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Tuesday, July 1, 2025
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कांग्रेस, सपा और चाचा… राहुल गांधी के इर्द-गिर्द कैसे घूम रही ‘यादव’ कुनबे की राजनीति?

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नई दिल्‍ली

यूपी में यादव परिवार का अलग राजनीतिक रसूख रहा है। मुलायम सिंह यादव के हाथों में जब तक कमान रही तब तक कुनबा एक रहा। हालांकि, बुजुर्ग होते पूर्व मुख्‍यमंत्री की पकड़ ढीली पड़ते ही परिवार अपनी-अपनी राह पर चल पड़ा। समाजवादी पार्टी (SP) में अखिलेश के मुखिया बनने के साथ चाचा शिवपाल यादव के सीने में आग लग गई। चाचा-भतीजे की इस जंग का नजला पार्टी पर ग‍िरा। पारिवारिक फूट के चलते सिर्फ सपा का ग्राफ ही नीचे नहीं गया, यह दो धड़ों में भी बंट गई। चाचा शिवपाल ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (PSP) के रूप में सपा का अलग वर्जन ही बना डाला। इसके बाद शुरू हुआ शह-मात का खेल। यहीं से कांग्रेस केंद्र में आई। आपस में दुश्‍मन बन चुके चाचा-भतीजे की राजनीति देश की सबसे पुरानी पार्टी के इर्दगिर्द घूमने लगी। स‍ियासी दंगल में एक-दूसरे को पटखनी देने के लिए राहुल गांधी का साथ तलाशा जाने लगा। आज भी यह जारी है। कांग्रेस के राहुल दोनों की पॉलिटिक्‍स के केंद्र में हैं।

राहुल, अखिलेश और शिवपाल के रिश्‍ते बनते बिगड़ते रहे हैं। ये पूरी तरह इस बात पर निर्भर रहे हैं कि चाचा और भतीजे में से कौन राहुल के नजदीक गया है। जब भी अखिलेश राहुल गांधी के करीब हुए चाचा बिदक गए। वहीं, भतीजे के समीकरण बिगड़ते ही शिवपाल राहुल पर डोरे डालने लगे। हाल में राहुल और अखिलेश की करीबी दोबारा बढ़ते हुए दिखी है। गुजरे दिनों मनी लॉन्ड्रिंग मामले में राहुल गांधी से ईडी ने पूछताछ की। इसमें कांग्रेस नेता को सपा प्रमुख का साथ मिला। राहुल के समर्थन में अखिलेश ने तंज कसते हुए कहा था कि ईडी का मतलब ‘एग्‍जामिनेशन इन डेमोक्रेसी’ (लोकतंत्र में परीक्षा) बन गया है। राजनीति में विपक्ष को ये परीक्षा पास करनी होती है। जब सरकार खुद फेल हो जाती है तब वह इस परीक्षा का ऐलान करती है। जिनकी तैयारी अच्छी होती है वे न तो लिखा-पढ़ी की परीक्षा से डरते हैं, न मौखिक से… और कभी डरना भी नहीं चाहिए।’

चाचा-भतीजे की नई खटपट
इसके बाद राष्‍ट्रपति चुनाव में भी अखिलेश यादव ने विपक्ष के उम्‍मीदवार यशवंत सिन्‍हा का खुलकर समर्थन किया। बात सिर्फ समर्थन की नहीं है। यह दिखाता है कि अखिलेश अपनी राजनीति को किस तरफ ले जाना चाहते हैं। हालांकि, चाचा ने इसी बहाने भतीजे पर हमला कर दिया। सिन्हा को समर्थन देने के सपा के फैसले पर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी अध्यक्ष और सपा विधायक शिवपाल यादव ने सवाल खड़े कर दिए। शिवपाल ने भतीजे को एक खुली चिट्ठी लिख दी। इसमें शिवपाल ने मुलायम कार्ड खेला। चाचा ने अखिलेश को अपने फैसले पर विचार करने को कहा। यह दुहाई दी कि वह जिसे समर्थन देने जा रहे हैं कभी उसने नेताजी यानी मुलायम सिंह यादव को आईएसआई का एजेंट बताकर अपमानित किया था। इस चिट्ठी के जरिये शिवपाल ने सिर्फ अखिलेश को टारगेट नहीं किया, बल्कि सपा कार्यकर्ताओं को भी मेसेज दिया।

चिट्ठी में चाचा शिवपाल ने लिखा, ‘यह नियति की अजीब विडंबना है कि सपा ने राष्‍ट्रपति चुनाव में ऐसे व्‍यक्‍ति का समर्थन किया, जिसने हम सभी के अभिभावक, प्रेरणा व ऊर्जा के स्रोत नेताजी को आईएसआई का एजेंट बताया था। दुर्भाग्‍यपूर्ण है कि सपा को राष्‍ट्रपति प्रत्‍याशी के तौर पर एक अदद समाजवादी विरासत वाला नाम न मिला।’ भतीजे को भी चाचा को समझने में देर नहीं लगी। शिवपाल को जवाब देते हुए अखिलेश ने कहा कि चाचा दिल्‍ली के इशारे पर काम कर रहे हैं।

राहुल के साथ सपा के कदमताल
इस बीच सपा राहुल के साथ कदमताल करती जा रही है। मंगलवार को भी इसका नमूना देखने को मिला। राहुल गांधी समेत कांग्रेस और कुछ अन्य सहयोगी दलों के सांसदों ने संसद भवन परिसर में धरना दिया। यह महंगाई और कई जरूरी खाद्य वस्तुओं को वस्‍तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के दायरे में लाए जाने के विरोध में था। इसमें शिवपाल के भाई और सपा नेता रामगोपाल यादव भी शामिल हुए। उन्‍हें राहुल के आसपास ही देखा गया। प्रोफेसर साहब यानी राम गोपाल यादव शिवपाल के बड़े भाई हैं। शिवपाल और मुलायम सिंह ने मिलकर राम गोपाल को एक नहीं, दो-दो बार पार्टी से बाहर कर दिया था। तब मुलायम सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और शिवपाल पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष होते थे। यह और बात है कि बाद में अखिलेश ने राम गोपाल के साथ मिलकर दोनों को पद से हटा दिया था।

2019 में लोकसभा चुनाव से पहले इस तरह की खबरें आई थीं कि राहुल के साथ शिवपाल यादव भतीजे को पटखनी देने के लिए हाथ मिला सकते हैं। दरअसल, सपा से रास्‍ते अलग करने के बाद 2018 में शिवपाल ने अपनी पार्टी बनाई थी। इसके बाद वह कांग्रेस के साथ गठबंधन की कोशिशों में लग गए थे। इसके पहले 2017 में यूपी के विधानसभा चुनाव में सपा ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। हालांकि, बीजेपी के खिलाफ राहुल-अखिलेश की जोड़ी नाकाम साबित हुई थी। इसके बाद ‘जय-वीरू’ की इस दोस्‍ती में दरारें आ गईं। अखिलेश कांग्रेस पर हमलावर हो गए थे। जैसे ही दरारें दिखनी शुरू हुईं शिवपाल ने अपने लिए रास्‍ते खोजने शुरू कर दिए। उनके कांग्रेस में शामिल होने तक की खबरें आई थीं। हालांकि, कांग्रेस ने मौके की नजाकत को भांप लिया था। शिवपाल को कांग्रेस में शामिल करके कांग्रेस अखिलेश यादव से रिश्‍ते खराब नहीं करना चाहती थी।

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