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कलियुग कब शुरू हुआ? कलियुग की शुरुआत के समय घटी थीं ये 5 विचित्र घटनाएं

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कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन सहित सभी पांडवों को कलियुग के बारे में बताया था। महाभारत का युद्ध जीतने के बाद जब पांचों पांडव खुशी-खुशी हस्तिनापुर लौटे, तो श्रीकृष्ण ने उन्हें युग परिवर्तन के बारे में बताया था। कृष्ण ने कलियुग के प्रारंभ समय से लेकर कई ऐसी घटनाओं के बारे में भविष्यवाणी की थी, जिससे जल्द ही द्वापर युग की समाप्ति और कलियुग के शुरू होने के संकेत मिल रहे थे। आइए, विस्तार से जानते हैं कलियुग कब शुरू हुआ था और इसके आरंभ से ठीक पहले कौन-सी घटनाएं घटीं थीं।

कलियुग कब शुरू हुआ था
कलियुग के आरंभ वर्ष को लेकर कई तरह के मत देखने को मिलते हैं। भागवत पुराण ने अनुसार जब श्रीकृष्ण अपना मानव शरीर छोड़कर वैकुंठ में गमन कर गए थे, तब 3102 ईसा पूर्व कलिकाल का प्रारंभ हुआ था यानी कलियुग की शुरुआत हुई थी। वहीं, पश्चात्कालीन ज्योतिषशास्त्रीय ग्रंथों के अनुसार कलियुग संवत के 3719 वर्षों के बाद शक संवत का आरम्भ हुआ। जबकि मध्यकाल के भारतीय ज्योतिषियों के अनुसार कलियुग और कल्प के प्रारम्भ में सभी ग्रह, सूर्य एवं चन्द्र को मिलाकर चैत्र शुक्ल-प्रतिपदा को रविवार के सूर्योदय के समय एक साथ एकत्र थे। तब कलियुग का आरंभ माना जाता है। कलियुग के आरंभ होने के बाद कुछ विशेष घटनाएं घटी थीं।

श्रीकृष्ण मनुष्य शरीर त्यागकर वैकुंठ गमन कर गए
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि इस धरा पर जिसका जन्म होगा, उसकी मृत्यु होनी भी निश्चित है। प्रकृति के इस नियम को कोई बदल नहीं सकता। स्वंय श्रीकृष्ण भी इस नियम से बंधे थे। मनुष्य रूप में जन्म लेने के बाद श्रीकृष्ण के मानव शरीर का जब अंत हुआ, तो वे वैकुंठ गमन कर गए। भगवान कृष्ण का धरती पर से जाना कलियुग के शुरू होने का बड़ा संकेत था। पौराणिक कहानियों में श्रीकृष्ण के वैकुंठ गमन की घटना को कलियुग के शुरू होने का सबसे बड़ा संकेत माना जाता है।

पांडवों की दैवीय शक्तियां उनका साथ छोड़ने लगीं
युधिष्ठिर को धर्मराज कहा था लेकिन कलियुग आगमन के प्रभाव के कारण युधिष्ठिर की निर्णय लेने की क्षमता कमजोर पड़ने लगी थीं। अर्जुन को महान धनुर्धर माना जाता था लेकिन अर्जुन अपने निशाने से चूकने लगे थे। भीम का शरीर पहले जैसा बलशाली नहीं रहा था। तलवारबाजी और घुड़सवारी में माहिर नकुल की ये कलाएं भी कमजोर पड़ चुकी थीं। वहीं, तेज दिमाग वाले सहदेव भी सामान्य चीजें भी भूलने लगे थे।

पांडवों के राज्य में फैलने लगी थी अशांति
महाभारत का युद्ध न्याय और अन्याय के बीच लड़ा गया था। जब पांडव युद्ध जीतकर आए थे, तो उम्मीद की जा रही थी कि अब हमेशा के लिए धर्म की स्थापना हो जाएगी लेकिन कलियुग अपने आने की तैयारी कर चुका था। हस्तिनापुर सहित कई महान राजाओं के राज्य में अन्याय, अशांति छोटी-छोटी घटनाएं बढ़ने लगीं थीं।

धरती पर सूखा पड़ने लगा और मौसम असंतुलित होने लगा
कलियुग के शुरू होने का संकेत यह था कि धरती पर जगह-जगह सूखा पड़ने लगा। बारिश का स्तर कम होने लगा जिससे कि फसलें नष्ट होती गईं। वहीं, मौसम भी असंतुलित हो गया। गर्मियों की अवधि बढ़ती जा रही थीं और इसी तरह सर्दियां भी अपने समय से कहीं ज्यादा लंबी होती जा रही थीं। बारिश की स्थिति ऐसी थी कि कभी लंबे समय तक सूखा पड़ता था, तो कभी बारिश के कारण बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो जाती। प्रकृति के असंतुलन से सभी लोग परेशान थे।

बुर्जुगों, स्त्रियों, दिव्य पुरुषों का अपमान होने लगा
जिस महाभारत काल में द्रौपदी का अपमान करने के लिए कौरवों को युद्ध का सामना करना पड़ा था। उससे अलग कलियुग के शुरू होते ही स्त्रियों के अपमान की घटनाएं बढ़ने लगीं। इसके अलावा भी लोगों के बीच कुरीतियां फैलने लगीं। लोग अपने घर के बड़े-बुर्जुगों का अपमान करने लगे और समाज में दिव्य और सिद्ध लोगों का भी सम्मान घटने लगा था। कुरीतियों का व्यापार चल निकला था।

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