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Monday, September 15, 2025
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अगर एक महिला राफेल उड़ा सकती है, सेना में JAG पदों पर नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल क्यों उठाए

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नई दिल्ली

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि जब महिलाएं राफेल जैसे लड़ाकू विमान उड़ा सकती हैं, तो उन्हें जज एडवोकेट जनरल (JAG) के पदों पर कम मौके क्यों दिए जा रहे हैं? कोर्ट ने यह सवाल एक याचिका पर सुनवाई करते हुए उठाया। इस याचिका में महिलाओं के लिए JAG के पदों पर कम वेकेंसी होने को चुनौती दी गई है। कोर्ट ने एक याचिकाकर्ता को अंतरिम राहत देते हुए सेना को उसे अगले ट्रेनिंग कोर्स में शामिल करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने सरकार से यह भी पूछा कि जब पद जेंडर न्यूट्रल हैं, तो महिलाओं के लिए कम पद क्यों रखे गए हैं?

‘अगर एक महिला राफेल उड़ा सकती है..’
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की। बेंच ने कहा, ‘अगर एयर फोर्स में एक महिला राफेल उड़ा सकती है, तो आर्मी में JAG के पद पर नियुक्ति करने में क्या दिक्कत है?’ कोर्ट ने सरकार से पूछा कि जब वो कहती है कि JAG के पद जेंडर न्यूट्रल हैं, तो महिलाओं के लिए कम पद क्यों रखे जाते हैं। यह याचिका अर्शनूर कौर और एक अन्य महिला ने दायर की थी। उन्होंने कहा कि उन्होंने परीक्षा में चौथा और पांचवां स्थान हासिल किया। वे पुरुष उम्मीदवारों से ज्यादा नंबर लाईं, लेकिन महिलाओं के लिए कम वेकेंसी होने के कारण उनका चयन नहीं हो सका।

‘जेंडर न्यूट्रैलिटी का मतलब 50:50 नहीं’
कोर्ट ने अर्शनूर कौर को अंतरिम राहत दी। कोर्ट ने केंद्र सरकार और सेना को निर्देश दिया कि उन्हें JAG अधिकारी के रूप में नियुक्ति के लिए अगले उपलब्ध ट्रेनिंग कोर्स में शामिल किया जाए। अदालत सरकार के इस तर्क से सहमत नहीं थी कि JAG के पद जेंडर न्यूट्रल हैं और 2023 से 50:50 का अनुपात रखा जाएगा। कोर्ट ने कहा, ‘जेंडर न्यूट्रैलिटी का मतलब 50:50 प्रतिशत नहीं है। जेंडर न्यूट्रैलिटी का मतलब है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किस जेंडर से हैं।’

जज एडवोकेट जनरल क्या करते हैं
JAG सेना में कानूनी सलाह देते हैं। वे अदालती कार्यवाही में सेना का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे सैन्य कानून का पालन सुनिश्चित करते हैं। वे कोर्ट-मार्शल और अनुशासनात्मक कार्रवाई भी करते हैं। भारतीय सेना ने अपनी नीति का बचाव करते हुए कहा कि JAG अधिकारियों को ‘इन्फेंट्री बटालियन के साथ अटैच किया जाता है और उनसे युद्धक भूमिकाएं निभाने की उम्मीद की जाती है।’ सेना ने कहा कि मूल 70:30 पुरुष-महिला अनुपात इन्हीं जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाया गया था। इसका मतलब है कि पहले 70% पद पुरुषों के लिए और 30% पद महिलाओं के लिए आरक्षित थे। अब इस अनुपात को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं।

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