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Saturday, July 5, 2025
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रुपया वेटिंलेटर पर फिर भी भारतीयों को नहीं मिल पा रही है चीन वाली ‘ऑक्‍सीजन’, आखिर वजह क्‍या है?

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नई दिल्‍ली

रुपये की गिरावट से अमूमन निर्यातकों को फायदा होता है। चीन अपनी करेंसी को जानबूझकर कमजोर करके दुनिया में सबसे बड़ा सौदागर बना है। जब एक देश अपनी करेंसी को कमजोर करता है तो उस देश के उत्पाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में सस्ते हो जाते हैं। इससे विदेशी खरीददारों को इन उत्पादों को खरीदने में आसानी होती है और निर्यात बढ़ता है। यह चीन के लिए महत्वपूर्ण रणनीति रही है। कारण है कि वह दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक देश है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब भारत में रुपया वेंटिलेटर पर है तो भी निर्यातकों को इसका फायदा क्‍यों नहीं मिल रहा है। यहां, इसे समझने की कोशिश करते हैं।

अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया रिकॉर्ड निचले स्‍तर पर पहुंच गया है। इसके बावजूद भारतीय निर्यातकों को ज्‍यादा फायदा नहीं हो रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि आयात ज्‍यादा होने और वैश्विक बाजार की अनिश्चितताओं के कारण ऐसा है। कमजोर रुपया भारतीय सामानों को सस्ता बनाता है। इससे निर्यात बढ़ना चाहिए। लेकिन, कुछ कारणों से यह फायदा सीमित है। भारत का आयात निर्यात से ज्‍यादा है, जिससे रुपये पर दबाव है। इसके अलावा, दुनिया भर के बाजारों में अनिश्चितता का माहौल है। यह स्थिति निर्यातकों के लिए मुश्किलें पैदा कर रही है। हालांकि, कमजोर रुपया निर्यात को बढ़ावा देता है। लेकिन, फिलहाल बाजार की स्थितियां इसके फायदे को सीमित कर रही हैं।

क्‍या कह रहे हैं जानकार?
अंतरराष्ट्रीय व्यापार विशेषज्ञ बिस्वजीत धर के मुताबिक, कई एक्‍सपोर्टर आयातित कच्चे माल पर बहुत अधिक निर्भर हैं। रुपये में गिरावट के चलते आयात की बढ़ी हुई लागत की वजह से जो लाभ होना होता है वह सीमित रह जाता है। ऐसे में रुपये में गिरावट के बावजूद निर्यातकों को करेंसी मूवमेंट से फायदा उठाने में मुश्किल हो रही है।

पिछले साल एक जनवरी को 83.19 के स्तर से घरेलू मुद्रा में चार फीसदी से अधिक की गिरावट आई है। सोमवार को रुपया लगभग दो वर्षों में सबसे बड़ी एक-दिन की गिरावट के साथ 86.62 (अस्थायी) के ऐतिहासिक निचले स्तर पर बंद हुआ। यह अमेरिकी करेंसी के मजबूत होने और कच्चे तेल (क्रूड) की कीमतों में उछाल के कारण हुआ।

रुपये की ग‍िरावट न‍िर्यातकों के ल‍िए वरदान
इसी तरह की राय भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की राष्ट्रीय निर्यात-आयात समिति के चेयरमैन संजय बुधिया ने जाहिर की। उन्‍होंने कहा कि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट को अक्सर निर्यातकों के लिए वरदान माना जाता है। लेकिन, करीब से जांच करने पर पता चलता है कि लाभ अपेक्षाकृत मामूली है। अलग-अलग कॉस्‍ट फैक्‍टर्स की वजह से होने वाला लाभ सीमित रह जाता है।

बुधिया ने कहा, ‘रुपये में गिरावट से कच्चे माल, कलपुर्जों और अन्य आदान लागत में बढ़ोतरी होती है, जो डॉलर में मूल्यांकित होते हैं। आदान लागत में यह बढ़ोतरी कमजोर रुपये से प्राप्त प्रतिस्पर्धात्मक लाभ को खत्म कर देती है।’

