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नए सीजेआई जस्टिस बीआर गवई के वो ऐतिहासिक फैसले, जो देश के लिए बन गए नजीर

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नई दिल्ली:

जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने बुधवार को भारत के 52वें चीफ जस्टिस (CJI) के रूप में शपथ ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें शपथ दिलाई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कई वरिष्ठ मंत्री इस समारोह में शामिल हुए। जस्टिस गवई ने जस्टिस संजीव खन्ना की जगह ली है, जो चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के पद से मंगलवार को रिटायर हुए हैं। जस्टिस गवई का कार्यकाल कई महत्वपूर्ण फैसलों से भरा रहा है। उन्होंने आर्टिकल 370 को हटाने, चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द करने और नोटबंदी जैसे बड़े कानूनी मामलों में ऐतिहासिक फैसलों में अहम भूमिका निभाई है। अब उनके सामने सुप्रीम कोर्ट में 81,000 से ज्यादा लंबित मामलों को निपटाने और वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर सुनवाई करने की बड़ी जिम्मेदारी है।

आर्टिकल 370 जैसे कई बड़े फैसलों के हिस्सा रहे जस्टिस गवई
जस्टिस बीआर गवई 2019 में सुप्रीम कोर्ट के जज बने थे। तब से उन्होंने लगभग 300 फैसले लिखे हैं और लगभग 700 बेंचों का हिस्सा रहे हैं। उन्होंने संवैधानिक अधिकार, बोलने की आजादी, पर्यावरण संरक्षण और कार्यकारी अधिकारों पर नियंत्रण जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर काम किया है। दिसंबर 2023 में, वह पांच जजों की उस बेंच में शामिल थे, जिसने सर्वसम्मति से केंद्र सरकार के आर्टिकल 370 को रद्द करने के फैसले को सही ठहराया था। यह आर्टिकल जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा देता था। जस्टिस गवई उस बेंच का भी हिस्सा थे, जिसने राजनीतिक फंडिंग के लिए चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया था।

इलाहाबाद हाईकोर्ट कोर्ट की ‘असंवेदनशील’ टिप्पणी पर लगाई रोक
नोटबंदी के केस में भी पांच जजों की बेंच में 4:1 के बहुमत से केंद्र सरकार के 2016 के 1,000 और 500 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को सही ठहराया गया था। जस्टिस गवई उस बेंच में भी थे। जस्टिस गवई की अगुवाई वाली बेंच ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की उस टिप्पणी पर भी रोक लगा दी थी, जिसमें कहा गया था कि एक महिला का ब्रेस्ट पकड़ना और उसकी ‘पायजामा’ की डोरी खींचना बलात्कार का प्रयास नहीं है। बेंच ने इस टिप्पणी को “असंवेदनशील” और “अमानवीय” बताया था।

अनुसूचित जातियों के भीतर उप-श्रेणियों पर भी सुनाया फैसला
जस्टिस गवई सात जजों की उस बेंच में भी शामिल थे, जिसने 6:1 के बहुमत से फैसला सुनाया कि राज्यों को आरक्षण के लिए अनुसूचित जातियों के भीतर उप-श्रेणियां बनाने का संवैधानिक अधिकार है। इससे इस वर्ग में भी सबसे पिछड़े लोगों को ध्यान में रखकर कल्याणकारी कदम उठाए जा सकेंगे। जनवरी 2023 में, वह पांच जजों की उस बेंच में भी शामिल थे जिसने फैसला सुनाया कि उच्च पद पर बैठे सरकारी अधिकारियों के बोलने की आजादी पर कोई अतिरिक्त प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि संविधान में पहले से ही उचित प्रतिबंधों के लिए पर्याप्त आधार मौजूद हैं।

‘बुलडोजर न्याय’ पर निष्पक्षता पर दिया जोर
जस्टिस गवई ने बिना नोटिस के विध्वंस पर रोक लगाने का भी एक महत्वपूर्ण फैसला दिया। उन्होंने निष्पक्षता और उचित प्रक्रिया का आह्वान किया, जिसे ‘बुलडोजर न्याय’ के खिलाफ एक कदम के रूप में देखा गया। संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए जाने जाने वाले जस्टिस गवई ने हाल ही में कहा था कि संविधान सर्वोच्च है। जस्टिस संजीव खन्ना ने उनके नाम की सिफारिश की थी और सरकार ने 29 अप्रैल को आधिकारिक तौर पर इसकी पुष्टि की। प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट किया, ‘CJI के रूप में शपथ लेने पर जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई को बधाई। उनका कानूनी, विद्वत्तापूर्ण और संवैधानिक मामलों का गहरा ज्ञान हमारे देश की न्याय प्रणाली को और मजबूत करेगा।’

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