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Friday, October 24, 2025
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अनुच्छेद 142 लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ परमाणु मिसाइल बन गया है, उपराष्ट्रपति ऐसा क्यों बोले

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नई दिल्ली

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका पर तीखा हमला किया है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई है। यह फैसला राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों को मंजूरी देने के लिए समय सीमा तय करता है। उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि ऐसी स्थिति नहीं होनी चाहिए जहां अदालतें राष्ट्रपति को निर्देश दें। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 142 को ‘लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ परमाणु मिसाइल’ बताया। उन्होंने कहा कि यह न्यायपालिका को 24×7 उपलब्ध है।

उपराष्ट्रपति ने न्यायपालिका पर उठाए सवाल
राज्यसभा के इंटर्न के 6वें बैच को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के घर से भारी मात्रा में नकदी मिलने की घटना का जिक्र किया। उन्होंने कहा, ’14 और 15 मार्च की रात नई दिल्ली में एक जज के घर पर एक घटना हुई। सात दिनों तक किसी को इसके बारे में पता नहीं चला। हमें खुद से सवाल पूछने होंगे। क्या इस देरी को समझा जा सकता है? क्या इसे माफ किया जा सकता है? क्या इससे कुछ बुनियादी सवाल नहीं उठते? किसी भी सामान्य स्थिति में, और सामान्य स्थितियां कानून के शासन को परिभाषित करती हैं – चीजें अलग होतीं। यह केवल 21 मार्च को एक अखबार द्वारा खुलासा किया गया था, जिससे देश के लोग पहले कभी नहीं इतने हैरान हुए।’

एनडीटीवी के मुताबिक उपराष्ट्रपति ने आगे कहा, ‘इसके बाद, सौभाग्य से, सार्वजनिक डोमेन में हमारे पास आधिकारिक स्रोत, भारत के सर्वोच्च न्यायालय से इनपुट था, और इनपुट ने अपराधबोध का संकेत दिया। इनपुट से संदेह नहीं हुआ कि कुछ गड़बड़ है। कुछ की जांच करने की आवश्यकता है। अब राष्ट्र सांस रोककर इंतजार कर रहा है। राष्ट्र बेचैन है क्योंकि हमारे संस्थानों में से एक, जिसे लोगों ने हमेशा सर्वोच्च सम्मान और सम्मान के साथ देखा है, कटघरे में खड़ा है।’

नकदी मिलने के बाद भी जज के खिलाफ FIR नहीं
उपराष्ट्रपति ने कहा कि नकदी मिलने के बाद भी जज के खिलाफ FIR दर्ज नहीं की गई है। उन्होंने कहा, ‘इस देश में किसी के भी खिलाफ FIR दर्ज की जा सकती है, किसी भी संवैधानिक पदाधिकारी के खिलाफ, जिसमें आपके सामने वाला भी शामिल है। किसी को केवल कानून के शासन को सक्रिय करना है। किसी अनुमति की आवश्यकता नहीं है। लेकिन अगर यह न्यायाधीश हैं, उनकी श्रेणी, FIR सीधे तौर पर दर्ज नहीं की जा सकती है। इसे न्यायपालिका में संबंधित द्वारा अनुमोदित किया जाना है, लेकिन यह संविधान में नहीं दिया गया है।’

अगर कैश कहीं और मिलता तो यह खबर रॉकेट बन जाती-धनखड़
उन्होंने आगे कहा, ‘भारत के संविधान ने केवल माननीय राष्ट्रपति और माननीय राज्यपालों को अभियोजन से प्रतिरक्षा प्रदान की है, तो कानून से परे एक श्रेणी को यह प्रतिरक्षा कैसे मिली? क्योंकि इसके बुरे प्रभाव हर किसी के दिमाग में महसूस किए जा रहे हैं। हर भारतीय, युवा और बुजुर्ग इसे लेकर चिंतित है। अगर यह घटना उनके घर पर हुई होती, तो इलेक्ट्रॉनिक रॉकेट बन गई होती। अब यह एक बैलगाड़ी भी नहीं है।’ उपराष्ट्रपति धनखड़ सीनियर एडवोकेट रहे हैं जिन्होंने राजस्थान हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वकालत की है।

