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‘अमरीका के दखल से पूरा देश चिंतित’, गहलोत ने नेहरू और इंदिरा को किया याद; सरकार से पूछा- ऐसी क्या मजबूरी रही?

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जयपुर

भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर को लेकर अमरीका की मध्यस्थता पर कांग्रेस लगातार हमलावर है। इसी कड़ी में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा कि ‘पूर्व में भारत कभी अंतरराष्ट्रीय दबाव के आगे नहीं झुका इसलिए ही हम देशवासियों के गले यह बात नहीं उतर रही है कि अमरीका राष्ट्रपति ने सीजफायर का ऐलान कैसे कर दिया।’ साथ ही गहलोत ने कहा कि ‘ऐसी क्या मजबूरी रही जिससे केन्द्र सरकार ने किसी तीसरे देश को दखल देने दिया।’

Trulli

पूर्व सीएम गहलोत ने एक्स पर पोस्ट कर लिखा कि ‘वर्तमान परिस्थितियों में भारत के ऊपर बनाए गए अंतरराष्ट्रीय दबाव को देखकर मेरे बचपन के दो वाकये याद आते हैं जिसमें भारत ने सभी अंतरराष्ट्रीय दबावों को पाछे छोड़ कर कार्रवाई की थी।

गहलोत ने याद दिलाया 1961 का वाकया
उन्होने कहा कि ये 1961 की बात है जब मैं छठवीं कक्षा में था। 1961 तक गोवा राज्य पुर्तगाल के कब्जे में था। इसके भारत में विलय के लिए पंडित नेहरू की सरकार ने सैन्य ऑपरेशन विजय शुरू किया। पुर्तगाल NATO का ‌सदस्य देश था इसलिए पुर्तगाल के इलाके में सैन्य ऑपरेशन NATO के खिलाफ माना जाता और भारत पर पश्चिमी देश आक्रमण कर सकते थे। अमेरिका के राजदूत ने भी पंडित नेहरू से मिलकर सैन्य कार्रवाई न करने का अनुरोध किया परन्तु पंडित नेहरू की दृढ़ इच्छाशक्ति एवं सेना के शौर्य ने पुर्तगालियों को खदेड़ दिया और गोवा का भारत में विलय किया।

1974 में इन्दिरा ने सबको अनदेखा किया- गहलोत
गहलोत ने आगे कहा कि जब मैं यूनिवर्सिटी में आया यानी 1974 तक सिक्किम चोग्याल राजवंश का एक स्वतंत्र राजतंत्र था। यहां की महारानी अमरीका की रहने वाली थीं जिस वजह से सिक्किम को अमेरिका का समर्थन था। 1974 में इन्दिरा गांधी की सरकार ने सिक्किम के भारत में विलय के लिए अभियान चलाया। तब अमरीका ने भारत पर दबाव डाला और कार्रवाई तक की चेतावनी दी परन्तु इन्दिरा ने इस सबको अनदेखा कर सिक्किम को भारत का हिस्सा बनाया।

‘अमरीका के दखल से पूरा देश चिंतित’- गहलोत
उन्होंने कहा कि पूर्व में भारत कभी अंतरराष्ट्रीय दबाव के आगे नहीं झुका इसलिए ही हम देशवासियों के गले यह बात नहीं उतर रही है कि अमरीका राष्ट्रपति ने सीजफायर का ऐलान कैसे कर दिया। यह तो पूरी तरह हमारी सरकार का निर्णय होना चाहिए था। इन्दिरा जी के समय से ही भारत की नीति है कि भारत-पाकिस्तान के मामले में किसी तीसरे पक्ष का दखल नहीं होगा। हाल में हुए सैन्य ऑपरेशन पर अमरीका के दखल से पूरा देश चिंतित है कि ऐसी क्या मजबूरी रही जिससे केन्द्र सरकार ने किसी तीसरे देश को दखल देने दिया।

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