नई दिल्ली
सीपीएम के सीनियर नेता प्रकाश करात ने बीजेपी और आरएसएस की तारीफ की है। उन्होंने कहा कि हम बीजेपी-आरएसएस से लड़ने की बात करते हैं, लेकिन चुनाव के समय। आरएसएस सांस्कृतिक, सामाजिक क्षेत्रों में काम करता है। करात ने अपनी पार्टी की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए बीजेपी और संघ की संगठनात्मक रणनीति से सबक लेने की जरूरत पर जोर दिया।
अपनी पार्टी की रणनीति पर उठाए सवाल
एक इंटरव्यू में करात ने स्पष्ट किया कि उनका यह बयान भाजपा-आरएसएस की तारीफ नहीं, बल्कि सीपीएम की कमियों को उजागर करने और उसका मुकाबला करने की रणनीति पर आत्म-चिंतन है। यह बयान ऐसे समय में आया है, जब वामपंथी दल देश में घटते प्रभाव और पश्चिम बंगाल व केरल जैसे अपने गढ़ों में भी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
‘RSS कई स्तरों पर सक्रिय, हम कहां’
करात ने कहा, “हम भाजपा, आरएसएस और हिंदुत्व ताकतों से लड़ने की बात करते हैं। लेकिन वे कैसे बढ़े हैं? हम ज्यादातर पार्टियों की तरह चुनाव के समय ही संगठन और लड़ाई पर ध्यान देते हैं। आरएसएस सांस्कृतिक और सामाजिक क्षेत्रों में काम करता है, कई स्तरों पर सक्रिय है। हम कहां हैं?”
‘RSS का मुकाबला करने के लिए करना होगा काम’
उनका यह बयान सीपीएम की उस पुरानी आलोचना को पर जोर देता है, जिसमें कहा जाता है कि पार्टी वैचारिक स्तर पर सक्रियता के बजाय चुनावी राजनीति में उलझी रहती है। हालांकि, करात ने साफ किया कि इसका मतलब यह नहीं कि उनकी पार्टी को आरएसएस की नकल करनी चाहिए, बल्कि उसका मुकाबला करने के लिए प्रभावी ढंग से काम करना चाहिए।
‘वामपंथ लोगों की आस्था का विरोधी नहीं’
बिहार और पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले करात का यह बयान काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। पश्चिम बंगाल में 2021 के विधानसभा चुनाव में पार्टी का खाता भी नहीं खुला, जबकि केरल में वह सत्ता में बनी हुई है। करात का यह बयान 2022 में हुए पार्टी कांग्रेस के उस प्रस्ताव से भी जुड़ा है, जिसमें धार्मिक आस्थावानों के बीच काम करने और उन्हें यह समझाने का निर्देश दिया गया था कि वामपंथ उनकी आस्था का विरोधी नहीं, बल्कि धर्म के राजनीतिक दुरुपयोग का खिलाफ है। करात ने माना कि इस दिशा में पार्टी नाकाम रही है।
उन्होंने आगे कहा, “हमें लोगों को यह बताना होगा कि हम उनकी धार्मिक भावनाओं के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि धर्म को हथियार बनाने के खिलाफ हैं।” करात का मानना है कि अगर सीपीआईएम को अपनी प्रासंगिकता बनाए रखनी है, तो उसे चुनावी लड़ाई से इतर जमीनी स्तर पर वैचारिक काम को मजबूत करना होगा।
माना जा रहा है कि करात का यह बयान वामपंथी आंदोलन में एक नई बहस को जन्म दे सकता है। जहां एक ओर यह पार्टी के भीतर आत्म-आलोचना की परंपरा को दर्शाता है, वहीं यह सवाल भी उठता है कि क्या सीपीएम अपनी पुरानी रणनीति में बदलाव के लिए तैयार है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या करात के इस आह्वान का असर पार्टी की कार्यशैली पर पड़ता है या यह महज एक सैद्धांतिक चर्चा बनकर रह जाता है।