इस्लामाबाद
पाकिस्तान पर बर्बादी की दोहरी मार पड़ रही है। एक तरफ पाकिस्तान की बर्बाद होती अर्थव्यवस्था से हाहाकार मचा हुआ है। वहीं, दूसरी तरफ स्थिति को संभालने वाले राजनेता भी आपस में लड़ रहे हैं। पाकिस्तान को अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए जल्द से जल्द कदम उठाने की जरूरत है। आर्थिक संकट ने गरीबी, शिक्षा, स्वास्थ्य, लैंगिक समानता और इसके मानव विकास संकेतकों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। लगातर बढ़ती महंगाई और कमजोर होती मुद्रा और विदेशी मुद्रा भंडार की कमी ने गंभीर आर्थिक संकट को बढ़ा दिया है।
मूडीज इनवेस्टर सर्विस ने अपनी ताजा रिपोर्ट में संभावित डिफॉल्ट की चेतावनी दी है। ऐसा इसलिए क्योंकि आने वाले महीनों में पाकिस्तान को सात अरब डॉलर से ज्यादा का कर्ज वापस लौटाना है। पाकिस्तान को इस समय डूबने से सिर्फ आईएमएफ बचा सकता है। पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार अपने निचले स्तर 4.24 अरब डॉलर पर पहुंच गया है, जिससे सिर्फ तीन सप्ताह के आयात का भुगतान हो सकता है। पाकिस्तान ने कई महीनों के बाद आयात प्रतिबंधों को हटा दिया है, जिससे माना जा रहा है कि चालू खाता घाटा भी बढ़ेगा।
पाकिस्तान को आईएमएफ का सहारा
पाकिस्तान के आर्थिक संकट ने देश के अंदर इसकी वजह पर बहस छेड़ दी है। लेकिन क्या पाकिस्तान को एक बार फिर उसके बाहरी साझेदार बचा सकते हैं? पाकिस्तान आईएमएफ के जिस लोन के बल पर अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का ख्वाब देख रहा है, वह सिर्फ 1.1 अरब डॉरल है। लेकिन यह धन भी तभी मिल सकेगा, जब पाकिस्तान सख्त शर्तों को मानेगा। जिन शर्तों को आईएमफ रख रहा है, उनमें टैक्स बढ़ाने और सब्सिडी को खत्म करना भी शामिल है। इसके अलावा बिजली और तेल की कीमतें भी बढ़ाने का सुझाव है।
शर्तें मानने से बर्बाद होगी अर्थव्यवस्था!
अगर आईएमएफ की शर्तों को माना जाता है तो डिस्पोसेबल इनकम घटेगी और निवेश भी कम होगा। इतना ही नहीं, अगर पाकिस्तान आईएमफ के फंड के बल पर रहता है, तो निवेशकों का विश्वास कमजोर होगा, जिससे आर्थिक स्थिति और भी ज्यादा बिगड़ सकती है। परिणामस्वरूप आर्थिक संकट के कारण गरीबों को भोजन, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और घर जैसी आवश्यक्ताओं तक पहुंचने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है। द डिप्लोमैट की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान में अगर पैसा बचाने के नाम पर सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी योजनाएं बंद हुईं तो सबसे बड़ा संकट गरीबों को होगा।