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बनना तो नेता चाहता था, किस्‍मत को कुछ और… चीफ जस्टिस ने खोले जिंदगी के राज

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नई दिल्‍ली/रांची

भारत के मुख्‍य न्‍यायाधीश एनवी रमण  ने अपनी जिंदगी से जुड़े कई राज खोले हैं। उन्‍होंने बताया है कि वह नेता बनना चाहते थे। लेकिन, किस्‍मत को कुछ और ही मंजूर था। हालांकि, उन्‍हें इसका मलाल नहीं है। चीफ जस्टिस ने कहा कि वह एक गांव में किसान परिवार में जन्‍मे। जब वह 7- 8वीं में थे तब पाठ्यक्रम में अंग्रेजी आई। दसवीं पास करना उनके समय में एक बड़ी उपलब्धि होती थी। एक कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे एनवी रमण ने ये बातें कहीं। एनवी रमण जस्टिस एसबी सिन्‍हा स्‍मृति व्‍याख्‍यान में पहुंचे थे। यह कार्यक्रम रांची में नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ स्‍टडी एंड रिसर्च ने आयोजित किया था। इस दौरान चीफ जस्टिस ने अपनी जिंदगी से जुड़ी कई चीजों के बारे में बताया।

सीजेआई ने बताया कि वह सक्रिय राजनीति में आना चाहते थे। हालांकि, किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। कोई ऐसी चीज जिसके लिए आपने बहुत मेहनत की हो, उसे छोड़ पाने का फैसला आसान नहीं होता है। उन्‍होंने कहा कि जज के तौर पर सेवा देने का मौका बहुत चुनौतियों के साथ मिलता है। हालांकि, उन्‍हें एक दिन भी कोई मलाल नहीं हुआ।

किसान परिवार में हुआ जन्‍म, पिता ने बढ़ाया हौसला
चीफ जस्टिस ने बताया कि उनका जन्‍म गांव में एक किसान परिवार में हुआ। जब वह 7-8वीं में थे तब अंग्रेजी की शुरुआत हुई। उन दिनों 10वीं पास करना बड़ी उपलब्धि माना जाता था। बीएससी करने के बाद पिता ने उनका हौंसला बढ़ाया। इसके बाद उन्‍होंने कानून की डिग्री ली। कुछ महीनों के लिए उन्‍होंने विजयवाड़ा में मजिस्‍ट्रेट कोर्ट में प्रैक्टिस की। इसके बाद पिता के बढ़ावा देने पर हैदराबाद में हाई कोर्ट में प्रैक्‍ट‍िस करने पहुंच गए।

जज का ऑफर मिलने तक बना लिया था नाम
जिस समय तक रमण को जज का ऑफर मिला था तब तक उन्‍होंने अच्‍छा खासा नाम बना लिया था। उनकी प्रैक्टिस बहुत अच्‍छी चल रही थी। तालुक स्‍तर की अदालतों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक उन्‍होंने कई हाई प्रोफाइल मामलों में पैरवी की। वह अपने राज्‍य में अतिरिक्‍त सॉलिसिटर जनरल भी बने। वह सक्रिय राजनीति से जुड़ने को इच्‍छुक थे। लेकिन, किस्‍मत को कुछ और बदा था। जिस मुकाम त‍क पहुंचने में उन्‍होंने इतनी मेहनत की थी, उसे छोड़ देना आसान नहीं था।

सीजेआई ने बताया कि कई सालों तक उन्‍होंने अपने करियर को बनाने में लगाए। इस दौरान कई लोगों से मेलजोल रहा। हालांकि, बेंच से जुड़ने पर सोशल कनेक्‍शंस को छोड़ने की जरूरत पड़ी। लिहाजा, उन्‍होंने वैसा ही किया।

जज की जिंदगी नहीं आसान
सीजेआई ने कहा कि लोगों की सामान्‍य सोच के उलट जज की जिंदगी आसान नहीं होती है। जज वीकेंड और छुट्टी के दिन भी काम करते हैं। वे जिंदगी के कई खुशी के पल नहीं मनाते हैं। इनमें महत्‍वपूर्ण पारिवारिक आयोजन शामिल हैं। हर सप्‍ताह 100 से ज्‍यादा केसों को तैयार करना, दलीलों को सुनना, अपनी रिसर्च करना, फैसलों को लिखना और उसके साथ ही तमाम प्रशासनिक कामों को भी अमलीजामा पहनाना आसान नहीं है। जो व्‍यक्ति इस पेशे से जुड़ा नहीं है, वह शायद कल्‍पना भी नहीं कर सके कि तैयारी में ही कितने घंटे चले जाते हैं।

सीजेआई ने कहा, ‘हम कई घंटे पेपर और किताबें पढ़ते हैं। अगले दिन लिस्‍ट हुए केसों के लिए नोट बनाते हैं। कोर्ट उठते ही अगले दिन की तैयारी शुरू हो जाती है। ज्‍यादातर मामलों में यह अगले दिन आधी रात तक चलती है। हम वीकेंड और हॉलीडे पर भी काम करते हैं। रिसर्च करते हैं और फैसले लिखते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में जिंदगी में खुशी के कई पल भी गंवाते हैं। कई दिन घर के नाती-पोतों को नहीं देख पाते हैं। ऐसे में जब कोई जजों के बारे में यह कहता है कि वे आसान जिंदगी जीते हैं। तो बात हजम नहीं होती है।’

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