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Sunday, June 8, 2025
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प्रचंड बहुमत की सरकार चलाने वाले मोदी के पास नहीं है गठबंधन चलाने का अनुभव, ‘पलटूरामों’ को कैसे संभाल पाएंगे

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नई दिल्ली:

लोकसभा चुनाव, 2024 के नतीजे आने के साथ ही भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए गठबंधन और कांग्रेस की अगुवाई वाले इंडिया गठबंधन ने सरकार बनाने की कवायद तेज कर दी है। 543 सदस्यीय लोकसभा में किसी भी पार्टी के पास बहुमत का आंकड़ा नहीं है। बहुमत के लिए 272 सीटें चाहिए, मगर भाजपा के पास महज 240 सीटें हैं, मगर उसके एनडीए गठबंधन के पास पर्याप्त 292 का आंकड़ा है। वहीं, इंडिया गठबंधन के पास 234 का आंकड़ा है। सरकार बनाने में सारा दारोमदार दो क्षेत्रीय पार्टियों टीडीपी और जदयू पर टिका हुआ है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अगर जदयू नेता नीतीश कुमार पहले की छवि के अनुसार ऐन मौके पर पाला बदल लें और टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू भी आनाकानी करने लगे तो सरकार बनाने में पेच फंस सकता है। वहीं, इन दोनों के इंडिया गठबंधन के साथ जाने से उनकी सरकार बन सकती है।

मोदी को प्रचंड बहुमत वाली भाजपा सरकार चलाने का ही अनुभव
नरेंद्र मोदी को अभी तक भाजपा की प्रचंड बहुमत सरकार चलाने का अनुभव रहा है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद मोदी सरकार भी गठबंधन की सरकार थी। 2014 में भाजपा को 282, जबकि 2019 में 303 सीटें मिली थीं। ऐसे में गठबंधन हो या न हो, भाजपा की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा। मोदी जब 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब भी वह भाजपा के पूर्ण बहुमत वाली सरकार के मुखिया थे। उनके पास अभी तक ऐसे गठबंधन की सरकार चलाने का अनुभव नहीं है, जिसमें भाजपा ने किसी अन्य दलों के समर्थन से सरकार चलाई हो। ऐसे में नायडू और नीतीश जैसे ‘पलटूमारों’ को संभालने में उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ सकती है।

वाजपेयी थे गठबंधन सरकार चलाने में माहिर
1996 में संयुक्त मोर्चा सरकार 13 पार्टियों से मिलकर बनी थी। पहले इसके प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा और फिर इंद्र कुमार गुजराल बने। इसके बाद वाजपेयी फिर 1998 में लौटे और उन्होंने नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (NDA) की सरकार बनाई, जिसे जयललिता की अन्नाद्रमुक सरकार ने अपना समर्थन वापस ले लिया था। 1999 से 2004 के बीच एनडीए ने सरकार बनाई, जो 20 सहयोगी दलों के समर्थन से बनी थी। वाजपेयी को गठबंधन के साथियों को साधने में महारत हासिल थी। उन्होंने गठबंधन सरकार चलाने के लिए जयललिता, ममता बनर्जी और मायावती सबको साधा था। उस समय भी नायडू ने वाजपेयी पर इतना दबाव बढ़ाया था कि वाजपेयी सरकार को समय से पहले चुनाव कराना पड़ा था।

टीडीपी-जदयू की 28 सीटों ने एनडीए को दिलाई बढ़त
चंद्रबाबू नायडू की तेलगू देशम पार्टी यानी टीडीपी और नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड यानी जदयू ने मिलकर 28 सीटें जीती हैं और एनडीए को बहुमत के 272 के आंकड़े के पार तक पहुंचाया था। अभी एनडीए को 292 सीटें मिली हैं। यानी अगर इन दोनों पार्टियों की सीटें निकाल दी जाएं तो एनडीए के पास केवल 264 सीटें ही रह जाएंगी। ऐसे में दोनों की एनडीए में अहमियत काफी बढ़ गई है।

मोदी के सामने नायडू और नीतीश को साधना बड़ी चुनौती
पीएम मोदी के सामने सबसे बड़ी चुनौती चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार को अपने साथ लेकर चलने की होगी। नरेंद्र मोदी के गुजरात से दिल्ली आने के बाद नीतीश कुमार और नायडू के रिश्ते बीजेपी से बहुत कड़वाहट भरे भी रहे हैं। नायडू और नीतीश 2014 में नरेंद्र मोदी के पहली बार प्रधानमंत्री बनने पर बीजेपी के विरोधी खेमे में रह चुके हैं और इस लोकसभा चुनाव से ठीक पहले एनडीए में वापसी की है।

नायडू ने कभी देवगौड़ा तो कभी वाजपेयी का दिया साथ
देवगौड़ा के पीएम बनाने के दो साल बाद ही यानी 1998 में नायडू ने यू-टर्न लेते हुए बीजेपी के साथ मिलकर देश की पहली एनडीए सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाई जिसके चलते अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने। 1999 में भी वाजपेयी सरकार को केंद्र में सरकार बनाने के लिए समर्थन दिया था।

नायडू ने वाजपेयी सरकार पर फोड़ा था हार की ठीकरा
साल 2004 में जब नायडू की टीडीपी को आंध्र प्रदेश में हार का सामना करना पड़ा और उसके बाद 2004 के लोकसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन को भी हार मिली तो नायडू ने इस हार का ठीकरा बीजेपी पर फोड़ दिया।

नीतीश कुमार का पीएम बनने का सपना पड़ सकता है भारी
कहा जा रहा है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक समय खुद को पीएम पद का दावेदार भी बताते थे। उनका यह सपना अभी तक पूरा नहीं हो पाया है। ऐसे में इंडिया गठबंधन भी उनको पीएम पद का सपना दिखाकर उन्हें अपने खेमे में कर सकता है। नीतीश तो अक्सर यू-टर्न लेते रहे हैं। कभी वह भाजपा के करीब हो जाते हैं तो कभी राजद के। ऐसे में उन पर बहुत भरोसा नहीं किया जा सकता है। अब पीएम मोदी को बहुत ही फूंक-फूंककर कदम रखना होगा, ताकि टीडीपी या जदयू ‘ब्लैकमेल’ न कर सकें।

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