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Sunday, August 3, 2025
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ट्रंप भारत के लिए कितना मायने रखते हैं… जानिए डिफेंस, ट्रेड, टेक्नोलॉजी पर क्या होगा असर

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नई दिल्ली

अमेरिका में एक बार फिर ट्रंप ‘राज’ शुरू हो चुका है। डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर यूएस राष्ट्रपति पद की शपथ ले ली है। प्रेसिडेंट बनने के बाद भारत और अमेरिका के रिश्तों पर क्या असर होगा, इसे लेकर एक्सपर्ट कई तरह की उम्मीदें जता रहे। जानकारों के मुताबिक, ट्रंप के आने से भारत और अमेरिका के संबंध और गहरे होंगे। चीन को लेकर दोनों देशों की चिंता इन्हें करीब लाएगी। यह ट्रेंड पिछले पांच अमेरिकी राष्ट्रपतियों के कार्यकाल जैसा ही रहेगा। क्वाड (QUAD) और मजबूत होगा। प्रशासन के कई विभागों में भारत के अच्छे संबंध बनेंगे। राजनीतिक और वैचारिक तालमेल भी अच्छा रहने की उम्मीद की जा रही। इसके साथ ही रक्षा, खुफिया और सुरक्षा मामलों में दोनों देशों के बीच भरोसा बढ़ेगा। टेक्नोलॉजी में सहयोग की संभावनाएं बढ़ने के आसार हैं।

ट्रंप के आने से भारत को फायदे की उम्मीद
अमेरिका में प्रेसिडेंट ट्रंप वापसी से भारत के लिए तीन चीजें फायदेमंद रहेंगी। पहला, दोनों देशों के नेताओं के बीच अच्छे संबंध हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, पीएम मोदी और ट्रंप के बीच अच्छी बातचीत होती है। ट्रंप के पूर्व NSA रॉबर्ट ओ’ब्रायन के अनुसार, ट्रंप, मोदी में खुद को देखते हैं। ऐसा उनके राष्ट्रवाद और जनता में उनकी लोकप्रियता के कारण है। दोनों नेताओं को याद होगा कि डोकलाम, बालाकोट और गलवान में अमेरिका ने भारत का साथ दिया था। दोनों देशों के राष्ट्रवादी विचारधाराओं में समानता है। भारत की सरकार को पता है ट्रंप को कैसे प्रभावित करना है।

चीन के लिए बढ़ सकती है टेंशन
दूसरा, चीन के बारे में चिंता दोनों देशों को जोड़ती है। रणनीतिक, रक्षा, सप्लाई चेन और आर्थिक सहयोग इसी चिंता का परिणाम है। ऐसे में क्वाड का रोल बेहद अहम रहेगा। ट्रंप इस ग्रुप को पुनर्जीवित करने में गर्व महसूस करते हैं। यही वजह है कि मंगलवार को वाशिंगटन डीसी में क्वाड विदेश मंत्रियों की बैठक आयोजित करके चीन को एक मजबूत मैसेज देना चाहते हैं। वहीं एक संभावना यह भी है कि ट्रंप चीन पर एक मजबूत लेकिन सावधानी भरा रुख बनाए रख सकते हैं जैसा जो बाइडेन ने किया था। यह दिल्ली के लिए अच्छी खबर है क्योंकि ऐसा होने पर भारत को फायदा हो सकता

ऐसे भारत के लिए लकी है ट्रंप ‘राज’
और अंत में, ट्रंप के राष्ट्रीय सुरक्षा कर्मियों का चयन जिस तरह का रहा है वो भारत के काफी भाग्यशाली रहा है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइकल वाल्ट्ज, प्रमुख उप NSA एलेक्स वोंग समेत वरिष्ठ से लेकर मध्य स्तर तक के प्रमुख विभागों में भारत के बारे में सकारात्मक दृष्टिकोण रखने के लिए समझा जाता है। इसका काफी असर पड़ता है। भारत को वाशिंगटन में एक बेहतर आर्थिक माहौल बनाने की जरूरत है, एक ऐसा माहौल जिसमें व्यापार, आउटबाउंड और इनबाउंड निवेश और प्रौद्योगिकी शामिल हो।

ट्रंप के वैश्विक रुख पर रहेगी नजर
एक और मुद्दा अहम है ट्रंप का वैश्विक रुख। ये वो नहीं है जो अमेरिका भारत के साथ करता है या नहीं करता, जो संबंधों का एकमात्र निर्धारक है। यह वह है जो अमेरिका बाकी दुनिया में करता है। अगर यूरोप के साथ अमेरिका के संबंध टूट जाते हैं, या यूरोप में अमेरिका की विश्वसनीयता पर गंभीर संदेह पैदा होता है, तो यूरोप को चीन से दूर जाने के लिए राजी करने का काम अचानक और कठिन हो जाएगा।

