नई दिल्ली
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को उस समय जोरदार झटका लगा जब प्रक्षेपण यान पीएसएलवी-सी 61 का मिशन फेल हो गया और 18 मई की सुबह एक निगरानी उपग्रह को टारगेट ऑर्बिट में रखने में विफल रहा। यह इसरो का 101 वां मिशन था और 32 वर्षों में इसके वर्कहॉर्स रॉकेट -पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल से जुड़ी केवल तीसरी विफलता थी। तीसरे चरण में चैम्बर प्रेशर में गिरावट के कारण उपग्रह को निर्धारित कक्षा में नहीं पहुंचाया जा सका।
क्या है PSLV C-61 मिशन?
इसरो के इस मिशन का उद्देश्य एक Earth Observation Satellite (ईओएस -09) को सूर्य-समकालिक ध्रुवीय कक्षा (अवलोकन और टोही मिशनों के लिए उपयोग किया जाता है) में रखना था। इसे RISAT-1B के रूप में भी जाना जाता है और यह EOS-09 उन्नत सी-बैंड सिंथेटिक एपर्चर रडार से लैस था।
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EOS-09 को लॉन्च करने का उद्देश्य क्या था
बता दें कि EOS-09 को लॉन्च करने का मकसद सिंथेटिक एपर्चर रडार (SAR) के माध्यम से हर मौसम में पृथ्वी का अवलोकन करना था। कृषि, जंगल, मिट्टी की आर्द्रता, आपदा प्रबंधन के लिए निरंतर रिमोट सेंसिंग डेटा प्रदान करना है। इसके अलावा रिमोट सेंसिंग की आवृत्ति और विश्वसनीयता में वृद्धि करना।
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किस तकनीकी गड़बड़ी से मिशन फेल हो गया?
बता दें कि पहले और दूसरे चरण में इसने सामान्य रूप से काम किया था। लेकिन तीसरे चरण में पहुंचने के बाद चैंबर प्रेशर में गिरावट देखी गई जो कि HTPB (हाइड्रॉक्सिल-टर्मिनेटेड पॉलीब्यूटाडीन)-आधारित ठोस ईंधन का उपयोग करता है। बताया जा रहा है कि इसी प्रेशर में गिरावट के चलते ही यह निर्धारित कक्षा में नहीं पहुंचाया जा सका। हालांकि, अब एक गहन जांच से ही वास्तविक कारणों का पता चलेगा, हांलांकि संभावित कारणों में ईंधन के जलने को प्रभावित करने वाले खराब आंतरिक इन्सुलेशन या दोषपूर्ण नोजल शामिल हो सकते हैं।
बता दें कि 18 मई की विफलता भी इस साल इसरो की लगातार दूसरी मिशन विफलता थी। जनवरी में, NVS-02 नेविगेशन उपग्रह को उसके लिक्विड एपोजी मोटर में ऑक्सीडाइजर वाल्व में खराबी के कारण उसकी अंतिम कक्षा में नहीं ले जाया जा सका था। इसरो के वैज्ञानिकों के अनुसार, अक्टूबर 1994 में अपने पहले सफल मिशन के बाद एजेंसी के प्रक्षेपण वाहनों के बेड़े का हिस्सा बनने के बाद से PSLV ने अपनी मूल तकनीक में कोई समस्या नहीं दिखाई थी।
राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से कितना महत्वपूर्ण था?
इस मिशन का उद्देश्य देश भर में तात्कालिक समय पर होने वाली घटनाओं की जानकारी जुटाने की आवश्यकता को पूरा करना था। जो कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर बहुत ही अधिक महत्वपूर्ण था। इसका रडार ज़मीन की छोटी-मोटी गड़बड़ियों जैसे कि मिट्टी में ताजा बदलाव या नए शिविरों का पता लगाने में सक्षम था, जिससे दुश्मन की घुसपैठ को ट्रैक करने और लगातार, वास्तविक समय की खुफिया जानकारी के साथ आतंकवाद विरोधी अभियानों का समर्थन करने में मदद मिलती।
इसरो प्रमुख ने हाल ही में खुलासा किया था कि राष्ट्र की सुरक्षा के लिए रणनीतिक उद्देश्यों के साथ वर्तमान में 10 उपग्रह काम कर रहे हैं। उनकी टिप्पणी भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य संघर्ष के बीच आई है जो 7 मई को समाप्त हो गया।
उन्होंने बताया था कि स्पेस इंफ्रास्ट्रक्चर में उपग्रह और उनके सहायक ग्राउंड सिस्टम शामिल हैं – राष्ट्रीय रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये संपत्तियां सैन्य अभियानों, खुफिया जानकारी जुटाने, सुरक्षित संचार का समर्थन करती हैं और उपग्रह-आधारित नेविगेशन और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली जैसे महत्वपूर्ण कार्यों को भी रेखांकित करती हैं। इसके अलावा RISAT-1B को पांच इमेजिंग मोड का समर्थन करने के लिए डिज़ाइन किया गया था