लखनऊ
प्रगतिशील समाजवादी पार्टी प्रमुख शिवपाल यादव और समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने जब यूपी विधानसभा चुनाव से पहले हाथ मिलाया तो एक बार को लगा था कि टूटता यादव परिवार एक हो गया है। लेकिन चुनाव नतीजों ने यह भ्रम तोड़ दिया। धीरे-धीरे दूरियां फिर बढ़ीं और राष्ट्रपति चुनाव के बाद दोनों की राहें फिर अलग हो गईं। तल्खियां और बढ़ गईं। शनिवार को इस चरम तब दिखा जब सपा ने लेटर लिखकर कह दिया, आपको जहां सम्मान मिले वहां जाने को स्वतंत्र हैं। जवाब में शिवपाल ने भी कह दिया सम्मान से समझौता नहीं हो सकता।
प्रसपा और सपा के गठबंधन के दौरान शिवपाल यादव समझौता करते दिखे। उन्होंने यूपी चुनाव में 100 सीटों पर प्रसपा के उम्मीदवार उतारने की मांग की थी लेकिन केवल उन्हें ही सीट मिली वह भी सपा के चुनाव चिन्ह पर। नतीजों के बाद शिवपाल ने अलग-अलग मंचों से कहा भी कि अगर उनकी चली होती तो आज अखिलेश सीएम होते, समाजवादी पार्टी की तस्वीर कुछ और ही होती।
यूपी चुनाव के बाद बिखराव
इसके बाद आए लोकसभा उपचुनाव ने और दूरियां बढ़ाईं। शिवपाल सपा के 40 स्टार प्रचारकों की लिस्ट से बाहर थे। उन्होंने इस पर अफसोस जताया। यूपी चुनाव में हारने के बाद सपा का परंपरागत वोट बैंक मुस्लिम समुदाय भी बिखरने लगा। कई क्षेत्रीय नेता मुस्लिम हितों, खासकर लगभग दो साल से जेल में बंद सपा नेता आजम खान की उपेक्षा का हवाला देते हुए पार्टी छोड़ गए।
आजम के बहाने आलोचना
इस दौरान शिवपाल आजम खान से मिलने जेल में गए। बाहर आकर उन्होंने अफसोस जताया कि अगर सपा नेता कोशिश करते तो आजम खान जेल से बाहर आ जाते। इस बीच चर्चा उड़ी कि शिवपाल बीजेपी में शामिल हो सकते हैं, खुद सपा में ऐसी बातें उठीं। इस पर शिवपाल बोले, शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बीते दिनों से कहा कि मेरे भाजपा से संपर्क हैं। अगर उनको लगता है कि भाजपा से मेरे संपर्क हैं तो मुझे विधानमंडल दल से निकाल क्यों नहीं देते हैं। शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि मैं समाजवादी पार्टी के 111 विधायकों में से एक हूं। उनको तो मुझे समाजवादी पार्टी से निकालने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि अगर उनको हमसे कोई भी दिक्कत है तो हमको पार्टी से बाहर कर दें।
राष्ट्रपति चुनाव बना अहम
लेकिन राष्ट्रपति चुनाव ने मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम में अहम भूमिका निभाई। यशवंत सिन्हा विपक्ष के राष्ट्रपति पद के संयुक्त उम्मीदवार थे और समाजवादी पार्टी ने उन्हें अपना समर्थन दिया था। इसी संदर्भ में अपने लेटर में शिवपाल यादव ने एक लेटर लिखा और कहा, ‘… नियति की अजीब विडंबना है कि समाजवादी पार्टी ने राष्ट्रपति चुनाव में उस व्यक्ति का समर्थन किया है जिसने हम सभी के अभिभावक और प्रेरणा व ऊर्जा के स्रोत आदरणीय नेताजी को उनके रक्षा मंत्रित्व काल में पाकिस्तानी गुप्तचर संस्था आईएसआई का एजेंट बताया था।’
‘आज पार्टी मजाक बन गई है’
उन्होंने आगे लिखा है, ‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि समाजवादी पार्टी को राष्ट्रपति प्रत्याशी के तौर पर एक अदद समाजवादी विरासत वाला नाम न मिला। यह कहते हुए मुझे दुख और क्षोभ हो रहा है कि जो समाजवादी कभी नेताजी के अपमान पर आग बबूला हो जाते थे आज उसी विरासत के लोग नेताजी को अपमानित करने वाले व्यक्ति का राष्ट्रपति चुनाव में समर्थन कर रहे हैं। ऐसा लगने लगा है कि पूरी पार्टी मजाक का पात्र बनकर रह गई है।’
‘मुझे पता हैं अपनी सीमाएं’
अंत में शिवपाल यादव ने कटाक्ष किया है, ‘प्रिय अखिलेश जी, मुझे अपनी सीमाएं पता हैं। आप समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष हैं। ऐसे में मेरा सुझाव है कि उपरोक्त बिंदुओं के आलोक में अपने फैसले पर पुनर्विचार करें।’
सपा का पलटवार
हालांकि शिवपाल यादव के इस लेटर पर समाजवादी पार्टी की तुरंत प्रतिक्रिया भी आ गई। चूंकि शिवपाल यादव ने एनडीए की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन किया था इसलिए सपा ने इस मुद्दा बनाया। सपा प्रवक्ता ने कहा जिस बीजेपी का ये बयान था कि नेता जी आईएसआई के एजेंट है उसी के कैंडिडेट को शिवपाल यादव समर्थन दे रहे हैं। शिवपाल यादव नेताजी का समाजवाद भूल गए है। नेता जी ने कल्याण सिंह को माफ किया था। सपा की लड़ाई किसी व्यक्ति से नही, विचारधारा से है। एनडीए उम्मीदवार को समर्थन देने में शिवपाल यादव पुनर्विचार करें।बहरहाल, शिवपाल यादव ने राष्ट्रपति पद की एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को वोट दिया। द्रौपदी राष्ट्रपति बन भी गईं लेकिन इस पूरे घटनाक्रम से साफ हो गया कि सपा और प्रसपा दोनों अब और एकसाथ नहीं चल पाएंगे।