रतलाम:
जावरा के पास उमठ पालिया गांव में एक अवैध मदरसा चल रहा था। इस मदरसे का नाम आता-ऐ-रसूल था। यहां एमपी, यूपी और राजस्थान के 77 बच्चे रहते थे और धार्मिक शिक्षा लेते थे। MP बाल संरक्षण आयोग ने जांच में पाया कि यह मदरसा कब्रिस्तान की जमीन पर बना है और इसकी मान्यता भी खत्म हो चुकी है। बच्चों ने बताया कि वे कुरान पढ़ने से जन्नत की उम्मीद में यहां आए हैं, स्कूल जाने से नहीं। आयोग ने कलेक्टर को रिपोर्ट दी लेकिन 8 दिन बाद भी जांच टीम नहीं पहुंची।
बिना मान्यता के चल रहा था मदरसा
रतलाम जिले के जावरा के पास उमठ पालिया गांव में आता-ऐ-रसूल नाम का एक मदरसा बिना मान्यता के चल रहा था। यहां मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के करीब 77 बच्चे रहकर धार्मिक शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। 25 जनवरी को मध्य प्रदेश बाल संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ. निवेदिता शर्मा और सदस्य ओंकार सिंह मरकाम ने शिक्षा, पुलिस और महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों के साथ मदरसे का निरीक्षण किया।
कब्रिस्तान की जमीन पर जांच में पता चला कि यह मदरसा कब्रिस्तान की जमीन पर बना है और इसकी मान्यता दो साल पहले ही खत्म हो चुकी है। मदरसा दावत-ए-इस्लामी हिंद ट्रस्ट, इंदौर द्वारा चलाया जा रहा था। 2017 से 2022 तक मदरसा बोर्ड से मान्यता प्राप्त थी, लेकिन बाद में नवीनीकरण नहीं कराया गया।
कुरान पढ़ने आए हैं यहां
बाल संरक्षण आयोग की टीम ने जब बच्चों से बात की तो उन्होंने बताया कि वे कुरान पढ़ने के लिए यहां आए हैं क्योंकि इससे उन्हें जन्नत मिलेगी। उनका मानना था कि स्कूल जाने से जन्नत नहीं मिलती। यह सुनकर टीम के सदस्य हैरान रह गए। टीम ने पाया कि मदरसे में बच्चों को सिर्फ धार्मिक शिक्षा दी जा रही थी, और कोई भी बच्चा स्कूल नहीं जाता था। यह शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है। आयोग ने कलेक्टर राजेश बाथम को नौ बिंदुओं पर जांच रिपोर्ट सौंपी, लेकिन आठ दिन बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई।
77 बच्चे रह रहे थे यहां
आयोग की रिपोर्ट में कई गंभीर कमियां सामने आईं। मदरसे में 77 बच्चों को धार्मिक शिक्षा दी जा रही थी, जबकि इसकी मान्यता खत्म हो चुकी थी। हालांकि मदरसा गैर-आवासीय के तौर पर पंजीकृत था, लेकिन वहां 77 बच्चे रह रहे थे। सभी बच्चे पांचवीं कक्षा तक पढ़ चुके थे, लेकिन मदरसे में आने के बाद से स्कूल नहीं गए थे। इन बच्चों में मध्य प्रदेश के अलावा उत्तर प्रदेश और राजस्थान के बच्चे भी शामिल थे। इनके पहचान संबंधी दस्तावेज भी पूरे नहीं थे।
यह भी पता नहीं चला कि इन बच्चों का दाखिला किसने कराया। मदरसे का समय सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक का था, लेकिन यह आवासीय के तौर पर चल रहा था। सबसे बड़ी बात यह थी कि 2017 से 2021 तक मान्यता के दौरान शिक्षा विभाग ने मदरसे का निरीक्षण क्यों नहीं किया? और 2021 में मान्यता खत्म होने के बाद इसे बंद क्यों नहीं कराया गया? एक बच्चे के माता-पिता दोनों ही जीवित नहीं थे, फिर भी उसे स्पॉन्सरशिप का लाभ नहीं दिया गया। प्रशासन ने मदरसा भवन को अतिक्रमण बताकर नोटिस भी चिपकाया है।
आयोग की जांच में पाया गया कि मदरसे में 77 बच्चे थे, जिनमें 72 नाबालिग और 5 बालिग थे। ये बच्चे मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों से थे। कोई भी बच्चा किसी स्कूल में नहीं जाता था। आयोग ने मदरसा बंद करवाकर बच्चों को उनके परिवार वालों को सौंपने के निर्देश दिए। मदरसे के प्रिंसिपल मोहम्मद शोएब उत्तर प्रदेश के और मोहम्मद शहजाद झारखंड के रहने वाले थे। आयोग की टीम के भोपाल जाने के तीन दिन बाद यह मामला सामने आया, लेकिन स्थानीय अधिकारियों ने कोई जांच-पड़ताल नहीं की।
2022 में खत्म हो गई थी मान्यता
आयोग के मुताबिक, मदरसे की मान्यता मई 2022 में खत्म हो गई थी, इसलिए इसे बंद कर देना चाहिए था। यहां के बच्चे किसी स्कूल में नहीं जाते थे। प्रशासन, शिक्षा विभाग और महिला एवं बाल विकास विभाग की जिम्मेदारी थी कि वे मदरसे की निगरानी करते।
मदरसा संचालक मोहम्मद शोएब ने बताया कि 2022 तक मदरसे की मान्यता थी। बाद में पोर्टल पर नवीनीकरण के लिए आवेदन किया गया था लेकिन मान्यता नहीं मिली। उन्होंने कहा कि वे बच्चों को ट्यूशन के तौर पर पढ़ाते थे। बाल आयोग के निर्देश पर उन्होंने मदरसा बंद कर दिया और बच्चों को उनके माता-पिता को सौंप दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें जमीन के संबंध में कोई नोटिस नहीं मिला है। हालांकि रिपोर्ट में कहा गया है कि मदरसा अतिक्रमण की जमीन पर बना है।
कलेक्टर ने बनाई जांच टीम
कलेक्टर राजेश बाथम ने जांच के लिए एक टीम बनाई है, जिसमें एसडीएम, शिक्षा विभाग और एसडीओपी शामिल हैं। टीम को जल्द से जल्द जांच करके रिपोर्ट देने को कहा गया है। कलेक्टर ने कहा कि बाल संरक्षण आयोग की रिपोर्ट मिल गई है और जल्द ही जांच करवाई जाएगी।