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जूडिशरी से टकराव में बीता किरेन रिजिजू का कार्यकाल, पूर्व जजों को एंटी इंडिया तक कहा

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नई दिल्ली ,

केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू से कानून मंत्रालय की जिम्मेदारी ले ली गई है. उनकी जगह अर्जुन राम मेघवाल को कानून मंत्री बनाया गया है. रिजिजू को भू विज्ञान मंत्रालय दिया गया. जुलाई 2021 में रविशंकर प्रसाद की जगह पर रिजिजू को कानून मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया था. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर अचानक किरेन रिजिजू के हाथों से कानून मंत्रालय क्यों छिन लिया गया?

कानून मंत्रालय से रिजिजू को हटाए जाने पर शिवसेना (उद्धव गुट) की नेता और राज्यसभा सदस्य प्रियंका चतुर्वेदी ने ट्वीट कर पूछा, ‘क्या यह महाराष्ट्र फैसले की शर्मिंदगी के कारण है या मोदानी-सेबी जांच?’ वहीं, कांग्रेस नेता अलका लांबा ने ट्वीट कर कहा कि पिछले कुछ समय से कानून मंत्री के तौर पर किरेन रिजिजू द्वारा जजों की नियुक्ति और अदालतों के काम करने के तौर- तरीकों को लेकर की जा रही टिप्पणियों और हस्तक्षेप ने मोदी सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी थीं. सरकार ने अपनी छवि बचाने के लिए अपने क़ानून मंत्री की बलि देकर अच्छा किया.

रिजिजू के हाथों से कानून मंत्रालय छीने जाने के बाद राज्यसभा सदस्य व वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने ट्वीट कर तंज कसा है. उन्होंने कहा, ‘किरेन रिजिजू: कानून नहीं, अब पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय. कानूनों के पीछे का विज्ञान समझना आसान नहीं होता. अब विज्ञान के कानूनों के साथ भिड़ना. गुड लक माइ फ्रेंड!’

रिजिजू से क्यों छिना कानून मंत्रालय?
किरेन रिजिजू और न्यायपालिका के रिश्ते कभी अच्छे नहीं थे. कानून मंत्री के पद पर किरेन रिजिजू करीब दो साल तक रहे. उनका यह पूरा कार्यकाल विवादों में रहा. किरने रिजिजू और सुप्रीम कोर्ट के बीच टकराव बना रहा. रिजिजू ने न्यायपालिका के प्रति खुले तौर पर टकराव वाला रवैया अपनाया था. ऐसे में रिजिजू का न्यायपालिका से खुला टकराव मोदी सरकार के लिए मुसीबत न बढ़ा दे, इससे पहले उनके हाथों से कानून मंत्रालय छीन लिया गया.

विवादों से घिरे रहे हैं किरेन रिजिजू
कानून मंत्री के तौर पर रिजिजू के कार्यकाल में जजों की नियुक्ति के मुद्दे पर उनके और न्यायपालिका के बीच टकराव सुर्खियों में रहा. रिजिजू शीर्ष न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति वाले कॉलेजियम व्यवस्था सिस्टम पर सार्वजनिक तौर पर तीखे हमले करते रहे हैं. वह इसे ‘अपारदर्शी’ सिस्टम बताते हुए आलोचना करते रहे हैं.

पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की पीठ ने रिजिजू की टिप्पणियों पर नाराजगी जताई थी. सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा था कि शायद सरकार जजों की नियुक्ति को इसलिए मंजूरी नहीं दे रही, क्योंकि एनजेएसी को मंजूरी नहीं दी गई. रिजिजू ने नंवबर 2022 में कहा था कि जजों की नियुक्ति का कॉलेजियम सिस्टम संविधान के लिए एलियन है. उन्होंने कहा था कि कॉलेजियम सिस्टम में कई खामियां हैं और लोग इसके खिलाफ आवाज उठा रहे हैं.

कुछ पूर्व जज एंटी इंडिया ग्रुप का हिस्सा- रिजिजू
रिजिजू ने इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में कहा था, ‘कुछ रिटायर्ड जज हैं शायद तीन या चार, जो एंटी-इंडिया ग्रुप का हिस्सा बन गए हैं. ये लोग कोशिश कर रहे हैं कि भारतीय न्यायपालिका विपक्ष की भूमिका निभाए. देश के खिलाफ काम करने वालों को इसकी कीमत चुकानी होगी.’ हाल ही में दिल्ली में एक संगोष्ठी आयोजित की गई थी, जिसमें उच्चतम न्यायालय के कुछ सेवानिवृत्त न्यायाधीश और कुछ वरिष्ठ अधिवक्ता मौजूद थे और संगोष्ठी का विषय था- ‘न्यायाधीशों की नियुक्ति में जवाबदेही.’ इस दौरान पूरे दिन यही चर्चा होती रही कि सरकार किस तरह से न्यायपालिका को अपने नियंत्रण में ले रही है.

किरेन रिजिजू के बयान पर उसी कार्यक्रम में भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कॉलेजियम प्रणाली का बचाव करते हुए कहा था, ‘हर प्रणाली दोष से मुक्त नहीं है, लेकिन यह सबसे अच्छी प्रणाली है, जिसे हमने विकसित किया है. इस प्रणाली का ‘उद्देश्य न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा करना है, जो एक बुनियादी मूल्य है.’

किरेन रिजिजू और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की टिप्पणियों के खिलाफ एक पीआईएल भी सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी.हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने दो दिन पहले इस पीआईएल को खारिज कर दिया था. हाल ही में केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट से झटका भी मिला है. एलजी बनाम दिल्ली सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला दिया था.

 

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