटल रेप कानूनी अपराध नहीं है. इसे अपराध घोषित करने की मांग को लेकर कई संगठन लंबे वक्त से मांग कर रहे हैं. दिल्ली हाईकोर्ट में आईपीसी की धारा 375 (दुष्कर्म) के तहत मैरिटल रेप को अपवाद माने जाने को लेकर संवैधानिक तौर पर चुनौती दी गई.
मैरिटल रेप में भारत में क्राइम नहीं
अगस्त 2021 में केरल हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा था कि भारत में मैरिटल रेप के लिए सजा का प्रावधान नहीं है, इसके बावजूद ये तलाक का आधार हो सकता है. हालांकि, केरल हाई कोर्ट ने भी मैरिटल रेप को क्राइम मानने से इनकार कर दिया.
‘सताने का हथियार’
मैरिटल रेप यानी वैवाहिक बलात्कार भारत में अपराध नहीं है. अगर कोई पति अपनी पत्नी से उसकी सहमति के बगैर सेक्सुअल रिलेशन बनाता है, तो ये मैरिटल रेप कहा जाता है लेकिन इसके लिए कोई सजा का प्रावधान नहीं है. साल 2017 में मैरिटल रेप को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा था, ‘मैरिटल रेप को अपराध करार नहीं दिया जा सकता है और अगर ऐसा होता है, तो इससे शादी जैसी पवित्र संस्था अस्थिर हो जाएगी. ये तर्क भी दिया गया कि ये पतियों को सताने के लिए आसान हथियार हो सकता है.