भेल भोपाल।
—आरपार की लड़ाई, क्या फ़िर बंसत बनेंगे अध्यक्ष
— ऐसा हुआ तो कैबिनेट में बदलाव
— सत्ता पक्ष के डायरेक्टर विपक्ष की भूमिका में रहेंगे या फ़िर सत्ता में आने की कोशिश करेंगे
— डायरेक्टरों के समर्थन से बनेगी थ्रिफ्ट सरकार
— किसमें कितना दम, थोड़ा सा इंतजार
क्या बीएचईएल की थ्रिफ्ट सोसाइटी में आ सकता है अविश्वास प्रस्ताव,भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड भेल कर्मचारियों और अधिकारियों की सबसे बड़ी वित्तीय संस्था में आपसी लड़ाई चरम पर है। क्या अविश्वास प्रस्ताव आएगा या बसंत कुमार अध्यक्ष बने रहेंगे इसको लेकर अटकलों का बाजार गरम है। दोनों पक्ष गुप्त बैठकें ले रहा है। इस संस्था के अध्यक्ष बनने के लिए छह डायरेक्टरों का होना बहुत ही जरूरी है। ऐसी नौबत आएगी या नहीं यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन विवाद चरम पर होने के कारण संस्था के 5 हजार भेल कर्मचारी सदस्य इस विवाद पर नजर बनाए हुए हैं। संस्था का विवाद अध्यक्ष के चैंबर में डबल ताला जड़ने और खादय सामग्री सप्लाई के टेंडर को लेकर विवाद शुरू हुआ था।
इसको लेकर अध्यक्ष ने दूसरा ताला तुड़वाकर पंचनामा बनाकर अपने चैंबर में प्रवेश किया था। यह बात उन्हें इतनी नागवार गुजरी कि वह पुलिस तक रिपोर्ट लिखवाने तैयार थे, लेकिन संस्था की बदनामी को देखते हुए उन्होंने एफआईआर दर्ज नहीं करवाई। मामला इतना तूल पकड़ गया कि चार डायरेक्टर आशीष सोनी, श्री बैरागी, रजनीकांत दुबे और निशा वर्मा के समर्थन से थ्रिफ्ट सोसायटी चल रही थी।
इसमें राजेश शुक्ला का भी समर्थन अध्यक्ष को प्राप्त था। सूत्रों का कहना है कि इस विवाद के बाद सत्ता पक्ष के कुछ डायरेक्टर समर्थन वापस ले सकते हैं। ऐसे में काफी मुश्किलें सामने आ सकती हैं। मुदृदे जो भी हों, लेकिन इससे थ्रिफ्ट की छवि पर काफी असर पड़ेगा।
दूसरी ओर सत्ता पक्ष के कुछ डायरेक्टरों के अलग होने की खबर के बाद यह अटकलें लगना शुरू हो गईं हैं कि थ्रिफ्ट का अगला अध्यक्ष कौन होगा। इसको लेकर बैठकों का दौर शुरू हो गया है। सूत्र बताते हैं कि वर्तमान अध्यक्ष बसंत कुमार किसी से कम दिखाई नहीं दे रहे। ऐसा कहा जा रहा है कि पहले विपक्ष की भूमिका में बैठे रहे दीपक गुप्ता, राजकमार ईडापाची, निशांत नंदा, किरण धामने अध्यक्ष के पक्ष में खुलकर सामने आ गए हैं। सूत्र बताते हैं कि इसकी चयन प्रक्रिया भी भीतर ही भीतर शुरू हो गई है।
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यानि अविश्वास प्रस्ताव गिरा तो बसंत कुमार अध्यक्ष, दीपक गुप्ता उपाध्यक्ष, किरण बामने सचिव बनाए जा सकते हैं। सूत्रों के मुताबिक सचिव पद के लिए श्री नागपुरे का नाम सामने आया था, लेकिन उन्होंने पद लेने से साफ इंकार किया। शुक्रवार को देर रात दोनों पक्ष के लोग जहां बैठकों का दौर जारी रखे हैं वहां मोबाइल पर चर्चा भी जारी रखे हैं। कौन किसके साथ रहेगा और कौन नहीं यह तो अविश्वास प्रस्ताव के बाद ही सामने आएगा। पांच साल के कार्यकाल वाली संस्था पौने तीन साल से पहले ही आपसी खींचतान के चलते परेशानी में फंस गई है। ऐसे में यह प्रक्रिया संस्था के हितों को ध्यान में रखते हुए पूरी होनी चाहिए।