नई दिल्ली,
आगामी दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप), भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस के बीच एक कड़ा मुकाबला है. 5 फरवरी को मतदान होना है और 8 फरवरी को नतीजे घोषित किए जाएंगे. यह चुनाव 70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा के नेतृत्व और दिल्ली सरकार के भविष्य का निर्धारण करेगा. अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आप लगातार तीसरी बार सत्ता में आने की कोशिश कर रही है, जबकि भाजपा अपने बढ़ते प्रभाव को मजबूत करने का लक्ष्य बना रही है और कांग्रेस एक ऐसे शहर में अपनी प्रासंगिकता को पुनः प्राप्त करना चाहती है, जहां पिछले कुछ वर्षों में इसकी उपस्थिति काफी कम हो गई है.
दिल्ली आबकारी नीति मामले में विवादों के बावजूद अरविंद केजरीवाल AAP के घोषित मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हैं. पिछले एक साल में पूर्व मुख्यमंत्री ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) दोनों द्वारा गिरफ्तारी के बाद काफी समय हिरासत में बिताया. केजरीवाल और AAP के अन्य वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप इस चुनावी मौसम में भाजपा के लिए हमले का मुख्य बिंदु रहे हैं. हालांकि केजरीवाल को आखिरकार सुप्रीम कोर्ट से दोनों मामलों में जमानत मिल गई, लेकिन लगाई गई सख्त शर्तें AAP के एक और कार्यकाल हासिल करने की स्थिति में उनके प्रभावी ढंग से शासन करने की क्षमता पर सवाल उठाती हैं. यानी अगर केजरीवाल चुनकर आते हैं तो क्या कोर्ट द्वारा लगाई गई तमाम शर्तों के साथ सरकार चला पाएंगे?
प्रतिबंधों के बाद केजरीवाल को देना पड़ा था इस्तीफा
ईडी मामले में जमानत की शर्तों ने केजरीवाल को मुख्यमंत्री कार्यालय और दिल्ली सचिवालय जाने से रोक दिया, उन्हें आधिकारिक फाइलों पर हस्ताक्षर करने से रोक दिया, सिवाय उन मामलों में जहां दिल्ली के उपराज्यपाल की मंजूरी की आवश्यकता थी, और उन्हें मामले पर टिप्पणी करने या गवाहों से बातचीत करने से प्रतिबंधित कर दिया. बाद में सीबीआई मामले में जमानत देते समय सुप्रीम कोर्ट ने इन प्रतिबंधों को दोहराया, जिससे उनके प्रशासनिक कार्यों पर सीमाएं प्रभावी रूप से बढ़ गईं. जबकि इन प्रतिबंधों ने दिल्ली में शासन को लेकर चिंताएं पैदा कीं. इसके बाद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर और रिहा होने के तुरंत बाद वरिष्ठ AAP नेता आतिशी को नेतृत्व सौंपकर इस मुद्दे को टाल दिया. नतीजतन, केजरीवाल के नेतृत्व वाले प्रशासन पर इन शर्तों का कोई व्यावहारिक प्रभाव नहीं पड़ा.
केजरीवाल पर लगीं शर्तें पैदा कर सकती हैं अड़चनें
लेकिन चुनाव जीतने पर दोबारा सीएम बनने पर यह कानूनी दुविधा शासन के लिए अनूठी चुनौतियां खड़ी करती हैं. AAP ने शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और सार्वजनिक सेवाओं में परिवर्तनकारी नीतियों पर अपनी राजनीतिक पहचान बनाई है, जिन्हें व्यापक जन समर्थन मिला है. हालांकि, केजरीवाल की सक्रिय भागीदारी को सीमित करने वाले प्रतिबंधों के साथ, पार्टी की अपने वादों को पूरा करने की क्षमता खतरे में पड़ सकती है. मुख्यमंत्री की भागीदारी की आवश्यकता वाले महत्वपूर्ण निर्णय – जैसे कि कैबिनेट की बैठकें बुलाना, बजट को मंजूरी देना, नीतिगत बदलावों को लागू करना और संकटों का प्रबंधन करने में देरी हो सकती है या प्रतिनिधिमंडल पर अधिक निर्भरता की आवश्यकता हो सकती है. ऐसे में पार्टी के सामने लोगों से किए वादों को पूरा करने की चुनौती बरकरार रहेगी.
जीतने पर कैसे सरकार चलाएंगे केजरीवाल?
केजरीवाल और AAP के लिए एक संभावित कार्रवाई का तरीका सुप्रीम कोर्ट से जमानत की शर्तों में संशोधन की मांग करना है. दिसंबर में अदालत ने पूर्व उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया पर लगाई गई जमानत की शर्त में ढील दी, जिन्हें पहले सप्ताह में दो बार जांच एजेंसियों को रिपोर्ट करना आवश्यक था. केजरीवाल का जमानत आदेश अपने आप में न्यायमूर्ति उज्जल भुयान द्वारा मुख्यमंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों को निभाने की उनकी क्षमता को प्रतिबंधित करने वाली शर्तों के बारे में व्यक्त की गई “गंभीर आपत्तियों” को दर्शाता है.
अगर आम आदमी पार्टी विजयी होती है तो इस अभूतपूर्व शासन परिदृश्य को संभालने की पार्टी की क्षमता महत्वपूर्ण होगी. यह चुनाव न केवल भारत की राजधानी में राजनीतिक प्रभुत्व की लड़ाई है, बल्कि असाधारण परिस्थितियों में शासन के लचीलेपन की भी परीक्षा है.