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वसुंधरा राजे का ‘कुर्सी वाला’ प्लान, अगर सत्ता से चंद कदम दूर रही BJP-कांग्रेस, तो यूं ‘सिंहासन’ पर पहुंचेंगी ‘महारानी’?

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जयपुर

राजस्थान में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान 25 नवंबर को हो चुका है। अब सबकी नजरें मतगणना पर है। मतगणना का दिन जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है, नेताओं की धड़कने बढ़ने लगी हैं। इधर राज्य की राजनीति में एक बार फिर वसुंधरा राजे की चर्चा शुरू हो गई है। बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के लिए राजस्थान एक अहम राज्य है। दोनों पार्टियों ने सत्ता के लिए चुनाव में पूरी ताकत लगा दी। लेकिन, अगर किसी कारण से दोनों पार्टियां सत्ता से चंद कदम दूर रह गईं, तो वसुंधरा राजे बीजेपी को सत्ता दिलवाने में अहम भूमिका निभा सकती हैं।

BJP के 32 तो कांग्रेस के 22 बागियों ने लड़ा निर्दलीय चुनाव
दरअसल 2018 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीयों ने अहम भूमिका निभाई थी। तब कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए कुछ विधायकों की कमी थी। ऐसे में निर्दलीयों को अशोक गहलोत ने अपने पाले में कर लिया। निर्दलियों ने गहलोत को समर्थन देते हुए राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनवाने में मदद की। इस बार भी दोनों प्रमुख पार्टियों से बागी उम्मीदवारों की संख्या बढ़ी है। बीजेपी के 32 बागियों और कांग्रेस के 22 बागियों ने निर्दलीय चुनाव लड़ा है। इनमें से कई बागी प्रत्याशियों के उनके क्षेत्र में कद को देखते हुए जीत की संभावना जताई जा रही है।

वसुंधरा राजे का निर्दलीय पर फोकस
माना जा रहा है कि इस बार के राजस्थान विधानसभा चुनाव में निर्दलीयों की संख्या पिछली बार से ज्यादा रह सकती है। ऐसे में बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियां अभी से अंदर ही अंदर उन निर्दलीयों से संपर्क करना शुरू कर दिया है, जिनकी जीत की संभावना है। बीजेपी के 32 बागियों में ज्यादातर वसुंधरा राजे के कट्टर समर्थक हैं। जैसे वसुंधरा के समर्थक कैलाश मेघवाल को बीजेपी ने इस बार टिकट नहीं दिया। ऐसे में कई बार मंत्री और सांसद रहे कैलाश मेघवाल ने निर्दलीय ही शाहपुरा के चुनावी मैदान में ताल ठोक दी। इसी तरह भवानी सिंह राजावत लाडपुरा सीट से, यूनुस खान डीडवाना से, चंद्रपाल सिंह चित्तौड़गढ़ से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में बीजेपी वसुंधरा राजे का इन्हीं निर्दलीयों पर पूरा फोकस है।

वसुंधरा ने तैयार किया गहलोत वाला ‘गेम प्लान’?
वसुंधरा राजे ने इस बार बीजेपी प्रत्याशियों के लिए जमकर चुनाव प्रचार लिया, लेकिन उस सीटों पर प्रचार करने नहीं गईं, जहां उनके समर्थक निर्दलीय चुनाव लड़ रहे थे। माना जा रहा है कि वसुंधरा राजे ने इस बार पूरा ‘गेम प्लान’ अशोक गहलोत के 2018 के ‘खेल’ को देखते हुए तैयार किया। 2018 में अशोक गहलोत खेमे के करीब 17-18 समर्थकों ने निर्दलीय चुनाव लड़ा था। नतीजे आए तो न कांग्रेस को सत्ता मिली न बीजेपी को। ऐसे में निर्दलीय चुनाव लड़कर जीतने वाले गहलोत समर्थक केवल एक ही शर्त पर कांग्रेस को समर्थन देने के लिए तैयार थे कि सीएम अशोक गहलोत होंगे।

कुछ ऐसा ही इस बार वसुंधरा राजे का गेम प्लान है। अगर वसुंधरा राजे के समर्थन चुनाव जीतते हैं और बीजेपी-कांग्रेस सत्ता से दूर रहती है तो ये निर्दलीय बीजेपी के साथ एक ही शर्त पर साथ आ सकते हैं, वो शर्त है वसुंधरा राजे को सीएम बनाना। नहीं तो ये बागी कांग्रेस के साथ जाकर राज्य में ‘पंजे’ की सरकार रिपीट करा सकते हैं।

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