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Friday, July 4, 2025
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अब स्पीकर की कुर्सी के पास हंगामा नहीं कर सकेंगे सांसद, वजह जान लीजिए

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नई दिल्ली

नई संसद में अब शायद स्पीकर की कुर्सी के पास तख्तियां लहराते और विरोध प्रदर्शन करते सांसद बीते दिनों की बात हो जाएं। नई संसद के दोनों भवनों में वेल में आकर प्रदर्शन करना अब संभव नहीं हो सकेगा। इसकी वजह है नवनिर्मित संसद के दोनों सदनों में स्पीकर के कुर्सी के पास की बनावट। नई संसद के दोनों सदनों में स्पीकर की कुर्सी की बनावट ऐसी है कि अब सदन की कार्यवाही को बाधित करना लगभग असंभव होगा। सूत्रों ने कहा कि दोनों सदनों में पीठासीन अधिकारियों की कुर्सियों को मौजूदा कक्षों की तुलना में ऊंचा बनाया गया है। ऐसे में दोनों सदनों के वेल में जगह पुरानी की तुलना में कम है।

कैमरे की नजर में आना मुश्किल
सूत्रों ने कहा कि नए हाउस में वेल पहली पंक्ति से लगभग एक फुट नीचे हैं। इसलिए किसी भी विरोध प्रदर्शन के दौरान कैमरों की नजर में आना मुश्किल होगा। संसद सत्र के दौरान विपक्षी सदस्यों का वेल में आना, नारेबाजी करना और तख्तियां थामना आम बात हो गई है। हालांकि लोकसभा की कार्यवाही के प्रसारण पर 1994 के दिशा-निर्देशों का उल्लेख किया गया था। इसमें कहा गया था कि कैमरों को किसी भी रुकावट, विरोध या वाकआउट पर ध्यान केंद्रित नहीं करना था। साल 2005 में तत्कालीन अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी का कहना था कि टेलीकास्ट में विरोध और वाकआउट के दृश्य भी दिखाए जाने चाहिए। यह सदन की कार्यवाही का हिस्सा हैं।

वर्तमान संसद बन जाएगी म्यूजियम
सरकार का कहना है कि एक बार जब नया संसद भवन चालू हो जाएगा, तो वर्तमान संसद भवन को ‘लोकतंत्र के संग्रहालय’ में बदलने का काम शुरू हो जाएगा। नए संसद भवन में महात्मा गांधी, भीम राव अंबेडकर, सरदार पटेल और चाणक्य सहित ग्रेनाइट की मूर्तियां भी होने की संभावना है। नई संसद के उद्घाटन की तैयारियां अंतिम चरण में हैं। हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को पता चला है कि उद्घाटन कार्यक्रम की मॉक ड्रिल नई लोकसभा में आयोजित किए गए थे। यहां मुख्य कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा।

नई संसद में तीन प्रवेश द्वार
नए संसद भवन में कई नई विशेषताएं होंगी। इसमें तीन प्रवेश द्वार – ज्ञान द्वार, शक्ति द्वार और कर्म द्वार शामिल हैं। सूत्रों ने बताया कि नए संसद भवन को नया नाम दिए जाने की प्रबल संभावना है। इसका उद्घाटन रविवार 28 मई को होगा। अटकलें लगाई जा रही हैं कि मौजूदा शासन ने ‘औपनिवेशिक मानसिकता के निशान’ को हटाने के लिए दिल्ली में महत्वपूर्ण सड़कों के नाम बदल दिए हैं। इसमें राजपथ भी शामिल है, जिसे सितंबर में कर्तव्यपथ नाम दिया गया था।

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