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दादा और पिता भी खेलते थे बैडमिंटन, बेटे के लिए पहाड़ छोड़ा, तब जाकर हासिल हुआ ‘लक्ष्य’

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बर्मिंघम

पहला गेम 19-21 से हारने के बाद 20 साल के लक्ष्य सेन ने हिम्मत नहीं हारी। 21-9 से दूसरा सेट जीता और फिर त्जे योंग एनजी की चुनौती को तीसरे सेट में 21-18 से खत्म कर दी। सेन ने अपने पहले राष्ट्रमंडल गेम्स में मिश्रित टीम प्रतियोगिता में जीते गए रजत के साथ स्वर्ण पदक को जोड़ दिया। यह पहली बार था, जब भारत ने एक ही राष्ट्रमंडल गेम्स के सीजन में पुरुष एकल और महिला एकल खिताब दोनों का दावा किया था।

विरासत में मिला खेल
लक्ष्य के दादा सीएन सेन और पिता डीके सेन दोनों बैडमिंटन के खिलाड़ी थे। परिवार उत्तराखंड के अल्मोड़ा का रहने वाला है। लक्ष्य को उनकी मंजिल तक पहुंचाने के लिए पिता ने भारी योदगान दिया। अपना शहर छोड़ दिया और बेंगलुरु शिफ्ट हो गए। लक्ष्य के बड़े भाई चिराग सेन भी बैडमिंटन खिलाड़ी हैं। लक्ष्य के पिता, प्रकाश पादुकोण अकादमी से जुड़े हैं और जिनकी देखरेख में लक्ष्य चार साल की उम्र से स्टेडियम जाने लगा था।

दूसरे गेम को बताया टर्निंग पॉइंट
जीत के बाद सेन ने कहा, ‘मैच का दूसरा गेम टर्निंग पॉइंट रह, जहां मैंने बढ़त बनाई। मैं अच्छा और थोड़ा धैर्य से खेल रहा था। इससे मुझे पूरे तीसरे गेम में काफी आत्मविश्वास मिला। मैं बहुत खुश हूं कि मैंने दूसरा और तीसरा गेम अच्छा खेला। यह एक सपने के सच होने जैसा है, और मैं आज जिस तरह से खेला उससे मैं खुश हूं। मलेशियाई खिलाड़ी को भी श्रेय जाता है, क्योंकि उन्होेंने वास्तव में (पहला) गेम अच्छा खेला।’

थॉमस कप जीतने वाली टीम में भी थे
इस स्वर्ण के साथ, सेन ने सर्किट पर अपना सबसे सफल वर्ष जारी रखा, जिसमें उन्होंने जनवरी में इंडिया ओपन जीता, जो उनका पहला सुपर 500 खिताब था। जर्मन ओपन में, सेमीफाइनल में विश्व के नंबर 1 विक्टर एक्सेलसन को हराकर सेन फाइनल में हार गए। वह ऑल-इंग्लैंड चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंचे जिसमें वे विक्टर एक्सेलसन से हार गए। वह थॉमस कप जीतने वाली भारतीय टीम का हिस्सा भी रहे थे।

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