बीएचईएल में कुछ अफसरों के अजीबो—गरीब मिजाज हैं। घर से आर्थिक रूप से दम और भारी—भरकम वेतन फिर भी उनकी सोच में बदलाव क्यों नहीं आता। यह आजकल भेल में चर्चा का विषय बना हुआ है। वह भी जगदीशपुर वाले साहब का। उनका तबादला भले ही विजीलेंस इंन्क्वायरी के बाद उनकी मूल यूनिट भोपाल में हो गया हो, लेकिन जलवा आज भी कायम है। कहने को ठेकेदारों का काकस उन्हें छोड़ने तैयार नहीं है और वह काकस को कुछ ठेकों में इस तरह की शर्तें डाल दी गईं कि अपने चहेतों को ही मनमाफिक दर पर काम मिल गया। नए बेचारे खाली हाथ वापस लौट गए। इस साहब का जलवा यह है कि इन्होंने जगदीशपुर में रहते हुए एचआरए में बढ़ा खेल कर दिया। मामला विजीलेंस में पहुंच गया। दूसरे मामले में कुछ ऐसी हेराफेरी कर डाली कि लोगों ने दांतों तले उंगली दबा ली। अब यह मामला भी विजीलेंस को चला गया। दोनों की जांच सेंट्रल विजिलेंस कमीशन में चल रही है। उस पर साहब प्रमोशन पाकर किसी यूनिट को हथियाने की कोशिश में लगे हैं। इसके लिए राजनैतिक दबाव भी बनाने में पीछे दिखाई नहीं दे रहे। हालांकि जलवेदार साहब की नौकरी वर्ष—2027 तक है। फिर वे इस तरह के काम क्यों कर रहे हैं और भेल के मुखिया इन सब कामों को देखकर आंख बंद किए हुए हैं। कम से कम कंपनी के हित में कुछ तो एक्शन लेना चाहिए। क्योंकि जलवेदार साहब की चर्चा पूरे कारखाने में है और बडे साहब मौन हैं।
क्या इंटक भेल के संयुक्त मोर्चे में शामिल होगी!
भेल में इस समय यह चर्चा जोरों पर है कि इंटक यूनियन जल्द ही भेल संयुक्त मोर्चा में शामिल होकर मोर्चा को मजबूती प्रदान करेगी। कारण साफ है कि जब एक यूनियन अपनी नैतिक जिम्मेदारी छोड़ कर कर्मचारियों के हितों को दरकिनार कर एक यूनियन के साथ प्लांट कमेटी की बैठक में जा पहुंची तब भेल संयुक्त मोर्चा को लगा कि नंबर—वन यूनियन और प्रबंधन ने मिलकर खेल कर दिया। इसी के चलते संयुक्त मोर्चा की ऐबू एचएमएस यूनियन ने अपना खेल शुरू कर दिया। अब वह इंटक को संयुक्त मोर्चा में लाने की पूरी कोशिश कर रही है, ताकि उनके मोर्चे में तीन यूनियन शामिल हो जाएं और दो अलग—थलग पड़ जाएं। खैर नंबर—वन तो नंबर—वन ही होती है, लेकिन उसका क्या होगा जो कर्मचारियों का हित छोड़ प्लांट कमेटी की बैठक में जा पहुंची। अब तो खबर यह भी है कि इस यूनियन से कुछ ओर नेता निकलने की तैयारी में लगे हैं। कर्मचारियों का हित छोड़ इनके बड़े नेता अपना तबादला भोपाल करवाने की जीतोड़ कोशिश कर रहे हैं।
भेल के भंडार में अगले माह बैठ सकते हैं प्रशासक
भेल सहकारी उपभोक्ता भंडार कर्मचारियों के हित के लिए बनाई गई थी, उनके हित तो दूर लूट सके तो लूट की तर्ज पर नेताओं ने उसका दम ही निकाल दिया। आज स्थिति यह है कि सोसायटी के कर्मचारी भूखों मरने को मजबूर हैं तो चंद नेताओं ने इस सोसायटी से 400 मजदूर छीन लिए। ऐसे में यह संस्था बंद होने की कगार पर आ गई। अब जब इस संस्था के चुनाव की तारीख करीब आ रही है तो सहकारिता विभाग अपना प्रशासक नियुक्त करने में लग गया है। खबर है कि अगले माह इस संस्था में प्रशासक को बैठा दिया जाएगा। मजेदार बात तो यह भी है कि संस्था के पास चुनाव कराने के पैसे ही नहीं है तो चुनाव कैसे होंगे इसको लेकर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। संस्था तीन करोड़ से ज्यादा घाटे में है। अब तो चर्चा यह शुरू हो गई है कि भेल सहकारिता उपभोक्ता भंडार इस साल के अंत तक पूरी तरह बंद हो सकती है। बड़ी बात यह है कि कुछ नेताओं के कहने पर भेल प्रबंधन ने भी संस्था से हाथ खींच लिए हैं।