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Sunday, November 9, 2025
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कोरोना जैसा वायरस फैलने का खतरा! वैज्ञानिकों ने दी आफत की चेतावनी

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स्टॉकहोम,

कोरोनावायरस के कई वैरिएंट्स आए. दुनियाभर में कोविड-19 (Covid-19) महामारी फैली. लाखों लोग मारे गए. करोड़ों बीमार हुए. अब भी नए वैरिएंट्स आ रहे हैं. किसी ने कहा कि ये वैरिएंट चमगादड़ से आए. किसी ने कहा पक्षियों से. लेकिन दुनिया में अगली महामारी इनमें से किसी जीव से नहीं आएंगे. ये आएंगे पिघलते हुए ग्लेशियरों के नीचे से. ग्लेशियरों के नीचे कई प्राचीन बैक्टीरिया और वायरस दबे हैं, जो बाहर आए तो धरती पर तबाही मचनी तय है. इनसे समुद्री जीव संक्रमित होंगे. उनसे पक्षी और फिर अन्य जीव. बाद में इंसान भी संक्रमित होंगे.

बढ़ते वैश्विक तापमान (Global Warming) और जलवायु परिवर्तन की वजह से ग्लेशियर पिघलते जा रहे हैं. इन ग्लेशियरों के नीचे करोड़ों सालों से बैक्टीरिया और वायरस दफन हैं. ये वहीं पर प्रजनन करके अपनी पीढ़ियों को बढ़ा रहे हैं. एक नई स्टडी में इस बात का खुलासा हुआ है कि आर्कटिक की ग्लेशियल झीलें (Glacial Lakes) खतरनाक महामारी फैलाने लायक बैक्टीरिया और वायरस का प्रजनन केंद्र है. यहां से जो वायरस निकलेंगे उनसे ईबोला, इंफ्लूएंजा से भी भयानक महामारियां फैलेंगी.

हाल ही में वैज्ञानिकों ने आर्कटिक सर्किल के उत्तर में मौजूद लेक हेजेन (Lake Hazen) की स्टडी की. उन्होंने वहां कि मिट्टी और सेडिमेंट्स की जांच की. वहां से डीएनए और आरएनए हासिल कर, उनकी सिक्वेंसिंग की. ताकि वायरस, बैक्टीरिया का पता चल सके. एक कंप्यूटर एल्गोरिदम के जरिए यह पता लगाने की कोशिश की कौन से वायरस जानवरों के हैं. कौन से पेड़ पौधों के हैं. कौन से उस इलाके में मौजूद फंगस में हैं. तब जाकर पता चला कि यहां से वायरस लीक का खतरा बहुत ज्यादा है. ये समुद्री जीवों से जमीनी जीव और उसके बाद इंसानों तक पहुंच सकते हैं.

प्रासीडिंग्स ऑफ द रॉयल सोसाइटी बी में छपी रिपोर्ट के मुताबिक ग्लेशियर के पिघलते ही इन वायरसों के फैलने का खतरा बढ़ जाएगा. इन सबकी वजह क्लाइमेट चेंज है. जलवायु परिवर्तन की वजह से विभिन्न प्रजातियों के जीव-जंतुओं में वायरल वेक्टर बदल रहे हैं. ऊंचाई वाले आर्कटिक इलाके नई महामारियों का गढ़ बन सकते हैं. वैज्ञानिकों ने वायरस और उसके होस्ट के पैदा होने और विकास की स्टडी की. पता चला कि वायरसों से महामारी फैलने का खतरा है.

क्योंकि अगर वायरसों के इतिहास को देखेंगे तो पता चलेगा कि ये किसी भी तरह के होस्ट में विकसित होने की क्षमता रखते हैं. यानी जानवरों में, इंसानों में या फिर पेड़-पौधों में. या फिर एक दूसरे में ट्रांसफर भी हो सकते हैं. वैज्ञानिको को सबसे बड़ा डर ये हैं कि जिस तरह से दुनिया भर का तापमान बढ़ रहा है. जितनी तेजी से ग्लेशियर पिघल रहे हैं, उससे ऐसे प्राचीन वायरसों और बैक्टीरियाओं से फैलने वाली महामारी का खतरा बढ़ गया है.

क्योंकि जैसे ही जलवायु परिवर्तन की वजह से आर्कटिक का माइक्रोबायोस्फेयर बदलेगा. ये सभी बैक्टीरिया और वायरस बाहर निकल कर अपने लिए नए होस्ट खोजेंगे. नए होस्ट यानी वो जीव जिनपर ये सर्वाइव कर सकें. अपनी पीढ़ियों को बढ़ा सकें. जैसा कोरोनावायरस इंसानों के शरीर में कर रहा है. पीढ़ियों को बढ़ाने के लिए नए-नए वैरिएंट्स के रूप में बाहर आ रहा है. जरूर नहीं कि इस महामारी के लिए सीधे तौर पर इंसान जिम्मेदार हो लेकिन तापमान तो इंसानों की वजह से बढ़ रहा है. ऐसे में ग्लेशियर पिघलेंगे ही.

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