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सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान कर्नल सोफिया कुरैशी का जिक्र, जानें महिला सैन्य अधिकारियों से जुड़े मामले में क्या बोला SC

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नई दिल्ली

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कह है कि वह उन शॉर्ट सर्विस कमीशन महिला सैन्य अधिकारियों को सेवा से मुक्त न करे, जिन्होंने स्थायी कमीशन (पीसी) देने से इनकार किए जाने के फैसले को चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि मौजूदा स्थिति में उनका मनोबल नहीं गिराया जाना चाहिए।

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जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने 69 अधिकारियों की याचिकाओं को अगस्त में सुनवाई के लिए लिस्टेड करते हुए कहा कि अगली सुनवाई तक उन्हें सेवा से मुक्त नहीं किया जाना चाहिए। जस्टिस कांत ने कहा कि मौजूदा स्थिति में हमें उनका मनोबल नहीं गिराना चाहिए। वे प्रतिभाशाली अधिकारी हैं, आप उनकी सेवाएं कहीं और ले सकते हैं। यह समय नहीं है कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट में इधर-उधर भटकने के लिए कहा जाए।

हर साल 250 कर्मियों को स्थायी कमीशन
केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने बताया कि यह सशस्त्र बलों को युवा बनाए रखने की नीति पर आधारित एक प्रशासनिक निर्णय था। उन्होंने शीर्ष अदालत से उन्हें सेवा मुक्त किए जाने पर कोई रोक नहीं लगाने का आग्रह किया। एएसजी ने कहा कि भारतीय सेना को युवा अधिकारियों की जरूरत है और हर साल केवल 250 कर्मियों को स्थायी कमीशन दिया जाना है।

कर्नल सोफिया कुरैशी के मामले का जिक्र
कर्नल गीता शर्मा की तरफ से पेश सीनियर अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी ने कर्नल सोफिया कुरैशी के मामले का उल्लेख किया, जो उन दो महिला अधिकारियों में से एक हैं, जिन्होंने 7 और 8 मई को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बारे में मीडिया को जानकारी दी थी। गुरुस्वामी ने कहा कि कर्नल कुरैशी को स्थायी कमीशन से संबंधित इसी तरह की राहत के लिए इस अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा था और अब उन्होंने देश को गौरवान्वित किया है।

उपलब्धियों से कोई लेना-देना नहीं
पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत के समक्ष जो मामला है, वह पूरी तरह कानूनी है और इसका अधिकारियों की उपलब्धियों से कोई लेना-देना नहीं है। शीर्ष अदालत ने 17 फरवरी, 2020 को कहा था कि सेना में स्टाफ नियुक्तियों को छोड़कर सभी पदों से महिलाओं को पूरी तरह बाहर रखे जाने के कदम का बचाव नहीं किया जा सकता और कमांड नियुक्तियों के लिए उन पर बिना किसी औचित्य के कतई विचार न करने का कदम कानून के तहत बरकरार नहीं रखा जा सकता।

दलील समानता के सिद्धांत के खिलाफ
न्यायालय ने सेना में महिला अधिकारियों के स्थायी कमीशन (पीसी) की अनुमति दे दी थी और सरकार की उस दलील को परेशान करने वाली और समानता के सिद्धांत के विपरीत बताया था जिसमें शारीरिक सीमाओं और सामाजिक चलन का हवाला देते हुए कमान मुख्यालय में नियुक्ति नहीं देने की बात कही गई थी।

महिला अधिकारियों ने देश का मान बढ़ाया
न्यायालय ने तब कहा था कि अतीत में महिला अधिकारियों ने देश का मान बढ़ाया है और सशस्त्र सेनाओं में लैंगिक आधार पर भेदभाव समाप्त करने के लिए सरकार की मानसिकता में बदलाव जरूरी है। साल 2020 के फैसले के बाद से, शीर्ष अदालत ने सशस्त्र बलों में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन के मुद्दे पर कई आदेश पारित किए हैं और इसी तरह के आदेश नौसेना, भारतीय वायु सेना और तटरक्षक बल के मामले में पारित किए गए थे।

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