भारतीयों की इस सोच ने किया देश का कबाड़ा, चीन दौड़कर निकल गया आगे, न बदले तो… यह चेतावनी कैसी?

नई दिल्‍ली

भारत की अर्थव्यवस्था अभी भी चीन से बहुत पीछे है। फाइनेंशियल एक्‍सपर्ट मानव मजूमदार का कहना है कि इसकी एक वजह भारतीयों का सुरक्षित निवेश जैसे फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) पर ज्यादा ध्यान देना है। मजूमदार के अनुसार, भारत को विकास के लिए अपनी सोच बदलनी होगी। यही नहीं, भारत को R&D पर भी ज्यादा खर्च करना होगा। इससे इनोवेशन और तकनीकी विकास को बढ़ावा मिलेगा। भारत को नई तकनीकों को विकसित करने और अपनाने में आगे बढ़ना होगा।

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मजूमदार ने लिंक्‍डइन पर एक पोस्ट में लिखा कि 2023 में भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी $2,300 है, जबकि चीन की $12,500 और दक्षिण कोरिया की $35,000 है। उन्होंने कहा, ‘अगर भारतीय एफडी में निवेश करते रहेंगे और हमेशा सुरक्षा को प्राथमिकता देंगे तो प्रति व्यक्ति जीडीपी ग्रोथ भी ऐसी ही रहेगी।’

कई फैक्‍टर्स ने धकेला पीछे
एक्‍सपर्ट ने यह भी कहा कि 1961 में भारत अपने एशियाई साथियों के बराबर था, लेकिन अब बहुत पीछे छूट गया है। मजूमदार ने जोखिम से बचने के अलावा भारत के आर्थिक विकास में रुकावट डालने वाले कई और कारण भी बताए हैं। इनमें कमजोर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर, खराब सरकारी व्यवस्था और शिक्षा प्रणाली शामिल हैं। उन्होंने कहा, ‘हमें यह सोचने की जरूरत है कि हम इतनी बुरी तरह से क्यों विफल रहे।’

भारत का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर GDP का सिर्फ 17% है, जबकि चीन में यह 29% है। खराब इंफ्रास्ट्रक्चर, ज्यादा लॉजिस्टिक्स लागत और बिजली की समस्या के कारण भारत में उत्पादन लागत बढ़ जाती है। इससे भारतीय मैन्युफैक्चरिंग वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाता है। मजूमदार ने देश में कौशल की कमी की भी आलोचना की। उन्होंने कहा कि यहां व्यावसायिक प्रशिक्षण और प्रैक्टिकल शिक्षा की कमी है। उन्होंने लिखा, ‘IIT से इलेक्ट्रिकल इंजीनियर भी अपने घर में ट्यूबलाइट लगाने के लिए इलेक्ट्रीशियन का इंतजार करते हैं।’ इसके उलट चीन में फुटबॉल मैदान जितने बड़े क्षेत्र में टूलिंग इंजीनियर भरे हुए हैं।’

‘20% की समस्या’ भी विकास में बाधा
राजनीतिक सुस्ती और ‘20% की समस्या’ भी विकास में बाधा डालती है। मजूमदार का कहना है कि 20% लोग लाभ तो लेते हैं, लेकिन विकास में योगदान नहीं करते हैं। भारत का बैंकिंग सिस्टम भी उद्यमियों को हतोत्साहित करता है। यहां ब्याज दरें बहुत ज्यादा हैं और लोन मिलना मुश्किल है। MSME (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) में 40% लोग काम करते हैं। लेकिन, इनमें से सिर्फ 14% को ही औपचारिक रूप से लोन मिल पाता है। R&D (अनुसंधान और विकास) पर भी भारत बहुत कम खर्च करता है। इससे इनोवेशन और तकनीकी विकास सीमित हो जाता है।

मजूमदार का सुझाव है कि भारत को जोखिम लेने से डरना छोड़ना होगा। अपने विकास मॉडल पर फिर से विचार करना होगा। तभी वह विकसित देशों की बराबरी कर पाएगा। दुनिया अब एडवांस मैन्युफैक्चरिंग की ओर बढ़ रही है। ऐसे में भारत को भी तेजी से बदलाव करने होंगे।

मजूमदार ने कहा कि भारत को अपनी सोच बदलनी होगी। अगर भारतीय एफडी में निवेश करते रहेंगे और हमेशा सुरक्षा को प्राथमिकता देंगे तो प्रति व्यक्ति जीडीपी ग्रोथ भी ऐसी ही रहेगी। इसका मतलब है कि हमें जोखिम लेने और नए क्षेत्रों में निवेश करने के लिए तैयार रहना होगा।

भारत में शिक्षा प्रणाली को भी बदलने की जरूरत है। हमें व्यावसायिक प्रशिक्षण और प्रैक्टिकल शिक्षा पर ज्यादा ध्यान देना होगा। भारत को अपनी सरकारी व्यवस्था को भी सुधारना होगा। भ्रष्टाचार को कम करना होगा और लोगों को बेहतर सेवाएं देनी होंगी। बैंकिंग सिस्टम को भी सुधारने की जरूरत है।

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