सवाल-जजों की समिति जांच क्यों कर रही?
धनखड़ ने कहा कि कोई भी जांच कार्यपालिका का क्षेत्र है। उन्होंने सवाल किया कि तीन न्यायाधीशों की एक समिति नकदी जब्ती मामले की जांच क्यों कर रही है। उन्होंने पूछा, ‘क्या तीन न्यायाधीशों की इस समिति को संसद से निकलने वाले किसी कानून के तहत कोई मंजूरी मिली हुई है? नहीं, और समिति क्या कर सकती है? समिति अधिक से अधिक एक सिफारिश कर सकती है। सिफारिश किसे? और किस लिए? न्यायाधीशों के लिए हमारे पास जिस तरह का तंत्र है, उसमें अंततः जो कार्रवाई की जा सकती है, वह संसद द्वारा ही की जा सकती है। जब हटाने की कार्यवाही शुरू की जाती है, तो एक महीना बीत चुका है, उससे अधिक, और जांच में तेजी की जरूरत है। देश के नागरिक के रूप में और जिस पद पर मैं हूं, मैं चिंतित हूं। क्या हम कानून के शासन को कमजोर नहीं कर रहे हैं?’

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर उपराष्ट्रपति ने की टिप्पणी
उपराष्ट्रपति की न्यायपालिका के खिलाफ कड़ी टिप्पणी एक तमिलनाडु मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आई है। इस आदेश में कहा गया है कि राज्यपाल आरएन रवि का 10 विधेयकों पर सहमति रोकने का फैसला ‘अवैध’ और ‘मनमाना’ था। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने विधायिका द्वारा दूसरी बार पारित विधेयकों पर राष्ट्रपति और राज्यपाल की सहमति के लिए प्रभावी रूप से तीन महीने की समय सीमा तय की। अदालत ने यह भी कहा कि राष्ट्रपति के कार्य संविधान के अनुच्छेद 201 के तहत न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में यह भी कहा कि केवल अदालतों को ही किसी विधेयक की संवैधानिकता के बारे में सिफारिशें प्रदान करने का विशेषाधिकार है और कार्यपालिका को ऐसे मामलों में संयम बरतना चाहिए।

भारत के राष्ट्रपति एक बहुत ही ऊंचा पद है
धनखड़ ने कहा कि भारत के राष्ट्रपति एक बहुत ही ऊंचा पद है और संविधान को बनाए रखने, उसकी रक्षा करने और बचाव करने की शपथ लेते हैं। उन्होंने कहा, “हाल के फैसले में राष्ट्रपति को एक निर्देश दिया गया है। हम कहां जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है? हमें बेहद संवेदनशील होना होगा। यह किसी के समीक्षा दायर करने या न करने का सवाल नहीं है। हमने इस दिन के लिए लोकतंत्र की सौदेबाजी कभी नहीं की। राष्ट्रपति को समयबद्ध तरीके से निर्णय लेने के लिए कहा जा रहा है, और यदि नहीं, तो कानून बन जाता है। तो हमारे पास ऐसे न्यायाधीश हैं जो कानून बनाएंगे, जो कार्यकारी कार्य करेंगे, जो सुपर-संसद के रूप में कार्य करेंगे, और बिल्कुल कोई जवाबदेही नहीं होगी क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता है।”

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को विशेष शक्तियां प्रदान करने वाले प्रावधान के बारे में कहा, ‘हमारे पास ऐसी स्थिति नहीं हो सकती जहां आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देशित करें और किस आधार पर? संविधान के तहत आपके पास एकमात्र अधिकार अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करना है। वहां, पांच या अधिक न्यायाधीश होने चाहिए… अनुच्छेद 142, अनुच्छेद 142 लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ एक परमाणु मिसाइल बन गया है, जो न्यायपालिका को 24 x 7 उपलब्ध है।’

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