मणिपुर में आखिर क्यों लगाना पड़ा राष्ट्रपति शासन, बीरेन सिंह का विकल्प नहीं तलाश पाई बीजेपी?

कोलकाता,

मणिपुर में बीरेन सिंह के सीएम पद से इस्तीफे के बाद अब सूबे में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया है. मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच हिंसा के चलते कानून-व्यवस्था की स्थिति गंभीर बनी हुई है. बीते रविवार को बीरेन सिंह ने राज्यपाल अजय कुमार भल्ला से मुलाकात कर मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद से ही नए मुख्यमंत्री के नाम पर मुहर लगाने के लिए बीजेपी नेताओं की बैठकों का दौर शुरू हो गया था. मणिपुर प्रभारी संबित पात्रा बीजेपी के दिग्गज नेताओं के साथ मीटिंग कर रहे थे. हालांकि अब सूबे में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया है.

मणिपुर में गुरुवार को राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया. मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने रविवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. इसके चलते विधानसभा को भी निलंबित कर दिया गया है. मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच हिंसा के चलते गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना में केंद्रीय शासन की घोषणा करते हुए कहा गया है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की राय है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है, जिसमें उस राज्य की सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं चल सकती है.

अधिसूचना में कहा गया है, “अब, संविधान के अनुच्छेद 356 द्वारा प्रदत्त शक्तियों और उस संबंध में मुझे सक्षम बनाने वाली अन्य सभी शक्तियों का प्रयोग करते हुए मैं घोषणा करता हूं कि मैं भारत के राष्ट्रपति के रूप में मणिपुर राज्य सरकार के सभी कार्यों और उस राज्य के राज्यपाल द्वारा निहित या प्रयोग की जा सकने वाली सभी शक्तियों को अपने पास लेती हूं.”

अधिसूचना में कहा गया है कि विधानसभा को निलंबित कर दिया गया है. मणिपुर की राजधानी इंफाल में राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद कंगला किले के बाहर सेना तैनात कर दी गई है. सैनिकों ने इंफाल शहर और उसके आसपास के इलाकों में फ्लैग मार्च किया.

मणिपुर में राष्ट्रपति शासन क्यों लागू हुआ?
अब सवाल उठता है कि मणिपुर में राष्ट्रपति शासन क्यों लागू हुआ? दरअसल, मणिपुर में राष्ट्रपति शासन का मुख्य कारण बीजेपी द्वारा कार्यवाहक मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के उत्तराधिकारी का चयन न कर पाना है, जबकि भाजपा के प्रदेश प्रभारी संबित पात्रा जिस होटल में ठहरे हैं, वहां कई बैठकें हो चुकी हैं. भाजपा नेताओं के साथ लंबी बैठकों के बावजूद संबित पात्रा राज्यपाल अजय कुमार भल्ला को कोई नाम नहीं दे पाए, जबकि 12 घंटे के भीतर दो बार उनसे मुलाकात की. संबित पात्रा 11 तारीख की शाम राज्यपाल से मिले और कोई संभावित मुख्यमंत्री का नाम नहीं बता पाए. बुधवार सुबह उन्होंने फिर राज्यपाल से मुलाकात की, लेकिन कोई नाम नहीं बता पाए.

मणिपुर का नया सीएम नहीं चुने जाने के पीछे मुख्य कारण यह है कि भाजपा संभावित मुख्यमंत्री के नाम पर आम सहमति नहीं बना पाई और कई कारकों ने भाजपा द्वारा कोई चेहरा तय न कर पाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. संबित पात्रा ने पिछले दो दिनों में मौजूदा विधानसभा अध्यक्ष सत्यव्रत सिंह, मंत्री विश्वजीत सिंह, मंत्री खेमचंद, विधायक राधेश्याम, बसंत कुमार सहित कई नेताओं से मुलाकात की. मुख्य ध्यान ऐसे व्यक्ति को चुनने पर था जो मैतेई और कुकी समुदाय को साथ लेकर चल सके और जो भाजपा के अंदर बीरेन और सत्यव्रत दोनों खेमों के लिए भी अनुकूल हो. लेकिन भाजपा ऐसा नाम नहीं ला पाई जो मणिपुर में सभी समुदायों के साथ-साथ मणिपुर भाजपा के दोनों खेमों का नेतृत्व कर सके.

विधानसभा सत्र नहीं बुलाए जाना भी कारण
राष्ट्रपति शासन का एक और कारक संवैधानिक संकट था, जो छह महीने के भीतर विधानसभा सत्र बुलाने की समय सीमा 12 फरवरी को समाप्त होने के कारण पैदा हुआ था. पिछले विधानसभा सत्र की अंतिम तिथि 12 अगस्त थी और दूसरा सत्र 10 फरवरी को शुरू होना था, लेकिन बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद इसे रद्द कर दिया गया और छह महीने के भीतर दो सत्र बुलाने की समय सीमा भी खत्म हो गई.

कुकी नेताओं ने फैसला का किया स्वागत
स्वदेशी आदिवासी नेता मंच (आईटीएलएफ) और कुकी-जो परिषद (केजेडसी) के प्रवक्ता गिन्जा वुअलजोंग ने कहा कि राष्ट्रपति शासन सीएम के बदलाव से ज़्यादा बेहतर है। कुकी-जो अब मैतेई पर भरोसा नहीं करते, इसलिए नया मैतेई सीएम अभी भी उन्हें राहत देने वाला नहीं है। राष्ट्रपति शासन कुकी-जो को उम्मीद की किरण देगा, और हमारा मानना ​​है कि यह हमारे राजनीतिक समाधान के एक कदम और करीब होगा। मेरा मानना ​​है कि राष्ट्रपति शासन के साथ हिंसा को समाप्त करने की जमीनी तैयारी शुरू हो जाएगी, जो राजनीतिक संवाद के लिए अनुकूल माहौल का मार्ग प्रशस्त करेगी.

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