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Tuesday, July 1, 2025
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मध्यप्रदेश : आजादी के 77 साल बाद भी सड़कें बनीं सपना, विकास के खोखले वादों की बयां करती कुल्हड़पानी की तस्वीर

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छिंदवाड़ा

देश की आजादी को 77 साल से अधिक हो चुके हैं। लेकिन मध्यप्रदेश के कई गांव ऐसे हैं जिनमें आज तक मूलभूत सुविधाएं नहीं पहुंची है। कई गांवों में गर्मी में बिजली-पानी की किल्लत को कई में बारिश में पक्की रोड की समस्या का सामना करना पड़ता है। यहां कई जिलों से ऐसी तस्वीरें सामने आती हैं जो विकास के खोखले दावों की पोल खोल देती हैं। ऐसा ही एक मामला छिंदवाड़ा जिले से सामने आया।

छिंदवाड़ा जिले की जुन्नारदेव विधानसभा अंतर्गत ग्राम पंचायत आलमोद का एक छोटा सा गांव कुल्हड़पानी आता है। यह गांव देश की आजादी के वर्षों बीतने के बाद भी बुनियादी सुविधाओं से कोसों दूर है। सड़कों की हालत ऐसी है कि बारिश हो या धूप, ग्रामीणों के लिए बाहर निकलना किसी जंग जीतने से कम नहीं है।

पक्की सड़क के अभाव से बढ़ी परेशानियां
गांव में सड़क न होने से ग्रामीणों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों तक सभी से गुहार लगाई गई, लेकिन आज तक सिर्फ आश्वासन ही मिले। ग्रामीणों ने बताया कि दो-तीन बार कलेक्टर और सांसद कार्यालय जाकर आवेदन दिए गए, लेकिन सड़क की हालत जस की तस बनी हुई है। बदतर सड़क इस गांव की पहचान बन गई है।

चंदा इकट्ठा कर बनाई अस्थाई सड़क
तंग आकर गांववासियों ने खुद ही पहल करने का निश्चय किया और मिल-जुलकर चंदा इकट्ठा किया। हर घर से 1000 तक जुटाए गए। इस राशि से मिट्टी और मुरम डालकर एक अस्थायी सड़क बनाई गई, जिससे कम से कम इमरजेंसी में गांव से बाहर आना-जाना संभव हो सके। भले ही यह कदम ग्रामीणों की आत्मनिर्भरता को तो दर्शाता है, लेकिन साथ ही प्रशासनिक उदासीनता पर भी करारा तमाचा है।

मूलभूत सुविधाएं भी नदारद
सड़क की व्यवस्था का तो ग्रामीणों किसी तरह अस्थाई इंतजाम किया। रोड के अलावा गांव में न तो पर्याप्त पेयजल व्यवस्था है, न ही बच्चों के लिए प्राथमिक स्कूल है। बिजली की स्थिति भी बेहद खराब है। ग्रामीणों का कहना है कि ऐसे हालातों में बच्चों की पढ़ाई, बुजुर्गों की सेहत और महिलाओं की सुरक्षा सब कुछ दांव पर लगा है।

खोखले वादों से हताश ग्रामीण
एक ग्रामीण ने आक्रोश में कहा कि गांव के बुजुर्गों और युवाओं ने कहा कि हर चुनाव में नेता गांव के विकास के बड़े-बड़े वादे करते हैं। लेकिन जीतने के बाद कोई मुड़कर नहीं देखता। ‘आजादी के बाद भी यदि हमें सड़क के लिए चंदा इकट्ठा करना पड़े तो यह शासन और प्रशासन की असफलता नहीं तो और क्या है?’

गांव की स्थिति विकास के दावों पर सवाल
केंद्र और राज्य सरकारें ग्रामीण विकास के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च करने का दावा करती हैं, लेकिन कुल्हड़पानी जैसे गांवों की हालत देखकर इन दावों की सच्चाई उजागर हो जाती है। यह गांव आज भी विकास की मुख्यधारा से कटे हुए हैं। जबकि विगत 20 सालो से प्रदेश में बीजेपी की सरकार है.

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