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यूपी में PDA का जलवा, अखिलेश के ‘अल्पसंख्यक’ से लोहा लेगा BJP का ‘अगड़ा’, जातीय जनगणना के बाद समझिए समीकरण

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लखनऊ

उत्तर प्रदेश की राजनीतिक जमीन पर भारतीय जनता पार्टी अपनी अलग रणनीति के साथ उतरने की तैयारी में है। लोकसभा चुनाव में जिस पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक यानी पीडीए पॉलिटिक्स ने पार्टी को झटका दिया। अब उसी को हथियार बनाने की तैयारी है। दरअसल, भाजपा ने अगली जनगणना में जातिगत गणना का वादा किया है। इसके साथ ही पार्टी ‘पीडीए’ को फिर से परिभाषित करने की रणनीति पर काम कर रही है। विपक्ष के ‘पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक’ से लेकर ‘पिछड़ा, दलित, अगड़ा यानी उच्च जाति’ के अपने संस्करण तक की राजनीति को विस्तार देने की योजना है।

भाजपा सूत्रों का कहना है कि इस कदम से पार्टी को विपक्ष के पीडीए पॉलिटिक्स का मुकाबला करने में मदद मिल सकती है। समाजवादी पार्टी के पीडीए पॉलिटिक्स को लेकर दावा किया जाता है कि इसने 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान यूपी में भगवा संगठन को चुनावी रूप से नुकसान पहुंचाया है। पार्टी ने हिंदू समुदाय के बीच जातिगत एकता का संदेश देने के लिए विभिन्न प्लेटफार्मों पर ओबीसी, एससी और उच्च जाति को एक साथ लाकर रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है।

अंबेडकर जयंती से शुरुआत
सूत्रों ने बताया कि दलित नेता बीआर अंबेडकर की जयंती के अवसर पर इसकी शुरुआत की गई थी, जब भाजपा ने अपने उच्च जाति के पदाधिकारियों से दलित बहुल दूरदराज के इलाकों में अंबेडकर की मूर्तियों की सफाई में दलितों के साथ मिलकर काम करने को कहा था। अब यह और भी साफ हो गया है, जब राज्य महासचिव (संगठन) धर्मपाल सिंह ने एससी समुदाय के सदस्यों का सम्मेलन आयोजित किया। धर्मपाल सिंह ओबीसी समुदाय से आते हैं। इस कार्यक्रम में प्रमुख उच्च जाति के पदाधिकारियों को आमंत्रित किया गया।

हिंदू एकता पर जोर
यूपी भाजपा एससी मोर्चा के प्रमुख राम चंद्र कन्नौजिया ने कहा कि दलित समुदाय काफी हद तक एक भ्रमित समूह है, जो आसानी से राजनीतिक दलों के बहकावे में आ जाता है। उन्होंने कहा कि उन्हें उच्च जाति के साथ लाने से न केवल दलितों का हौसला बढ़ेगा, बल्कि जाति-विभाजित हिंदू समुदाय के भीतर एकता का संदेश भी जाएगा। उन्होंने कहा कि दलितों के बीच व्याप्त उच्च जाति विरोधी धारणा को खत्म किया जाना चाहिए, ताकि एक एकजुट समाज का निर्माण किया जा सके। यह पार्टी की विचारधारा में माना जाता है।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
विशेषज्ञों के अनुसार, ‘पीडीए’ को फिर से परिभाषित करने का भाजपा का प्रयास जाति आधारित चुनावी राजनीति में एक स्पष्ट रणनीतिक धुरी होगा। खासकर यूपी में इसका असर दिखेगा। उन्होंने कहा कि अपने स्वयं के ‘पीडीए’ के निर्माण के माध्यम से भाजपा का गुप्त संदेश पार्टी को विपक्ष के आक्रामक कथानक को बेअसर करने में मदद कर सकता है, जिसका उद्देश्य ओबीसी, दलित और अल्पसंख्यकों को एकजुट करना है।

अखिलेश पर तीखा हमला
अपने पारंपरिक अल्पसंख्यक वोट बैंक को भुनाने के लिए जानी जाने वाली सपा ने पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के साथ बाबासाहेब अंबेडकर की तस्वीर जारी की थी। इसके जरिए ओबीसी-दलित एकीकरण का मुद्दा उठाया। इस मुद्दे पर भाजपा की ओर से तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की गई। सूत्रों ने कहा कि भाजपा दलित समुदाय को सपा सरकार के तहत कथित अत्याचारों के बारे में याद दिलाने की कोशिश कर रही थी।

विश्लेषकों ने कहा कि विपक्ष, विशेष रूप से इंडिया ब्लॉक के तहत, भाजपा को उच्च जातियों का पक्ष लेने और पिछड़े-अल्पसंख्यक समुदायों की उपेक्षा करने के रूप में चित्रित करके ओबीसी और दलितों के बीच बढ़त हासिल की। ‘पीडीए’ को शामिल करके और फिर से परिभाषित करके, भाजपा उस बढ़त को बेअसर कर सकती है।

भाजपा के पीडीए से अल्पसंख्यक गायब
भाजपा के ‘पीडीए’ संस्करण में खास यह है कि इसमें से ए यानी अल्पसंख्यक शब्द को हटा दिया गया है। यह हिंदू सामाजिक गठबंधन पर इसके फोकस और मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोपों को रणनीतिक रूप से दरकिनार करने का संकेत देता है। कुछ ऐसा जिसे पार्टी अक्सर अपने चुनावी संदेश में भुनाती है। अब हिंदू एकजुटता के मुद्दे को नए तरीके से पेश करने की रणनीति पर काम किया जा रहा है।

पीडीए को फिर से तैयार करने का भाजपा का कदम बसपा प्रमुख मायावती के सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूले से मिलता-जुलता है। मायावती ने ब्राह्मणों और दलितों एकजुट कर बहुजन से सर्वजन तक का नारा दिया था। इसने 2007 में इसे पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में पहुंचा दिया था।

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