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भारत के लिए बड़ी चिंता… ब्रह्म चेलानी ने सिलीगुड़ी के पास बांग्लादेशी एयरबेस को लेकर क्यों दी चेतावनी, चीन कनेक्शन जानें

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ढाका:

बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली सरकार आने के बाद भारत की चिंताएं बढ़ गई हैं। यूनुस ने भारत के खिलाफ पाकिस्तान और चीन से नजदीकियां बढ़ाई हैं। इससे पाकिस्तान और चीन को बांग्लादेश में भारत के खिलाफ गतिविधियां बढ़ाने में मदद मिल रही है। अब भारत के प्रसिद्ध भू-रणनीतिक विश्लेषक और लेखक ब्रह्म चेलानी ने प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने बांग्लादेश में भारतीय सीमा के पास चीनी सहायता से ब्रिटिश काल के लालमोनिरहाट एयरबेस को फिर से एक्टिवेट करने के कदम पर चिंता जताई है। यह एयरबेस भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर के पास स्थित है, जो पूर्वोत्तर भारत को जोड़ने वाला एक संकरा गलियारा है।

बांग्लादेश में एयरबेस बनाएगा चीन
चेलानी ने चेतावनी देते हुए लिखा, “भारत से चीन को करीब 1 बिलियन डॉलर की तीस्ता नदी परियोजना को स्थानांतरित करने की मांग के बाद, बांग्लादेश कथित तौर पर चीनी सहायता से लालमोनिरहाट में पुराने ब्रिटिश काल के एयरबेस को पुनर्जीवित करने की योजना बना रहा है। भारतीय सीमा के पास स्थित दोनों परियोजनाएं भारत की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण निहितार्थ रखती हैं।” यह एयरबेस सिलीगुड़ी कॉरिडोर से बमुश्किल 20 किमी की दूरी पर स्थित है।

भारत के लिए क्यों बजी खतरे की घंटी
चेलानी ने कहा, “एक सक्रिय लालमोनिरहाट एयरबेस चीन की भारतीय सैन्य प्रतिष्ठानों, सैन्य टुकड़ियों की आवाजाही और भारत के रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण सिलीगुड़ी कॉरिडोर (चिकन नेक) सहित महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे पर हवाई निगरानी और टोही करने की क्षमता को बहुत बढ़ा देगा।” उन्होंने आगे कहा, “इस कॉरिडोर के पास कोई भी सैन्य उपस्थिति या बढ़ी हुई हवाई गतिविधि भारत के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है, क्योंकि इसके बाधित होने से भारतीय पूर्वोत्तर क्षेत्र प्रभावी रूप से भारतीय मुख्य भूमि से कट जाएगा।”

चीन कैसे कर सकता है इस्तेमाल?
उन्होंने कहा, संघर्ष की स्थिति में, भले ही चीनी लड़ाकू विमानों द्वारा सीधे इस्तेमाल न किया जाए, लालमोनिरहाट चीन के लिए एक रसद केंद्र के रूप में काम कर सकता है, जो क्षेत्र में कर्मियों, उपकरणों या खुफिया संपत्तियों की आवाजाही को सुविधाजनक बनाता है।”

भारत की पैनी नजर
इस साल मार्च में बांग्लादेश ने चीनी समर्थन से निष्क्रिय द्वितीय विश्व युद्ध के युग के एयरफील्ड को एक्टिवेट करने की योजना का खुलासा किया था। इसके बाद से ही भारत की सुरक्षा एजेंसियां घटनाक्रम पर बारीकी से नजर रख रही हैं। मूल रूप से 1931 में अंग्रेजों द्वारा निर्मित और बर्मा अभियान के दौरान बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया, लालमोनिरहाट बेस 1947 के बाद प्रासंगिकता खो गया और बांग्लादेश की स्वतंत्रता के बाद से काफी हद तक निष्क्रिय रहा।

बांग्लादेशी वायुसेना करती है इस्तेमाल
यह एयरफील्ड वर्तमान में बांग्लादेश वायु सेना (BAF) की देखभाल और मेंटीनेंस यूनिट की मेजबानी करता है। भारतीय एजेंसियां कथित तौर पर यह आकलन कर रही हैं कि इसका उपयोग भविष्य के विमान तैनाती या प्रशिक्षण मिशनों के लिए किया जा सकता है या नहीं। रक्षा सूत्रों ने असम ट्रिब्यून को बताया, “हमें यह देखना होगा कि क्या बांग्लादेश चीन और पाकिस्तान जैसे अन्य देशों को इसका इस्तेमाल करने देगा। बांग्लादेश को अपने सुरक्षा कारणों से हवाई क्षेत्र विकसित करने का अधिकार है, लेकिन इसका इस्तेमाल भारत के खिलाफ नहीं किया जाना चाहिए।”

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