चीन से सौदे की ओर बढ़ा अमेरिका तो…
अगर अमेरिका अफ्रीका में सार्वजनिक स्वास्थ्य और नागरिक समाज की पहल का समर्थन करना बंद करने का फैसला करता है, तो यह केवल क्षेत्र की दूसरी बड़ी शक्ति, चीन की सहायता करता है। अगर अमेरिका को चीन के साथ सौदा करते देखा जाता है, तो इंडो-पैसिफिक में उसके खुद के सहयोगी अपने हितों को सुरक्षित करने के लिए वाशिंगटन के ऐसा करने से पहले इसी तरह का सौदा करने की कोशिश करेंगे।

यूक्रेन-रूस पर पड़ेगा असर
अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला और सैन्य रूप से सबसे ताकतवर देश है। साथ ही यह कई अंतरराष्ट्रीय सामरिक गठबंधनों, आर्थिक और वित्तीय प्रणालियों और दुनिया के कई महत्वपूर्ण संस्थानों का केंद्र है। ट्रंप के आने पर मध्य-पूर्व में जारी जंग और यूक्रेन-रूस युद्ध खत्म होने के बाद की व्यवस्था पर भी बड़े पैमाने पर प्रभाव पड़ सकता है।

ट्रंप माने जाते हैं ‘अनप्रिडिक्टेबल’
ट्रंप को अनप्रिडिक्टेबल माना जाता है। ऐसे में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। वैसे ट्रंप सरकार में भारत और अमेरिका के व्यापार संबंधों में एक नई दिशा देखने को मिल सकती है, क्योंकि ट्रंप प्रशासन ‘अमेरिका फर्स्ट ‘ की नीति पर जोर देता है, जिसका भारत को सामना करना पड़ सकता है। सवाल ये है कि भारत इसे डिप्लोमैटिक तरीके से कैसे संभालेगा।

दक्षिण एशिया में कितना असर
दक्षिण एशिया में भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव आते हैं। दक्षिण एशिया में भारत एक तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था है। इन देशों में भारत ने कुछ सालों में अपनी स्थिति मजबूत बनाई है। ट्रंप के जिस तरह से पीएम मोदी के साथ अच्छे संबंध हैं ऐसे में उनके दूसरे कार्यकाल में भारत की स्थिति मजबूत होने के आसार हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिका के साथ पाकिस्तान और अफगानिस्तान में रिश्ते काफी बदल चुके हैं।

भारत-अमेरिका में बढ़ेगा निवेश
पिछले कुछ सालों में भारतीय कंपनियों ने अमेरिका में अरबों का निवेश किया है। 2023 की पिछली CII रिपोर्ट बताती है कि 160 भारतीय कंपनियों ने 40 बिलियन डॉलर का निवेश किया है और 425,000 नौकरियां पैदा की हैं, जो भारत में अमेरिकी निवेश का दो-तिहाई है। वहीं यह चुनिंदा नीतिगत सभाओं में एक चर्चा का विषय है, यह कहानी बड़े पैमाने पर अनकही रहती है क्योंकि अमेरिका में लगभग अदृश्य भारतीय सार्वजनिक कूटनीति और व्यापक राजनीतिक और सार्वजनिक क्षेत्र के साथ संवाद करने में इसकी विफलता है।

‘मेक इन इंडिया’ पर क्या होगा प्रभाव
ट्रंप की विदेश नीति के अप्रत्याशित तरीके से रणनीतिक अनिश्चितता बढ़ सकती है। इंडो-पैसिफिक के प्रति ट्रम्प की प्रतिबद्धता पर सवाल उठेंगे, लेकिन साथ ही भारत पर बोझ साझा करने का दबाव भी बढ़ेगा। रक्षा और तकनीकी संबंध इस बात पर निर्भर करेंगे कि भारत अमेरिका के लिए क्या कर सकता है। व्यापार और निवेश दोनों क्षेत्रों में आर्थिक संबंधों में तनाव आ सकता है। भारत को यह समझाना होगा कि ‘मेक इन इंडिया’ और ‘मेड इन अमेरिका’ एक-दूसरे के खिलाफ नहीं हैं। ऊर्जा, जलवायु, क्रिप्टो, वीजा और यूरोप के साथ संबंधों पर ट्रंप के फैसलों का अप्रत्यक्ष प्रभाव भी भारत पर पड़ेंगे। ये अच्छे और बुरे दोनों तरह के हो सकते हैं।

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