इसके अलावा, शिपिंग, इंश्‍योरेंस और मार्केटिंग जैसे खर्च भी डॉलर मूल्य में होते हैं। इससे रुपये का लाभ खत्म हो जाता है। बुधिया जो पैटन ग्रुप के एमडी भी हैं। वह बोले, ‘हमें यह भी ध्यान में रखना होगा कि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले चीनी युआन, जापानी येन और मैक्सिकन पेसो जैसे अन्य प्रतिस्पर्धी देशों की करेंसी में इसी अवधि में भारतीय रुपये के मुकाबले अधिक गिरावट आई है।’

ज्‍यादातर निर्यातक करेंसी में उतार-चढ़ाव के खिलाफ अपने रिस्‍क को कम करने के लिए फॉरवर्ड कवर लेते हैं। ऐसे निर्यातक रुपये के डेप्रिसिएशन यानी मूल्यह्रास के मामले में बहुत अधिक नुकसानदेह स्थिति में हैं। कारण है कि उनकी उत्पादन लागत बढ़ जाएगी जबकि प्राप्ति वही रहेगी।

बड़े न‍िर्यातक खाली हाथ
लुधियाना स्थित इंजीनियरिंग क्षेत्र के निर्यातक एस सी रल्हन ने कहा कि गिरावट छोटे निर्यातकों की मदद कर सकती है। लेकिन, मध्यम और बड़े निर्यातकों को इस गिरावट से बहुत अधिक फायदा नहीं मिलता है। वे अपनी मैन्‍यूफैक्‍चरिंग के लिए बहुत अधिक कच्चा माल आयात करते हैं।

रल्हन के अनुसार, ‘खरीदार भी छूट की मांग करने लगते हैं। इसलिए एक तरह से गिरावट बाजार को परेशान करती है।’ उन्होंने कहा कि रुपये में गिरावट से निर्यातक को बहुत अधिक फायदा नहीं होगा क्योंकि भारत के प्रमुख निर्यात सामान जैसे फार्मास्यूटिकल्स, रत्न-आभूषणों में आयात सामग्री ज्‍यादा है।

विशेषज्ञों में से एक ने कहा कि रुपये का कम या अधिक होना कोई मायने नहीं रखता, ‘जो चिंताजनक है वह है अस्थिरता यानी उतार-चढ़ाव। स्थिरता होनी चाहिए। अगर अस्थिरता है तो कोई नहीं जान पाएगा कि अनिश्चितता से कैसे निपटा जाए।’

उनके अनुसार, भारतीय रुपये में गिरावट से कच्चे तेल से लेकर इलेक्ट्रॉनिक सामान तक का आयात महंगा हो जाएगा। विदेशी शिक्षा और विदेश यात्रा महंगी होगी। वहीं, महंगाई बढ़ने की आशंका रहेगी।

रुपये में गिरावट का प्राथमिक और तत्काल प्रभाव आयातकों पर पड़ता है। उन्‍हें समान मात्रा और कीमत के लिए अधिक पेमेंट करना होगा। भारत पेट्रोल, डीजल और विमान ईंधन की अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए 85 फीसदी विदेशी कच्चे तेल पर निर्भर है। भारतीय आयात वस्तुओं में कच्चा तेल, कोयला, प्लास्टिक मटीरियल, केमिकल, इलेक्ट्रॉनिक सामान, वनस्पति तेल, उर्वरक, मशीनरी, सोना, मोती, कीमती और अर्ध-कीमती पत्थर और लोहा और स्‍टील शामिल हैं।

चीन अपनी करेंसी को कमजोर करके अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने और अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी स्थिति को मजबूत करने की कोशिश करता है। निर्यात प्रमुख देश होने के कारण उसे इसका फायदा मिलता रहा है। जब निर्यात बढ़ता है तो उससे अर्थव्यवस्था को रफ्तर मिलती है। रोजगार के अवसर बढ़ते हैं और देश की आय में बढ़ोतरी होती है। समय-समय पर रुपये को कमजोर करना उसकी रणनीति का हिस्‍सा रहा है।

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