नई दिल्ली,
पेट्रोलियम जरूरतों के लिए आयात पर निर्भरता से भारत को कई मोर्चे पर नुकसान उठाना पड़ता है. मंगलवार को रुपया पहली बार डॉलर के मुकाबले 80 के पार निकल गया, इसका भी मुख्य कारण क्रूड ऑयल ही है. इस बीच वेदांता लिमिटेड के चेयरमैन अनिल अग्रवाल ने एक ऐसा सुझाव दिया है, जिसे सरकार मान ले तो कच्चा तेल के आयात पर 75 फीसदी तक की बचत हो सकती है.
ऑल टाइम हाई पर व्यापार घाटा
अनिल अग्रवाल ने इस बारे में एक बयान जारी किया. उन्होंने कहा कि अगर सरकार खोज और उत्पादन में प्राइवेट सेक्टर को अधिक भागीदारी की मंजूरी दे तो भारत खुद ही कच्चा तेल का उत्पादन कर सकता है, जो आयातित कच्चा तेल की तुलना में तीन-चौथाई सस्ता पड़ेगा. मेटल और एनर्जी सेक्टर ) में कारोबार करने वाले अनिल अग्रवाल देश के प्राकृतिक संसाधनों के अधिकतम इस्तेमाल के लिए निजी क्षेत्र की अधिक भागीदारी की पैरवी करते रहे हैं. इस बार अग्रवाल ने यह सुझाव ऐसे समय दिया है, जब रुपये ने गिरने का रिकॉर्ड बना दिया है और देश का व्यापार घाटा एक दिन पहले ही ऑल टाइम हाई पर जा चुका है. इसका मुख्य कारण कच्चा तेल व कोयला समेत कुछ उत्पादों के आयात में आई तेजी है.
इतना सस्ता पड़ेगा घरेलू क्रूड ऑयल
आपको बता दें कि अभी भारत औसतन 100 डॉलर प्रति बैरल की दर से कच्चा तेल आयात कर रहा है. एक बैरल में करीब 159 लीटर कच्चा तेल होता है. इस तरह देखें तो भारत को फलहाल बाहर से कच्चा तेल खरीदने पर हर एक लीटर के लिए करीब 50 रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं. अगर अनिल अग्रवाल की बात मान लें तो घरेलू स्तर पर उत्पादित होने वाला कच्चा तेल एक-चौथाई भाव में मिल जाएगा. इसका मतलब हुआ कि घरेलू क्रूड ऑयल के मामले में सरकार को एक बैरल पर करीब 25 डॉलर यानी हर लीटर के लिए करीब 12 रुपये खर्च करने होंगे. अगर क्रूड ऑयल सस्ता होता है तो इसका फायदा आम लोगों को भी मिलेगा, क्योंकि इसी अनुपात में डीजल-पेट्रोल भी सस्ते हो जाएंगे.
सरकार को भी होंगे कई फायदे
अग्रवाल ने बयान में कहा, ‘भारत आयात की लागत की तुलना में एक चौथाई कीमत पर कच्चा तेल का उत्पादन कर सकता है, ठीक उसी तरह जैसे केयर्न सरकार को 26 डॉलर प्रति बैरल की दर से तेल दे रही है. हमारी इकोनॉमिक ग्रोथ को पारंपरिक इंडस्ट्री और स्टार्टअप्स दोनों मिलकर चला रहे हैं. हमारे स्टार्टअप्स और उद्यमियों को बिना डरे काम में ऊर्जा लगाने के लिए प्रोत्साहित करने से बड़े स्तर पर रोजगार का सृजन होगा व सरकार को भारी-भरकम राजस्व मिलेगा.’
भंडार के बाद भी आयात करता है भारत
उन्होंने कहा कि इन उद्यमियों को आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (Artificial Intelligence), ऑटोमेशन (Automation) और डेटा एनालिटिक्स (Data Analytics) जैसी आधुनिक तकनीकों के साथ तेल-गैस की खोज के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. मेटल्स (Metals), रेयर मेटल्स (Rare Metals), मिनरल्स (Minerals) और हाइड्रोकार्बन (Hydrocarbon) के मामले में खोज व उत्पादन नीति को उदार बनाना भारत के लिए अहम है. भारत को धातुओं और खनिजों के अच्छे-खासे भंडार का गिफ्ट मिला है, लेकिन यह हैरान करने वाली बात है कि इसके बाद भी हम साल-दर-साल भारी-भरकम इम्पोर्ट बिल का भुगतान करते हैं. अत्याधुनिक तकनीकों को बनाने की दिशा में आने वाले दशकों के दौरान ये धातु महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.
इन चीजों से मिलेगी भारत को सुरक्षा
यह पहली बार नहीं है, जब अनिल अग्रवाल ने एनर्जी सिक्योरिटी पर भारत को तत्काल काम करने की वकालत की हो. वह कोयला खनन को खुला बनाने और प्राइवेट तेल एवं गैस कंपनियों को बराबरी का माहौल देने की पैरवी करते रहे हैं. उन्होंने ताजा बयान में कहा, ‘अगर घरेलू उत्पादन बढ़िया हो तो इससे देश को वैश्विक संकट से सुरक्षा मिलेगी, उद्यमिता को बढ़ावा मिलेगा, बड़े पैमाने पर लोगों को नौकरियां मिलेंगी और वाइब्रेंट इकोसिस्टम तैयार होगा